नमस्ते का मतलब क्या है?

सद्गुरु: आप जब किसी को देखते हैं, चाहे वो आपके कामकाज की जगह में हो, गली -रास्ते में हो, घर में हो या और कहीं भी हो, मनुष्य की बुद्धिमत्ता का स्वभाव ही ऐसा है कि जैसे ही वो कुछ देखती है, तो एक फैसला कर लेती है -"उसमें ये ठीक है, उसमें ये ठीक नहीं है, वो अच्छा है, वो अच्छा नहीं है, वो सुंदर है, वो बदसूरत है" - ऐसी सभी तरह की बातें! आपको इसके बारे में जागरूक हो कर सोचना भी नहीं पड़ता। एक पल में ही, ये आकलन और फैसले हो जाते हैं और आपके फैसले पूरी तरह से गलत भी हो सकते हैं क्योंकि वे आपके जीवन के पिछले अनुभवों के आधार पर हैं। वे आपको किसी चीज़ का या किसी व्यक्ति का अनुभव उस आधार पर नहीं लेने देंगे जैसे वे अभी हैं, और जो वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है।

आप जैसे ही झुक कर अभिवादन करते हैं तो आपकी पसंद और नापसंद कमज़ोर पड़ जाती है, वो असरकारक नहीं रहती क्योंकि आप उसके अंदर के सृष्टिकर्ता को पहचान लेते हैं, स्वीकार कर लेते हैं।

अगर आप किसी भी क्षेत्र में असरदार ढंग से काम करना चाहते हैं, तो एक बात है और वो ये कि जब भी कोई आपके सामने आता है तो जैसे वो अभी है, वैसे ही उसको समझना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वो कल कैसा था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस पल में वो कैसा है, यही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो पहली चीज़ जो आपको करनी है, वो ये है कि आप सिर झुकायें। आप जैसे ही झुक कर अभिवादन करते हैं तो आपकी पसंद और नापसंद कमज़ोर पड़ जाती है, वो असरकारक नहीं रहती क्योंकि आप उसके अंदर के सृष्टिकर्ता को पहचान लेते हैं, स्वीकार कर लेते हैं। नमस्कार या नमस्ते करने का यही मकसद है।

नमस्ते का विज्ञान

इसका एक और पहलू भी है। आपकी बहुत सारी तंत्रिकाओं के सिरे आपकी हथेलियों में होते हैं - और इस बात को अब मेडिकल विज्ञान ने भी जान लिया है। सही बात तो ये है कि आपकी जीभ और आवाज़ से भी ज्यादा, आपके हाथ बोलते हैं। योग में मुद्राओं का एक पूरा विज्ञान है। अपने हाथों को कुछ खास, अलग अलग तरहों से रख कर, आप अपनी पूरी शारीरिक प्रणाली को कुछ अलग ही ढंग से काम करा सकते हैं। जैसे ही आप अपने हाथ एक साथ लाते हैं, हथेलियों को जोड़ते हैं, आपके द्वंद्व, आपकी पसंद नापसंद, आपकी लालसायें - विरक्तियाँ, ये सब चीजें एक प्रमाण में आ जाती हैं। आप जो भी हैं, उसकी अभिव्यक्ति में, एक खास एकरूपता आ जाती है, सभी उर्जायें एक हो कर काम करने लगती हैं।

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नमस्कार या नमस्ते सिर्फ एक सांस्कृतिक पहलू नहीं है, इसके पीछे एक पूरा विज्ञान है। आप अगर अपनी साधना कर रहे हैं, हर समय जब आप अपनी हथेलियाँ साथ-साथ लाते हैं तो ऊर्जा बनती है, कुछ जबर्दस्त होता है। आपकी जीवन ऊर्जा के स्तर पर आप कुछ दे रहे हैं, या आप अपने आपको दूसरे व्यक्ति को भेंट कर रहे हैं। उस अर्पण में, आप दूसरे जीव को ऐसे जीवन में बदल देंगे, जो आपसे सहयोग करेगा। सिर्फ अगर आप अर्पण की, देने की अवस्था में हैं, तो चीजें आपके लिये अच्छी होंगीं। ये हर जीवन के लिये ऐसा ही है। अपने आसपास के हर जीवन का सहयोग अगर इसे मिलता है तो ये बढ़ती, फूलती है।

