बिना सबूतों के बदनाम करने की कोशिशें
पिछले 25-30 वर्षों में, कुछ छोटे, पर अपनी आवाज़ चारों ओर फैलाने वाले शातिर गुटों ने बिना किसी तथ्य के ईशा फाउंडेशन की लगातार निंदा की है। आज, नकली समाचार, पेड मीडिया और सोशल मीडिया की मदद से ये गुट झूठ का एक व्यवस्थित जाल बुन रहे हैं, और ईशा फाउंडेशन को बदनाम करने के कपटी तरीके खोज रहे हैं। बावजूद इसके कि किसी भी सरकारी निकाय द्वारा एक भी अदालती मामला दायर नहीं किया गया है, इन समूहों ने कई बुरे मुकदमों की कल्पना की है और बार-बार फाउंडेशन को विवादों में फंसाने और प्रेस के माध्यम से फाउंडेशन की बुराई करने का प्रयास किया है। यहाँ तक कि कोविड-19 महामारी के चरम पर, शायद कुछ गैर-जिम्मेदाराना गुटों से ध्यान हटाने के लिए, यह अफवाह फैलाने का प्रयास किया गया कि ईशा योग केंद्र से ही कोरोना वायरस फैला है, जबकि वास्तव में परिसर के भीतर कोरोना का एक भी मामला सामने नहीं आया है। आज ईशा फाउंडेशन दुनिया भर में 1.1 करोड़ स्वयंसेवकों और एक अरब से अधिक अनुयायियों के जीवन को छू चुकी है। चूंकि उनके द्वारा बार-बार सच्चाई को प्रकाशित करने की अपील की जा रही है, इसलिए आज हम फैलाए गए ‘झूठों’ और ‘सच्चाई’ का एक संकलन प्रकाशित कर रहे हैं।
झूठ
सच्चाई
झूठ
ईशा फाउंडेशन ने जंगल की ज़मीन पर कब्जा किया है
सच्चाई
जिस ज़मीन पर ईशा योग केंद्र स्थित है, वह अलग-अलग व्यक्तियों से कानूनी रूप से खरीदी गई 100% पट्टा ज़मीन है। तमिलनाडु वन विभाग के अधिकारियों ने ऊपर दिए गए तथ्यों की सच्चाई को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है और यह साफ़ किया है कि ईशा योग केंद्र ने जंगल की ज़मीन का कोई भी हिस्सा नहीं लिया है और आसपास के पेड़-पौधों और जीवों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है। दस्तावेज़ संदर्भ संख्या CFCIT/07/2013 को तमिलनाडु वन विभाग ने माननीय मद्रास उच्च न्यायालय और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में झूठे पर्यावरण समूहों द्वारा दायर रिट याचिकाओं के लिए अपने जवाबी हलफनामे में प्रस्तुत किया था। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर अपने जवाबी हलफनामे में इसी बात को दोहराया है।
अगर कोई व्यक्ति या समूह इसकी सच्चाई जानना चाहते हैं, तो वे इसे सर्वेक्षण मानचित्रों, राजस्व अभिलेखों, पंचायत अभिलेखों और भूमि निर्देशांकों के संयोजन के माध्यम से जान सकते हैं।
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ईशा योग केंद्र एलीफैंट कॉरिडोर पर स्थित है
सच्चाई
एलीफैंट कॉरिडोर 100 मीटर से 1 कोलोमीटर की चौड़ाई वाली भूमि की संकरी पट्टियां होती हैं, जो हाथियों के दो आवासों के बीच आने-जाने के मार्ग का काम करती हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार ने एलीफैंट टास्क फोर्स की वार्षिक रिपोर्ट ‘गजह’ के माध्यम से सभी एलीफैंट कॉरिडोर्स की सूची प्रकाशित की है। ईशा योग केंद्र इनमें से किसी भी एलीफैंट कॉरिडोर पर स्थित नहीं है। वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट, ‘राइट ऑफ पैसेज,’ हाथियों के संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिकों द्वारा संपादित की गई है - ईशा योग केंद्र उनके द्वारा सूचीबद्ध किसी भी एलीफैंट कॉरिडोर पर मौजूद नहीं है।
