इस स्पॉट में सद्गुरु महाशिवरात्रि पर आदियोगी व योगेश्वर लिंग की होने वाली प्रतिष्ठा के बारे में लिख रहे हैं। वह कहते हैं, ‘आदियोगी यहां आपको रोग, असुविधाओं व गरीबी से और सबसे बड़ी चीज कि जीवन व मृत्यु के फेर से मुक्ति दिलाने के लिए स्थापित किए जा रहे हैं।’
ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि हमारे लिए हमेशा से एक विशाल आयोजन का अवसर रही है। लेकिन 24 फरवरी को होने वाली आगामी महाशिवरात्रि सबसे अलग होने जा रही है, क्योंकि इस दिन आदियोगी के एक सौ बारह फीट ऊंचे चेहरे को प्रतिष्ठित किया जाएगा।
आदियोगी के बगल में ही योगेश्वर लिंग की स्थापना होगी, जिसकी हम शिवरात्रि से पहले आने वाले दिनों में प्रतिष्ठा करेंगे। इस लिंग की मौजूदगी के चलते दिन ब दिन आदियोगी और भी शक्तिशाली होते चले जाएंगे।
इस प्रतिष्ठा में अब पांच हफ्तों से भी कम का समय बचा है, लेकिन उनके ओजपूर्ण चेहरे ने अभी से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि हम लोग आदियोगी का इतना विशालकाय चेहरा क्यों तैयार कर रहे हैं और क्या यह सब सिर्फ कलात्मकता के नाम पर हो रहा है। अगर आप आदियोगी की प्रतिमा को देखें तो निश्चित रूप से इसमें एक ज्यामितीय कलात्मकता है। अगर कलात्मकता की बात की जाए तो बिना उत्तम ज्यामिति के किसी भी चीज में कलात्मकता का भाव नहीं होता। आदियोगी के चेहरे में सिर्फ कलात्मकता ही नहीं है, इसका अपना ज्यामितीय महत्व भी है। आदियोगी के बगल में ही योगेश्वर लिंग की स्थापना होगी, जिसकी हम शिवरात्रि से पहले आने वाले दिनों में प्रतिष्ठा करेंगे। इस लिंग की मौजूदगी के चलते दिन ब दिन आदियोगी और भी शक्तिशाली होते चले जाएंगे। चूंकि ज्यामितीय रूप से उनका रूप पूरी तरह से आदर्श हैं, इसलिए वह इस लिंग की सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा को अपने भीतर संजोएंगे। अगर आप
ज्यामितीय रूप से सही मुद्रा को अपनाते हैं तो आप भी सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा को सहेज सकते हैं। योग का यही महत्व है।
मुक्ति की ओर ले जाने की प्रेरणा
आदियोगी का यह चेहरा दुनिया को उनकी मुक्ति की ओर ले जाने वाली एक भव्य मौजूदगी की तरह रहेगा। आदियोगी मानवता को धर्म से जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व की ओर ले जाने वाले एक तकाज़े की तरह है।
आदियोगी का यह चेहरा दुनिया को उनकी मुक्ति की ओर ले जाने वाली एक भव्य मौजूदगी की तरह रहेगा। आदियोगी मानवता को धर्म से जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व की ओर ले जाने वाले एक तकाज़े की तरह है।
बात जब बाहरी दुनिया की आती है तो हम वैज्ञानिक तरीके अपनाते हुए, कुछ विशेष तरह की तकनीक व साधनों का इस्तेमाल करके हर चीज एक खास तरह से, जितना संभव हो उतना समझकर करना चाहते हैं। लेकिन बात जब भीतरी कल्याण की आती है तो लोगों को लगता है कि यह सब स्वर्ग में तय हुआ है। यह चीज हमारे निजी जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में दिख जाती है। लंबे समय तक लोग यही सोचते थे कि शादियां स्वर्ग से तय होकर आती हैं या सितारे और ग्रह शादियों की दिशा और दशा तय करते हैं। केवल कुछ समय पहले लोगों को इस बात का अहसास होना शुरू हुआ कि यह
रिश्ता केवल तभी काम करेगा, जब आप जिम्मेदारी भरे ढंग से निभाएंगे और समझदारी से काम करेंगे। न आपकी सेहत, न शांति और न ही खुशी स्वर्ग में तय होती हैं, ये सारी चीजें आपके भीतर से निर्धारित होती हैं। अगर आप इन चीजों को एक खासस्तर की समझदारी से करते हैं तो यह एक विज्ञान कहलाती है। अगर आप इन पर काम करने वाले साधन विकसित कर लेते हैं तो यह तकनीक कहलाती है। हम इसे इनर इंजीनियरिंग कहते हैं। आदियोगी का यह तेजस्वी चेहरा भीतरी कल्याण के इस विज्ञान और तकनीक का प्रतिनिधित्व करेगा।