 

नमस्कार, योग का सबसे ज्यादा सरल रूप है। ये सारा भौतिक संसार दो ध्रुवों के मिलने से ही बनता है। यहाँ पुरुषत्व है और स्त्रीत्व है, यिन और यांग है, शिव और शक्ति है, आप इसे जो भी कहना चाहें। अपने दोनों हाथों को जोड़ कर एक साथ लायें और किसी व्यक्ति या किसी चीज़ को देखें जो आपके लिये मायने रखती हो - आपकी पत्नी, आपके पति, आपका बच्चा, आपकी माँ, आपके पिता, कोई पेड़, चट्टान, बादल, सूर्य, चंद्र - आपको जो भी पसंद हो। उनकी ओर तीन से पाँच मिनट तक प्रेमपूर्वक, ध्यान दे कर देखते रहें और आप पायेंगे कि आपकी पूरी शारीरिक प्रणाली अद्भुत ढंग से शांतिपूर्ण हो जायेगी। 

 

सम्पादकीय टिप्पणी

जैसा इस लेख में सदगुरु ने समझाया है, नमस्कार यौगिक संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण, केंद्रीय हिस्सा है और इसके साथ एक गहन विज्ञान जुड़ा हुआ है। यहाँ नमस्ते के कुछ ऐसे पहलू हम बता रहे हैं जो आपको रुचिकर लग सकते हैं: 

सूर्य नमस्कार और इसके फायदे

सूर्य नमस्कार ऐसी लोकप्रिय यौगिक क्रिया है जिसे बहुत सारी जगहों पर बहुत सारे लोग
जानते हैं और करते हैं। ये 12 आसनों की एक श्रृंखला है जिसकी पहली और आखरी मुद्रा
नमस्कार है और ये कोई संयोगवश नहीं है। सदगुरु से, इस लेख में सूर्य नमस्कार का महत्व और उसके फायदे जानिये।

नमस्कार के साथ जीवन के सामने अपना हृदय खोलें

क्या आप जानते हैं कि नमस्कार करते समय आप अपनी दोनों हथेलियाँ जोड़ते हैं और
आपके अंगूठे मुड़ कर आपके अनाहत चक्र या उस कोमल बिंदु पर आ जाते हैं, जहाँ आपकी
पसलियाँ मिलती हैं। इस लेख में, अनाहत चक्र की जानकारी दे रहे हैं।

नमस्कार के साथ यौगिक क्रिया प्रारंभ करें

पारंपरिक रूप से, हर दिन, यौगिक क्रिया की शुरुआत नमस्कार और प्रार्थना के साथ होती है।
ये उन महान गुरुओं के प्रति आदर, कृतज्ञता प्रकट करने के लिये होता है, जिन्होंने एक के
बाद एक आने वाली पीढ़ियों को अपना यौगिक ज्ञान अर्पित किया है। ये सरल विधि साधक
को क्रियाओं के प्रति समर्पित होने में सहायक है।

क्या आप अपने जीवन में योग को लाना चाहते हैं? तो, यहां शुरू कीजिये......

भारतीय सांस्कृतिक मूल्य :

हज़ारों वर्षों से, भारतीय उपमहाद्वीप यौगिक संस्कृति में डूबा हुआ है और इसीलिये भारतीय संस्कृति के बहुत से पहलू गहरे ढंग से आध्यात्मिक प्रक्रिया से प्रभावित हैं। नमस्कार करते हुए अभिवादन करने की प्रक्रिया यहाँ बहुत ही प्रचलित है और भारतीय संस्कृति का अटूट अंग है।