योग के चार मुख्य प्रकार हैं - ज्ञान, क्रिया, कर्म और भक्ति योग। कौन-सा योग हमारे लिए उत्तम है? क्या इनमें से सिर्फ एक योग मार्ग चुन कर हम साधना कर सकते हैं?


जिज्ञासु - सद्‌गुरु, हमें बहुत सारे योग सिखाये गये हैं। मैं यह कैसे जानूंगा कि मेरे लिए कौन सा योग उत्तम है? परम आनंद व परम सुख को अनुभव करने के लिए किस तरह का योगाभ्यास करना चाहिये?

सद्‌गुरुआपको यह ठीक-ठीक समझ लेना चाहिए कि अगर कुछ बड़ा घटित होने को है तो इसके लिए आपका पूर्ण सामंजस्य में होना बहुत महत्वपूर्ण है। अभी जिसे आप ‘मैं‘ मानते हैं, वो मात्र ये चार तत्व हैं- आपका भौतिक शरीर, आपका मन, आपकी भावनाएं और आपकी जीवन-ऊर्जा। यही चार चीज़ें हैं, जिन्हें आप स्वयं के रूप में जानते हैं। अगर आप चाहते हैं कि कुछ बड़ा घटित हो तो आपको इन चारों चीजों को सही मिश्रण में रखना होगा, उनमें तालमेल बिठाना होगा। दरअसल, सारे योगाभ्यास इन्हीं चार आयामों को समन्वित करने, उनमें सही तालमेल बिठाने के लिए बनाए गए हैं।
तो शरीर, मन, भावनाएं और ऊर्जा इन चार आयामों का अर्थ है सिर, हृदय, हाथ और ऊर्जा। यहां कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका केवल सिर हो, हृदय, हाथ या ऊर्जा न हो? आप इन चारों का मिश्रण हैं, हैं कि नहीं? तो आपको इन्हीं चार मौलिक योगों की जरूरत है। योग केवल चार हैं, जिन्हें ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और क्रिया योग के नाम से जाना जाता है। यदि अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने के लिए आप अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं, तो उसे ज्ञानयोग कहते हैं। अगर अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने के लिए आप अपनी भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं, तो हम उसे भक्ति योग कहते हैं। अगर आप अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करते हो, तो उसे कर्म योग कहते हैं। अगर अपनी परम प्रकृति तक पहुंचने के लिए आप अपनी आंतरिक ऊर्जा को रूपांतरित करते हैं तो इसे क्रिया योग कहा जाता है।

योग के चार प्रकारों में कौन-सा चुनें?

केवल यही चार तरीके हैं। इनमें से मैं कौन-सा लूं, यहां ऐसा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि आप इन चारों का मिश्रित रूप हो। आपको इन चारों को सही अनुपात में लगाना होगा।अब एक व्यक्ति में सिर बहुत प्रबल है, दूसरे व्यक्ति में उसका हृदय प्रबल हो सकता है, जबकि तीसरे व्यक्ति में शरीर प्रबल हो सकता है। इसके अनुसार, एक सही मिश्रण बनाना होगा, अन्यथा यह घटित नहीं होगा। यही वजह है कि आध्यात्मिक मार्ग पर एक जीवित गुरु पर इतना बल दिया जाता है, वह आपके लिए सही अनुपात में बनाता है।
योग-शिक्षा में एक बहुत सुंदर कहानी है। एक दिन चार व्यक्ति जंगल में टहल रहे थे। एक ज्ञान योगी था, दूसरा भक्ति योगी, तीसरा क्रिया योगी और चौथा कर्म योगी था। आमतौर पर ये चारों एक साथ नहीं रह सकते, क्योंकि ये एक दूसरे को बिल्कुल नहीं सुहाते। ज्ञान योगी, जो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करता है, वह हर किसी को तुच्छ समझता है। वह समझता है हर कोई निरा मूर्ख है। विशेष कर भक्ति वाले लोग, जो मुंह उठाए ‘राम-राम’ कहते हैं। वह इन्हें बिल्कुल नहीं सह सकता। भक्ति वाले लोगों को इन सभी के प्रति सहानुभूति होती है। वे कहते हैं, जब ईश्वर यहीं है, उसका हाथ थामकर चलने के बजाय यह बाल की खाल निकालने की बेवकूफी क्योंकर रहेहैं। उसे लगता है कि यह योग - सिर के बल खड़े होना, सांस रोकना, शरीर मरोडऩा, निरी मूर्खताहै। मात्र ईश्वर को सहायता के लिए पुकारो और सब कुछ हो जाएगा।कर्म योगी सोचता है, ये सभी मूर्ख हैं, निपट आलसी हैं। इन्होंने अपने आलस्य को छुपाने के लिए इन सभी योगों का आविष्कार किया है। क्रिया योगी सबको पूर्ण उपेक्षा की दृष्टि से देखता है, क्योंकि आखिरकार संपूर्ण जीवन ऊर्जा ही तो है। यदि आप अपनी ऊर्जा को रूपांतरित नहीं करते, तो फिर कोई दूसरा रास्ता है ही कहां ?