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प्राण-प्रतिष्ठा के बाद स्पंदित हो उठेगा ये चेहरा
हम लोग आदियोगी पर एक किताब भी निकाल रहे हैं, जिसमें आदियोगी द्वारा भेंट किए गए विज्ञान और उसके महत्व के बारे में चर्चा की गई है।
आप प्रत्यक्ष तौर पर देख सकेंगे कि कैसे एक प्रतिष्ठित आकृति अपने आसपास के पूरे वातावरण को बदल सकती है। एक समय में इस संस्कृति की तमाम देव प्रतिमाएं इसी संभावना पर तैयार की गई थीं।
हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आगामी दस से पंद्रह साल में यह पूरी दुनिया ऊपर देखने की बजाय आत्म कल्याण के लिए अपने भीतर झांकना शुरू कर दे। अपने भीतर ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां आप अपना कल्याण तय कर सकते हैं। मैं आप सबको जिस तरह से या जिस रूप में आप चाहें, इसका हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करता हूं। मानवता के इतिहास में हम आज से पहले एक व्यापक आबादी तक पहुँचने में तकनीकी रूप से इतने सक्षम नहीं थे। उन्हें अपने भीतर की ओर कैसे मोड़ा जाए और बाहरी सहयोग की बजाए अपने भीतर से अपने कल्याण को कैसे नियंत्रित किया जाए - जैसी बातों को समझाने के लिए हम पहले तकनीकी रूप से कभी इतने सक्षम नहीं थे, जितने कि आज हैं। आगामी 20 से 23 फरवरी तक हम योगेश्वर लिंग की प्रतिष्ठा करेंगे और महाशिवरात्रि पर आदियोगी के चेहरे की। हम लोग लिंग को इस तरह से ऊर्जावान बनाएंगे कि एक भौतिक पिंड सिर्फ तीन से चार दिनों में जबरदस्त तरीके से स्पंदित हो उठेगा। हम आपके लिए बाकायदा एक प्रक्रिया तैयार करेंगे, जिससे आपके भीतर इस अनुभूति का अनुभव करने के लिए आपमें जरूरी संवेदनशीलता विकसित की जा सके। आप प्रत्यक्ष तौर पर देख सकेंगे कि कैसे एक प्रतिष्ठित आकृति अपने आसपास के पूरे वातावरण को बदल सकती है। एक समय में इस संस्कृति की तमाम देव प्रतिमाएं इसी संभावना पर तैयार की गई थीं।
भगवान को बनाने की तकनीक भारतीय परंपरा का हिस्सा
चूंकि हम भगवान को बनाने की तकनीक जानते थे, इसलिए भारत में लगभग तैंतीस करोड़ देवी देवता हैं। हम लोगों ने ज्यामिति उत्कृष्टता से भरी एक आकृति तैयार की, उसे खास तरीके ऊर्जावान बनाया और उस से जुड़ने के तरीके निकालें।
आदियोगी की आकृति आपकी चेतना पर एक छाप छोड़ेगी। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहा जाते हैं, उनका चेहरा आपसे इस कदर चिपक कर रह जाएगा कि आप अपने भीतर की ओर मुड़ कर ही रहेंगे।
हम जिस आकारविहीन ऊर्जा को शिव के तौर पर जानते हैं, वह अपने आप को कई रूपों में प्रकट कर सकती है। यह शिव के कई अलग-अलग स्वरूपों के माध्यम से सामने आती है, जैसे एक नर्तक के तौर पर नटराज, एक डॉक्टर के तौर पर वैदीश्वर, एक शिक्षक के तौर पर
दक्षिणामूर्ति, एक डर निवारक के तौर पर भैरव का स्वरूप। ये सारे एक ही ऊर्जा के अलग-अलग स्वरूप हैं। भारतीय संस्कृति में कुछ खास जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिष्ठा की जाती है। आदियोगी यहां आपको रोग, असुविधाओं व गरीबी से और सबसे बड़ी चीज कि जीवन व मृत्यु के फेर से मुक्ति दिलाने के लिए स्थापित किए जा रहे हैं। हम लोग आदियोगी को योगेश्वर यानी एक आदर्श योगी के रूप में प्रतिष्ठित करेंगे। योगेश्वर मुख्य रूप से मुक्ति के दाता हैं। इसीलिए हम ईशा योग केंद्र के थोड़ा बाहरी हिस्से में स्थापित कर रहे हैं। जिससे उन्हें मनचाहे रूप व तरीके से काम करने की आजादी और मौका मिल सके। आदियोगी की आकृति आपकी चेतना पर एक छाप छोड़ेगी। फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहा जाते हैं, उनका चेहरा आपसे इस कदर चिपक कर रह जाएगा कि आप अपने भीतर की ओर मुड़ कर ही रहेंगे। यह सोच और भावों से परे के रूपांतरण की चीज है।
संतुलन से भरी दुनिया बनाना चाहते हैं हम
