लोगों के साथ रहते हुए, कैसे तोड़ें कर्म बंधन
कर्म बन्धनों को तोड़ना अध्यात्म का लक्ष्य होता है, लेकिन सद्गुरु सभी को खुद में शामिल करने के बारे में भी हमें समझाते हैं। तो ये दोनों काम एक साथ कैसे करें?
कंगना: सद्गुरु, आप कहते हैं कि हमें कर्म बंधनों को तोड़ने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन साथ ही आप लोगों से सभी को खुद में शामिल करने का, और अपने सभी कामों से पूरी तरह जुड़ने का आग्रह करते हैं। तो, ये दोनों चीजें एक साथ कैसे हो सकती हैं? कृपया समझाएँ। कर्म का मतलब क्या है?
सद्गुरु: नमस्कारम् कंगना! ये दो चीज़ें आपको एक दूसरे से विपरीत कैसे लग रही हैं? कर्म का मतलब उन सभी चीजों की बची हुई याददाश्त है जो हम शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से, भावनात्मक रूप से और ऊर्जा के स्तर पर करते हैं। या दूसरे शब्दों में यह एक ख़ास सॉफ्टवेयर है जिसे आप अचेतन होकर बनाते हैं। यह एक ख़ास मात्रा में याददाश्त है जो अलग-अलग स्तरों पर आपके जीवन को कण्ट्रोल करती है। एक भौतिक याददाश्त है, एक मनोवैज्ञानिक याददाश्त, भावनात्मक याददाश्त और ऊर्जा के स्तर पर भी याददाश्त है, ये सभी चीज़ें एक साथ आपके जीवन को कण्ट्रोल करती हैं। तो याददाश्त का मतलब है, चाहे वो कितनी ही गहरी क्यों न हो, वो सीमित होती है। आपकी याददाश्त की हर चीज़ एक सीमा में बंधी है। तो कर्म एक सीमित घेरा है। उस सीमित घेरे के अन्दर, कर्म बहुत उपयोगी है, यह कई चीजों को सुविधाजनक बनाता है। यह आपको काफी ऑटोमेटिक बनाता है (हंसते हैं) जिससे आप बहुत सी चीजों को आसानी से प्रतिक्रया दे सकें।
सीमा के फायदे भी हैं, और नुक्सान भी
लेकिन जब आप विस्तार करना चाहते हैं, तो सीमा एक समस्या है। अगर आप बस घर के आस-पास सीमा का घेरा बनाते हैं, और आप विस्तार करना चाहते हैं, तो बहुत आसान होगा, आपको बस बाहर जाना होगा। मान लीजिए आपके अस्तित्व को ही कुछ खतरा था, आपके जीवन को ख़तरा था, और आपने अपने चारों ओर किले की तरह एक मोटी दीवार बना ली। अब, खतरा होने पर आप सुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन मान लीजिए आपके जीवन में किसी तरह का कोई खतरा नहीं है, तो आप स्वाभाविक रूप से विस्तार करना चाहेंगे। जब आप विस्तार करना चाहते हैं, तो इस विशाल दीवार को हिलाना और अपनी सीमा का विस्तार करना बहुत मुश्किल हो जाता है। शायद आप विस्तार ही नहीं करेंगे क्योंकि - वो दीवार! उस दीवार को दूसरी जगह कैसे ले जाएं?
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इसी तरह, कर्म या कार्मिक याददाश्त एक ख़ास दीवार है जिसे आपने खड़ा किया है। अगर आप इसे ढीला नहीं करते, अगर आप अपने सिस्टम में सभी को शामिल करने का तरीके नहीं लाते - समावेश का मतलब बस सभी के प्रति अपनापन होने का विचार नहीं है। बल्कि अपने सिस्टम को समावेशी बनाना होगा। सिस्टम में शामिल करने का अर्थ है, फिलहाल हम यहाँ जंगल में बैठे हैं, जो सांस ये पेड़ छोड़ रहा है, मैं अपने अन्दर ले रहा हूं। और जो सांस मैं छोड़ रहा हूँ, ये पेड़ अपने अन्दर ले रहा है।
शामिल करने या समावेशी बनने का क्या मतलब है?
मैं पेड़ की बात नहीं करूंगा, लेकिन अधिकांश इंसान शायद इस बात से अनजान हैं कि ये लेनदेन चल रहा है। अगर हम जानते कि ये लेनदेन चल रहा है, तो बस यहां बैठकर सांस लेने का अनुभव बहुत शानदार और आनंद से भरा होता। लेकिन अगर आप अचेतन हैं, तब भी आप उस ऑक्सीजन द्वारा पोषित तो हो रहे हैं, जो पेड़ बाहर छोड़ रहा है, पर आपको इस लेनदेन का अनुभव नहीं हो रहा।
कर्मों को कैसे तोड़ें?
तो, शामिल करने का मतलब यह नहीं है कि आपको कुछ अलग करना है। आप बस अस्तित्व की प्रकृति के बारे में जागरूक हो जाते हैं, क्योंकि अस्तित्व पूर्ण रूप से शामिल करता है। पेड़ के साथ जो होता है, वो आप के साथ भी होता है, मिट्टी के साथ जो होता है, वो आपके साथ भी होता है। आप जिसे खुद के रूप में जानते हैं, वो वास्तव में सिर्फ वो मिट्टी है जिस पर आप चल रहे हैं। तो शामिल करना कोई काम नहीं है जो आपको करना है। शामिल करना अस्तित्व की प्रकृति है। आपको बस इसके बारे में सचेत होना है। कर्म आपके व्यक्तिगत अस्तित्व की प्रकृति है। आपको बस अपनी कार्मिक सीमाओं के बन्धनों के प्रति सचेत होना होगा। अगर यह जागरूकता आती है, तो बाकी का काम जीवन खुद कर लेता है।
संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है! - unplugwithsadhguru.org