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प्रश्न:आप कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति परमानन्द से भरा हुआ हो तो वह अधिक लचीला, नरम हो जाता है, ज्यादा मुक्त रहता है, व्यक्तित्व के बोझ से दबा हुआ नहीं रहता। ये परमानन्द वास्तव में क्या है ? सदगुरु, क्या आप सच्चे परमानन्द को स्पष्ट करेंगे?

सदगुरु: मैं आप को ये कैसे समझाऊं ? यह प्रश्न परमानन्द के स्वभाव के बारे में गलतफहमी होने के कारण उत्पन्न हो सकता है। आज तो भ्रमित करने वाले नशे की दवायें भी ब्लिस(परमानन्द) के नाम से बेची जाती हैं। अगर आप पश्चिम में "ब्लिस" कहेंगे तो उन्हें यही लगेगा कि आप नशे की किसी खास गोली की बात कर रहे हैं।

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सच्चा परमानन्द और झूठा परमानन्द जैसा कुछ नहीं होता। जब आप सत्य में होते हैं तभी परमानन्द में होते हैं। जब आप वास्तव में सत्य से जुड़ेंगे तब ही परमानन्द में होंगे। परमानन्द की अनुभूति होना अथवा परमानन्द की अनुभूति न होना, ये आप के लिये एकदम सटीक परीक्षण की तरह है जो आप को बताता है कि आप सत्य में हैं अथवा नहीं हैं। ये प्रश्न शायद इस खास दिमागी सोच में से आ रहा है, "अगर मैं सूर्यास्त देख रहा हूँ और एकदम आनंद में हूँ तो क्या ये सच्चा परमानंद है, मैं प्रार्थना कर रहा हूँ और आनंद में हूँ, तो क्या ये सच्चा परमानंद है? या मैं अगर ध्यान कर रहा हूँ और आनंदमय हूँ तो क्या ये सच्चा परमानन्द है"?

अधिकतर लोग सुख को परमानन्द समझ लेते हैं। आप कभी भी सुख को हमेशा के लिये टिका कर नहीं रख सकते। लेकिन परमानन्द की अवस्था का अर्थ है 'वो अवस्था जो किसी पर भी आधारित नहीं है'। सुख हमेशा किसी व्यक्ति या वस्तु या परिस्थिति पर आधारित होता है। परमानन्द की अवस्था किसी पर भी आधारित नहीं होती। ये आप के स्वभाव के कारण ही होती है। एक बार जब आप इसके साथ जुड़ जाते हैं तो आप इसमें ही होते हैं, बात बस यही है।

परमानन्द की अवस्था कोई ऐसी बात नहीं है जो आप कहीं बाहर से कमा कर लायें। ये वो है जो आप अपने ही अंदर गहराई में उतर कर पाते हैं।

परमानन्द की अवस्था कोई ऐसी बात नहीं है जो आप कहीं बाहर से कमा कर लायें। ये वो है जो आप अपने ही अंदर गहराई में उतर कर पाते हैं। ये एक कुआँ खोदने जैसा है। आप अगर अपना मुँह खोल कर प्रतीक्षा करें कि जब बरसात होगी तब उसकी बूंदें आप के मुँह में गिरेंगी, तो उनमें से कुछ बूँदें आप के मुँह में गिर भी सकती हैं। लेकिन अपनी प्यास बुझाने का ये तरीका बहुत ही हताशाजनक है। और बारिश हमेशा नहीं होती। दो - एक घंटे होगी और फिर बंद हो जायेगी।

यही कारण है कि आप अपना कुआँ खोदते हैं जिससे आप को साल भर पानी मिलता रहे। आप जिसे सच्चा परमानन्द कह रहे हैं, वो बस यही है। आप ने अपने अंदर अपना कुआँ खोद लिया है, और वो पानी प्राप्त कर लिया है जो आप के लिये हमेशा टिका रहेगा। ये वो पानी नहीं है जो आप को बरसात के समय मुँह खोल कर, उसके नीचे खड़े होने से मिलेगा। नहीं, ये वो पानी है जो हमेशा ही आप के पास है। यही परमानन्द है।

Editor’s Note: There are only two kinds of people in the world, says Sadhguru: mystics and mistakes. Sharp, piercing and unsparing, this book demystifies mysticism, in the mystic’s own words. Find more of Sadhguru’s insights in the ebook “Of Mystics and Mistakes”, available on Isha Downloads.