यह प्रतिष्ठा इससे पहले हमारे द्वारा किए गई बाकी सभी प्रतिष्ठाओं से बिलकुल अलग होगी। इससे पहले इस प्रतिष्ठा की तुलना में इसी तरह की एक प्रतिष्ठा ध्यानलिंग की हुई थी, दोनों में फर्क बस इतना है कि वह इससे कहीं ज्यादा जटिल थी।
यह प्रतिष्ठा इससे पहले हमारे द्वारा किए गई बाकी सभी प्रतिष्ठाओं से बिलकुल अलग होगी। इससे पहले इस प्रतिष्ठा की तुलना में इसी तरह की एक प्रतिष्ठा ध्यानलिंग की हुई थी, दोनों में फर्क बस इतना है कि वह इससे कहीं ज्यादा जटिल थी।
यह प्रतिष्ठा कहीं ज्यादा सरल होगी, लेकिन ध्यानलिंग और योगेश्वर दोनों ही मुक्ति की ओर केंद्रित हैं। हालांकि ज्यादातर लोग मुक्ति की कामना करते हैं, फिर भी वे किसी न किसी चीज़ में उलझे रहते हैं। उनकी मानसिक अवस्था और सामाजिक स्थिति ऐसी हो चुकी है कि उन्हें लगता है कि वे केवल बंधन में रह कर ही सुरक्षित रहेंगे। हम दुनिया में इस सोच को बदलना चाहते हैं। आप बंधन में बंधकर सुरक्षित नहीं हैं। आप जब केवल स्वतंत्र होंगे, तभी आप सुरक्षित होंगे। लेकिन एक भयभीत या डरे हुए मन को आजादी डरावनी लगती है, क्योंकि तब आपको समझ में ही नहीं आता कि आप किसे थामे या किसका सहारा लें। अगर आप संतुलित नहीं हैं तो आपको किसी चीज को पकड़ने या उसका सहारा लेने की जरूरत पड़ती है। अगर आप एक आदर्श संतुलन में हैं तो आपको किसी चीज को पकड़ने या किसी का सहारा लेने की जरूरत नहीं होती। मजबूत लोगों को चलते समय कभी दीवार पकड़कर चलने की जरूरत नहीं होती, केवल कमजोर या अशक्त लोगों को ही इसकी जरूरत होती है। हम एक ऐसी दुनिया बनाना चाहते हैं जहां जीवन स्फूर्तिमान, चपल, संतुलित और स्थायी हो। एक बार जब आपमें किसी चीज को पकड़ने, थामने और बंधन बनाने की जरूरत खत्म हो जाएगी तो आपकी स्वाभाविक चाहत या आकांक्षा मुक्ति ही होगी।
112 तरीके सरल रूपों में उपलब्ध होंगे
हम लोग दुनिया के भविष्य की तैयारी कर रहे हैं। अभी तक हम लोगों ने धरती पर जितने भी ढांचे तैयार किए हैं, वो आने वाले दशकों में भरभरा कर गिर पड़ेंगे। तब लोगों में मुक्ति की चाहत बढ़ने लगेगी।
हम उन एक सौ बारह तरीकों को उपलब्ध कराना चाहते हैं, जिनके जरिए आप उस परम प्रकृति तक पहुंच सकें, जो संपूर्ण मानवता के लिए उपलब्ध है। आज के दौर में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हम इन विधियों या तरीकों को सरलतम तरीके से आपको उपलब्ध कराएंगे।
तब आदियोगी अपनी मुक्ति की चाह में प्रयासरत लोगों के लिए एक बेहद अहम जरिया बनेंगे। आदियोगी की मौजूदगी ऐसी होगी, जिसे लोग चाह कर भी अनदेखा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ये धरती का सबसे महान चेहरा होगा। यह विशालता किसी अन्य चीज की तुलना में नहीं होगी, बल्कि उस संभावना की वजह से होगी, जो यह खोलेगा। जो लोग मुक्ति की कामना कर रहे हैं, उनके लिए एक यह शानदार द्वार होगा। यह आपको हर बांधनेवाली चीज से मुक्त करेगा, यही लिंग का स्वभाव है।
आदियोगी की भव्य मौजूदगी दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित करेगी। हम उन एक सौ बारह तरीकों को उपलब्ध कराना चाहते हैं, जिनके जरिए आप उस परम प्रकृति तक पहुंच सकें, जो संपूर्ण मानवता के लिए उपलब्ध है। आज के दौर में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए हम इन विधियों या तरीकों को सरलतम तरीके से आपको उपलब्ध कराएंगे। अगह हम इसे सफलतापूर्वक कर पाए तो यह दुनिया एक बेहतर जगह होगी। इस प्रतिष्ठा के दौरान आप देखेंगे कि कैसे एक भौतिक वस्तु एक जीवंत शक्ति बन जाती है।
सिर्फ प्रतिष्ठा के अनुभव के लिहाज से ही नहीं, बल्कि इसे साकार करने के लिहाज से भी यह अपने आप में जीवनभर में एक बार होने वाला अनुभव है। मैं चाहता हूँ कि आप सब इसमें शामिल होकर इसका हिस्सा बनें।
Love & Grace