सदगुरु: मूल रूप से आप जिसे 'मैं' कहते हैं, जिसे आप मानवीय ढाँचे के रूप में देखते हैं वह एक खास सॉफ्टवेयर का काम है। आज हम जानते हैं कि सॉफ्टवेयर का अर्थ है - याददाश्त, स्मृतियाँ। चाहे वह व्यक्तिगत मानवीय शरीर हो या विशाल ब्रह्मांडीय शरीर, सब कुछ मूल रूप से पाँच तत्वों से बना है - मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश। और इन पाँच तत्वों की भी अपनी अलग स्मृति है। यही कारण है कि वे एक विशेष ढंग से व्यवहार करते हैं।

बस एक विचार या भावना के साथ आप पानी की रासायनिक संरचना को बदले बिना, उसकी आण्विक संरचना को बदल सकते हैं। बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के, वही पानी विष भी बन सकता है और जीवन का अमृत भी। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार की स्मृति अपने साथ ला रहा है।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

वह जो कल मिट्टी थी, आज हमारा भोजन बन जाती है। कल जो भोजन था, वह मनुष्य बन जाता है। वही भोजन वापस मिट्टी बन जाता है। तो यह क्या और कैसे हो रहा है ? मिट्टी किस तरह से एक फल, फूल या कुछ और चीज़ बन जाती है ? ये सिर्फ बीज में मौजूद स्मृति (याददाश्त) की वजह से होता है। कैसे कोई अपने पिता या अपनी माँ की तरह दिखता है ? ये बस वो स्मृति है जो उस एक कोशिका में होती है और आगे बढ़ती है। सामग्री वही है - बस वही पाँच तत्व। लेकिन ये स्मृति है जो आगे बढ़ती है और मिट्टी को भोजन और भोजन को मनुष्य बनाती है।

और बस एक विचार के साथ, एक भावना के साथ और अपनी ऊर्जाओं पर कुछ खास नियंत्रण के साथ आप इस स्मृति, याददाश्त पर उस हद तक जबरदस्त प्रभाव डाल सकते हैं कि इसके बारे में सब कुछ बदल जायेगा।

तीर्थ का विज्ञान

आज ऐसे बहुत सारे वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं जो दिखाते हैं कि बस एक विचार या भावना के साथ आप पानी की रासायनिक संरचना को बदले बिना, उसकी आण्विक संरचना को बदल सकते हैं। बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के, वही पानी विष भी बन सकता है और जीवन का अमृत भी। यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें किस प्रकार की स्मृति है।

हमारी दादी नानी हमें बतातीं थीं कि हमें हर किसी के हाथ से पानी या भोजन नहीं ले लेना चाहिये - हमें ये सिर्फ उन लोगों के हाथ से लेना चाहिये जो हमें प्रेम करते हैं, हमारी परवाह करते हैं। यही कारण है कि भारत के परंपरावादी घरों में लोग पीतल के अच्छे बर्तन रखते हैं, जिन्हें वे रोज धो कर साफ करते हैं, उनकी पूजा करते हैं और तब ही उनमें पीने का पानी भरते हैं। मंदिरों में जब तीर्थप्रसाद के रूप में एक बूंद भी पानी देते हैं तो हम सभी, करोड़पति धनवान भी, उसे अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ ग्रहण करते हैं क्योंकि वैसा पानी आप किसी भी कीमत पर कहीं से खरीद नहीं सकते। ये पानी ही है जो दिव्यता की स्मृतियाँ रखता है। यही तीर्थ है। लोग इसे पीना चाहते हैं जिससे ये उनको, उनके अंदर की दिव्यता याद दिलाये।

भारत में आज ऐसे बहुत से शहर हैं जहाँ लोग तीन दिनों में एक बार ही नहा पाते हैं। भारत की संस्कृति, हमारी परम्परायें ऐसी हैं कि चाहे कुछ भी हो, चाहे हम खाये नहीं, पर स्नान अवश्य करते हैं।