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112-फुट के आदियोगी, ध्यान खींचने के उद्देश्य से बनाई गई बस एक और मूर्ति है, और ईशा फाउंडेशन का अहंकार दर्शाती है
सच्चाई
आदियोगी को दुनिया को एक प्रतीक, एक प्रेरणा के रूप में भेंट किया गया है, ताकि मानवता खुशहाली पाने के लिए अस्पष्ट और विभाजित करने वाले तरीकों को छोड़कर, एक वैज्ञानिक और व्यवस्थित नजरिया अपना सके। विचारधाराओं, विश्वास प्रणालियों और फिलोसफियों ने मानवता को हमेशा से विभाजित किया है, जिससे युद्ध और नरसंहार हुए हैं। आदियोगी की प्रतिमा की स्थापना के पीछे का मूल मिशन है मानवता को ‘धर्म’ से ‘जिम्मेदारी’ की ओर ले जाना।
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आदियोगी की प्रतिमा की स्थापना के लिए ईशा फाउंडेशन ने जंगल काटे
सच्चाई
बाकी योग केंद्र की तरह ही, आदियोगी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए खरीदी गई भूमि, निजी स्वामित्व वाली भूमि है। आरक्षित वन-भूमि इस निजी-भूमि की सीमा के कहीं आस-पास भी नहीं है। आदियोगी की प्रतिमा की स्थापना के लिए जिला वन अधिकारी ने भी अनापत्ति प्रमाण पत्र (एन.ओ.सी.) जारी किया है। ईशा फाउंडेशन को जिला कलेक्टर, कोयम्बतूर, वन विभाग और बी.एस.एन.एल. सहित सभी आवश्यक अधिकारियों से स्वीकृति प्राप्त है। 112 फुट की आदियोगी की प्रतिमा के लिए सरकार द्वारा प्रमाणित इंजीनियर ने संरचना स्थिरता प्रमाणपत्र (structural stability certificate) भी जारी किया है।
आप आदियोगी छवि को बदनाम करने के लिए लगाए गए आरोपों के जाल के बारे में पूरी सच्चाई यहां पा सकते हैं।.
ईशा फाउंडेशन ने पर्यावरण में सुधार लाने के लिए जो कार्य किए हैं, उनके बारे में जानने के लिए यहां पढ़ें।.
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ईशा योग केंद्र के अंदर की इमारतें अवैध रूप से बनाई गई हैं
सच्चाई
शुरुआत में, ईशा योग केंद्र की इमारतों की योजना बनाते समय, हमने मानक प्रक्रिया के हिसाब से आवेदन किया और पंचायत से स्वीकृतियां प्राप्त कीं। वन विभाग की एन.ओ.सी. को छोड़कर, हमें दूसरी सभी एन.ओ.सी. प्राप्त थीं। वन विभाग की एन.ओ.सी. इसलिए नहीं मिली क्योंकि संबंधित अधिकारी में व्यक्तिगत बैर की भावना थी और हमारे बार-बार अपील करने के बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि यह सच है कि उस समय हाथ में एच.ए.सी.ए की मंजूरी न होने के बावजूद हमने काम जारी रखा और निर्माण कार्य पूरा किया। तमिलनाडू वन विभाग की एक उच्च स्तरीय समिति ने उस अधिकारी की बुरे इरादों से बनाई गई झूठी रिपोर्ट को खारिज कर दिया। फिर वन विभाग के द्वारा कार्योत्तर एन.ओ.सी. प्रदान की गई। हिल एरिया कंजर्वेशन अथॉरिटी ने चेन्नई में आयोजित अपनी 59वीं बैठक के माध्यम से सभी इमारतों को तकनीकी मंजूरी दी और फाउंडेशन ने इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधा शुल्क के तहत टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को देय राशि का भुगतान कर दिया है। इमारतों को अब स्वीकृति प्राप्त है और आज ईशा योग केंद्र परिसर के भीतर सभी इमारतों के पास सभी आवश्यक अनुमतियां हैं।
