विराट: सद्‌गुरु, हम जीवन में उलझे बिना कैसे पूरी तरह से उससे जुड़ सकते हैं? ज्यादातर मेरी पहचान तभी बन पाती है, जब मैं सौ फीसदी इसके साथ जुड़ाव महसूस करता हूं। अगर मैं किसी चीज से पूरी तरह से जुड़ा हुआ नहीं हूं, तो मैं उसके साथ अपनी पहचान भी नहीं बना पाता।

सद्‌गुरु: फिलहाल आप दुनिया में जो कुछ भी करते हैं, वह सब आप अपने शरीर और मन का इस्तेमाल करके करते हैं। जैसे ही आप इन दो चीजों से अपनी गहरी पहचान बनाते हैं, इन दोनों की बनाई हर चीज से भी आप अपनी पहचान बनाते जाएंगे। आपको अपने जीवन में लाखों चीजों के साथ काम करने की जरूरत नहीं है। अब घर जाकर ये कहना कि ‘अच्छा, मैं इस बर्तन के साथ पहचान नहीं बनाऊंगा,’ ‘यह चाय की केतली है, मैं इसके साथ भी पहचान नहीं स्थापित करूंगा,’ ‘दीवार पर यह पेंट है, उससे भी पहचान नहीं बनाऊंगा’। ये भी एक तरह की प्रक्रिया हैं, लेकिन आपको जानना चाहिए कि ये सारी चीजें इसलिए होती हैं, क्योंकि आपने अपने शरीर व मन के साथ अपनी पहचान बना ली है।

इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के दौरान हम लोग आपको जो अभ्यास सिखाते हैं, वह आपको इन चीजों से दूरी बनाना सिखाता है। अगर आप अपने अभ्यास पर टिके रहेंगे तो यह आपके शरीर और आपके बीच थोड़ी दूरी बना देगा। इसी तरह आपके मन और आपके बीच भी थोड़ा फासला बन जाएगा। कार्यक्रम के दौरान कई बार ऐसा होता है कि लोगों के ब्लैडर भरे होते हैं, तकलीफ हो रही होती है, बाथरूम भी पास ही होता है, फिर भी लोग आराम से बैठे रह पाते हैं। अगर ये लोग अपनी साधना नहीं कर रहे होते, तो सवाल ही नहीं उठता कि वे लोग इस तरह वहां बैठ पाते। वे लोग वहां से भाग खड़े होते। लेकिन अब उनमें और उनके शरीर में, उनमें और उनके मन में थोड़ी दूरी आ गई है। वह समझ पा रहे हैं कि वे खुद क्या हैं और उनका शरीर व मन क्या है? हो सकता है कि आप सचेतन रूप से यह चीज महसूस न कर पाते हों, लेकिन ज़रा गौर कीजिए कि जीवन के कितने पहलुओं में आप व आपके शरीर के बीच, और आप व आपके मन के बीच एक खास तरह का फासला है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

 

हो सकता है कि आप उतने सचेत न हों कि उस फासले को महसूस कर पाएं, लेकिन गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ऐसा हो रहा है। अब आपके तन व मन की छोटी-छोटी चिंताएं आपसे दूर होंगी। इसी चीज की आज जरूरत है। एक दिन आप महसूस करेंगे कि आपके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज, जिसे लेकर आपको लगता था कि आप उनके बिना जी ही नहीं पाएंगे, अचानक अब वह आपके लिए उतनी मायने ही नहीं रखती। लेकिन साथ ही आपके अंदर उसके प्रति कोई दुर्भावना भी नहीं होगी। आप हर चीज पहले से भी बेहतर तरीके से करेंगे, लेकिन अगर कुछ घटित होता है, तो अब आपको इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसा इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि आपने किसी दूसरे के साथ कुछ करने की कोशिश की, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने अपने ऊपर काम करने की कोशिश की।

कोई अपना परिवार छोडऩा चाहता है, तो कोई अपने पति या पत्नी को छोडऩा चाहता है। आप अपने पति या पत्नी को छोडक़र आजाद होना चाहते हैं, लेकिन आप आजाद नहीं होंगे। अगर आप ऐसा करना चाहते हैं, तो योग एक अच्छा बहाना होगा। महत्वपूर्ण चीज है कि आप अपना ही शरीर और मन छोडऩा चाहते हैं। दूसरे शरीर से आपको इसलिए आसक्ति है, क्योंकि आपको अपने शरीर से आसक्ति है। चूंकि आप इस शरीर से आसक्त हैं, इसलिए आप किसी दूसरे से भी आसक्त हैं। अगर इस शरीर में आपकी आसक्ति नहीं है, तो फिर किसी और के साथ आसक्ति का सवाल ही कहां पैदा होता है?

 

इस स्थिति पर बौद्धिक रूप से भी पहुंचा जा सकता है। अगर आप बस अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें और खुद को अपने तन व मन से दूर कर लें तो इसे ही ‘ज्ञान योग’ कहा गया है। इसके लिए आपको अपने मन पर काम करना होगा। आपको इसे इस तरीके से धारदार बनाना होगा कि यह सबसे तेज धारदार रेजर बन जाए, जिससे आप हर चीज को काटकर गुजर सकते हैं। इसके लिए बहुत सारी मेहनत की जरूरत होती है। यही वजह है कि हम दूसरे तरीकों का भी सहारा ले रहे हैं, क्योंकि अधिकांश लोगों के पास उस तरह की बुद्धि नहीं होती। कुछ दुर्लभ या गिने-चुने लोगों के पास ही इस तरह की बौद्धिक क्षमता होती है कि वे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर खुद को मुक्त कर सकें।