आप को लगता था ये सब अंधश्रद्धा है पर अब वैज्ञानिक भी यही बातें कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है कि जब पानी जबरदस्त रूप से पम्पिंग कर के ऊपर चढ़ाया जाता है तथा लेड और प्लास्टिक के पाईपों में से, कई बार मुड़ते हुए,ऊपर नीचे होते हुए गुज़रता है और आप के घरों तक आता है तो उसकी आण्विक संरचना बदल जाती है। इन सब मोड़ों और झुकावों के कारण पानी पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पानी में याददाश्त है, स्मृतियाँ हैं और आप के भौतिक अस्तित्व का, आप के शरीर का 72% भाग पानी ही है। आप बस एक लंबी बोतल हैं। तो अगर आप एक बर्तन में रखे पानी को सुखमय, आनंदमय बना सकते हैं तो क्या अपने शरीर के अंदर के पानी को सुखमय, आनंदमय नहीं बना सकते ? यही योग का विज्ञान है। भूत का अर्थ है -तत्व, और भूत शुद्धि का अर्थ है शारीरिक व्यवस्था के अंदर पाँच तत्वों की सफाई - यानि शुद्धि। भूत शुद्धि, योग का सबसे मूल पहलू है। योग का जो भी प्रकार आप करते हैं, वह भूत शुद्धि क्रियाओं का ही एक छोटा हिस्सा है।

भारत में पानी की कठिन स्थिति

आप के जीवन के लिये पानी अत्यंत आवश्यक तत्व है लेकिन आज भारत पानी की जिस स्थिति का सामना कर रहा है वह वास्तव में बहुत कठिन है। 1947 में भारत में जितना पानी प्रति व्यक्ति लोगों को मिलता था, आज उसका बस 18% ही मिल रहा है। भारत में आज ऐसे बहुत से शहर हैं जहाँ लोग तीन दिनों में एक बार ही नहा पाते हैं। भारत की संस्कृति, हमारी परम्परायें ऐसी हैं कि चाहे कुछ भी हो, चाहे हम भोजन न करें, पर स्नान अवश्य करते हैं। अभी ये परिस्थिति हो रही है कि बहुत से लोगों को रोज़ नहाने को नहीं मिल रहा है। ये कोई विकास या प्रगति की बात नहीं है, ये कोई खुशहाली नहीं है। ऐसा लगता है कि अब वो दिन आने वाले हैं जब हमें पानी भी एक दिन छोड़ कर पीना पड़ेगा। एक राष्ट्र के रूप में हम पर्याप्त रूप से संगठित नहीं हैं, न ही हमारे पास इतने साधन हैं कि हम एक स्थान से दूसरे स्थान तक लोगों के लिये पीने का पानी ले जा सकें। लाखों लोग बिना पानी के मर जाएँगे।

कुछ साल पहले जब मैं हिमालय में घूम रहा था तो मैं गंगा नदी पर बने टेहरी बाँध पर पहुँचा। मुझे मालूम पड़ा कि बाँध में पानी का स्तर इतना कम हो चुका था कि बस 21 दिनों का ही पानी बचा था। अगर 21 दिनों में बारिश न होती, तो वहाँ से आगे गंगा न बहती। क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अगर गंगा बहनी बंद हो जाये तो भारत के जनमानस पर इसका क्या असर पड़ेगा? गंगा हमारे लिये केवल एक नदी नहीं है। आज कुछ आध्यात्मिक समूह हैं जो गंगा को बचाने के, उसे पुनर्जीवित करने के प्रयत्नों में लगे हुए हैं और वे इस बात से बहुत चिंतित हैं कि गंगा को किस तरह बचाया जाये, कैसे उसे संभाला जाये? भारतीय लोगों का गंगा से एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। शहरों के लोग शायद इस बात को ना समझें, पर एक सामान्य भारतीय के लिये, गंगा जीवन से भी बड़ी है - ये सिर्फ नदी नहीं है, ये उससे भी ज्यादा है। यह हमारे लिये जीवन का एक प्रतीक है।

अगर बरसात आने में दो - तीन सप्ताह की भी देर हो जाती, जो किसी भी वर्ष हो सकता है,तो बाँध से नीचे की तरफ हमें गंगा दिखायी ही न देती। तो अब स्थिति बस ऐसी है - या तो हम जागरूकतापूर्वक जनसंख्या पर नियंत्रण करें या फिर प्रकृति ये काम निर्दयतापूर्वक करेगी। हमारे सामने, चुनाव के बस यही विकल्प हैं। ये मेरी नीति नहीं है कि हम अपनी जनसंख्या न बढ़ायें। बात बस ये है कि अगर हम स्वयं जागरुकतापूर्वक इसे नियंत्रित नहीं करते तो प्रकृति इसे निर्दयी ढंग से करेगी। हम अगर मनुष्य हैं तो हमें यह काम स्वयं ही सचेतन रूप से करना चाहिये, ताकि हमें किसी खराब परिस्थिति का सामना न करना पड़े।