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आध्यात्मिक लोगों को भटकते हुए भिक्षुओं की तरह मजबूत होना चाहिए, और उन्हें फूस की झोपड़ियों में फल और जामुन खाकर खुश रहना चाहिए। उन्हें रहने के लिए अच्छी जगह, शौचालय, भोजनालय वगैरह की ज़रूरत नहीं होती।
सच्चाई
सदियों से, आध्यात्मिक प्रक्रिया को भारत में एक मुख्य धारा की परंपरा के रूप में प्रसारित किया गया था, जो समाज के सभी वर्गों के लिए उपलब्ध थी और राजाओं, व्यापारियों और सामाजिक नेताओं द्वारा पोषित की जाती थी। कई वर्षों के दौरान, भारत पर कब्ज़ा करने वाली ताकतों की कठोरता की वजह से, यह प्रक्रिया दबा दी गई, और अंत में यह समाज के छोटे हिस्से को ही उपलब्ध रही। समय के साथ, यह मान्यता पैदा हो गई कि जो लोग आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, उन्हें बंजर, दीन-हीन जीवन जीना चाहिए, केवल फलों और सूखे पत्तों पर जीवित रहना चाहिए, जंगलों और गुफाओं में रहना चाहिये। यह विनाशकारी विचार लाखों लोगों के लिए आंतरिक विज्ञान के दरवाजे बंद करने के लिए काफी रहा है।
ईशा में, सद्गुरु का प्रयास और कार्य यही है कि आध्यात्मिक प्रक्रिया को पर्वत की चोटियों से नीचे लाया जाए और उसे लोगों के घरों, शहरों और गांवों तक पहुंचा दिया जाए। अगर हमें आध्यात्मिक प्रक्रिया को मुख्य धारा बनाना है, तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम वर्तमान सच्चाई के साथ काम करें और इस गहरे विज्ञान को लोगों तक पहुंचाने के लिए सही माहौल तैयार करें। हम एक ऐसे समय और युग में रह रहे हैं, जहां हमारे पास जंगलों में रहने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं और न ही कोई गुफा पास में है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इंसानों ने न केवल प्रकृति में जीवित रहने और अपना भोजन खोजने की अपनी सहज क्षमता खो दी है, बल्कि थोड़ी सी असुविधाजनक परिस्थितियों में जीने की क्षमता भी।
हमें विश्वास है कि आप सभी हमारे केंद्र में उपलब्ध न्यूनतम स्तर की सुविधाओं की सराहना करेंगे, जिसमें पौष्टिक भोजन, आरामदायक बिस्तर, साफ़-सुथरे शौचालय और बिजली शामिल हैं।
झूठ
2016 में दो भिक्षुओं को बंदी बना कर रखा गया था
सच्चाई
वह झूठों का घालमेल था। निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा उकसाई गई उस याचिका में आरोप लगाया गया था कि दो युवतियों का अपहरण करके, उनकी इच्छा के खिलाफ, उन्हें योग केंद्र में रखा गया है। मीडिया में मौजूद कुछ लोगों ने हमें सूचित किया कि जुलाई-अगस्त 2016 में इस महीने भर चलने वाले झूठे अभियान को बनाए रखने के लिए, हम पर आरोप लगाने वालों को कई करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
शादी करने के सामाजिक दबाव के बावजूद, दो वयस्क महिलाएं - जो अच्छी तरह से शिक्षित और जागरूक हैं - अपनी मर्जी से ईशा योग केंद्र में आईं, और उनका एकमात्र उद्देश्य था आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना। जिसने भी उनके साथ बातचीत की है, उसे यह सोचकर अजीब लगेगा कि कोई उनकी मानसिक क्षमताओं पर भी सवाल उठा सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (हेबिअस कोर्पस प्ली) को अदालत ने स्वाभाविक रूप से खारिज कर दिया था।
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झूठ
श्रीमती विजयकुमारी के निधन को लेकर विवाद हुआ था; दाह संस्कार गोपनीय तरीके से किया गया था
सच्चाई
23 जनवरी 1997 को, विज्जी माँ ने महासमाधि प्राप्त की। महासमाधि प्राप्त करना कई आध्यात्मिक साधकों का परम लक्ष्य रहा है - इसे ही गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण कहा है। महासमाधि का अर्थ है कि सिद्ध योगी, जीवन प्रक्रिया पर अपनी महारत की मदद से, जागरूकता के साथ, किसी शुभ समय पर अपने भौतिक शरीर से बाहर निकलना चुनते हैं। एक विशेष समय पर, जिसे विज्जी माँ ने खुद चुना था - जिसके बारे में उनकी 7 साल की बेटी समेत सभी करीबी लोगों को जानकारी थी – वे सहजता से, अपनी इच्छा से शरीर से बाहर निकल गईं। आठ महीने बाद, वे लोग जो उस समय सद्गुरु के कार्यों के खिलाफ थे, उन्होंने विज्जी माँ की महासमाधि का इस्तेमाल पुलिस में शिकायत दर्ज करने के एक अवसर के रूप में किया, जिसमें दावा किया गया था कि उनके निधन पर किसी तरह की गड़बड़ी का संदेह होना चाहिए। उनका मुख्य आरोप यह था कि दाह संस्कार गोपनीय तरीके से किया गया था। सच्चाई यह है कि उनका दाह संस्कार उनके निधन के 12 घंटे बाद 2,000 से अधिक लोगों की उपस्थिति में हुआ था। इन झूठे आरोपों का पर्दाफाश करने के लिए, हमने पुलिस और न्यायपालिका से पूरी जांच करने का अनुरोध किया, और उन्होंने पाया कि वह शिकायत सरासर झूठी थी और सिर्फ बदनाम करने के उद्देश्य से की गई थी। न्यायालय द्वारा 08/01/1999 पर जारी किए गए आदेश के अनुसार वह शिकायत खारिज कर दी गई थी।
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झूठ
ईशा लोगों को खुश रखने के लिए ‘लाफिंग गैस’ का इस्तेमाल करती है
सच्चाई
हम आमतौर पर मूड को बेहतर बनाने के लिए एक अलग चीज़ का इस्तेमाल करते हैं। इसे ‘योग’ कहते हैं।
झूठ
ईशा में लोगों के गुर्दे चुरा लिए जाते हैं
सच्चाई
हम आशा करते हैं कि ये बेतुके लोग जानते हैं कि गुर्दा क्या होता है और वह शरीर में कहाँ होता है। ऐसा लगता है किसी ने उनका दिमाग चुरा लिया है।
झूठ
ईशा में हजारों लोगों को बेहोशी की अवस्था (कोमा) में रखा जाता है
सच्चाई
सच्चाई को समझने के लिए कृपया ईशा योग केंद्र आएं, और यहाँ की सक्रियता और गतिशीलता का अनुभव करें।
झूठ
ईशा महाशिवरात्रि एक व्यावसायिक कार्यक्रम है
सच्चाई
महाशिवरात्रि मनाने के लिए ईशा योग केंद्र में आने वाले हजारों भक्तों में से केवल कुछ सौ भक्त ही वहाँ बैठने के लिए भुगतान करते हैं। हम इन गिने-चुने लोगों के आभारी हैं, क्योंकि उनकी मदद की वजह से, हजारों भक्त व्यक्तिगत रूप से और करोड़ों भक्त टीवी और इन्टरनेट के माध्यम से कार्यक्रम में नि:शुल्क हिस्सा ले पाते हैं। ईशा योग केंद्र में होने वाले महाशिवरात्रि समारोह में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को नि:शुल्क अन्नदान परोसा जाता है।
झूठ
इस बात पर संदेह है कि ईशा फाउंडेशन कानून का पालन करती है
सच्चाई
ईशा फाउंडेशन एक कानून का पालन करने वाली संस्था है। हमारे कार्य का हर पहलू 100% देश के कानूनों के अनुसार चलता है।