जब चारों योग मार्ग जुड़ गए

ये चार लोग कभी एक साथ नहीं रह सकते। लेकिन आज वे एक साथ टहल रहे थे। जंगल में एकाएक मूसलाधार बारिश होने लगी। भीगने से बचने की जगह ढूंढने के लिए चारों ने भागना शुरू कर दिया। भक्ति योगी को यह मालूम था कि मंदिर कहां है। उसने कहा- ‘जंगल में इस दिशा में एक पुराना मंदिर है। चलो, वहां चलते हैं। वहां बचनेे की जगह मिल जाएगी।’ वे सभी वहां भागे। आपको पता है, इन्हें देश भर के सारे मंदिरों के बारे में पता रहता है? खैर वे सब भाग कर मंदिर में पहुंच गए। मंदिर बहुत जीर्ण अवस्था में था। चार खंभों और एक छत के सिवा वहां कुछ नहीं था। यहां तक कि एक भी दीवार नहीं थी, बहुत पहले सारी दीेवारें गिर चुकी थीं। तूफान और अधिक तेज हो गया और हर दिशा से तेजी से आने लगा। ऐसे में वे चारों और पास-पास आ गए। मंदिर के बीच में एक शिवलिंग था। तूफान से बचने के लिए, वहां उनके बैठने की कोई जगह नहीं थी। इसलिए वे चारों के चारों शिवलिंग से चिपक कर बैठ गए। ईश्वर से प्रेम या किसी और कारण से नहीं, केवल तूफान से बचने के लिए। अचानक ईश्वर प्रकट हो गए। उन चारों के मन में तुरंत एक ही प्रश्न आया। ‘अभी ही क्यों? हमने इतना योग किया, हमने इतनी साधना की, फिर भी आप नहीं आए।ठीकअभी, जब हम केवल तूफान से बचने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप यहां प्रकट हो गए। क्यों?’तब ईश्वर ने कहा ‘अंतत:तुम चारों मूर्ख एक साथ हो गए। इस क्षण की मैं कब से प्रतीक्षा कर रहा था।’

चार योग मार्ग : चार पहियों की तरह हैं

सबसे बड़ी समस्या यही है। यदि इन चारों आयामों में सामंजस्य नहीं है, समन्वय नहीं है, सही मिलन नहीं है, तो फिर कुछ भी बड़ा घटित नहीं हो सकता। आप अपनी कार चलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका एक पहिया इस तरफ़ जा रहा है, और दूसरा पहिया दूसरी तरफ आप जानते हैं कि वह कितना पीड़ादायक होगा? यही पीड़ा आप आज लोगों में देखते हैं। उनका दिमाग इस तरफ है, जबकि दिल उस तरफ उनका शरीर कहीं है और ऊर्जा कहीं और। ऐसे में आप कैसे यह अपेक्षा करते हैं कि वे आनंद में यात्रा करेंगे और किसी गंतव्य तक पहुंच जाएंगे?
जिसे हम ‘इनर इंजीनियरिंग’ या ईशा योग कह रहे हैं, यह मात्र इन चार पहियों का सही मिलान करने के लिए है, ताकि आप ठीक ढंग से यात्रा कर सकें। अभी आपकी दिशा नरक की ओर ही क्यों न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। एक बार आपकी कार ठीक तरह से चलने लगे, तब तुरंत ही आप यू टर्न ले सकते हैं, वापस घूम सकते हैं। लेकिन अभी आप अपनी गाड़ी को लेकर कष्ट में हैं, जिसके चारों पहिए चार अलग दिशाओं में जा रहे हैं। ऐसे में आप किस रास्ते पर जाएंगे? आप कहीं नहीं जा सकते, बस उलझ कर रह जाएंगे और परिस्थितियों के धक्के खाकर मारे-मारे फिरेंगे। आपको किस दिशा में जाना है, यह निर्णय आपके द्वारा नहीं लिया जा रहा है। आपकी दिशा उन परिस्थितियों द्वारा तय हो रही है, जिनमें आप जी रहे हैं। यह एक गुलाम की जिंदगी है। लोग कहते हैं कि वे अब आजाद हैं। लेकिन मेरा मानना है कि वे आजाद नहीं है, वे अभी भी एक गुलाम की जिंदगी जी रहे हैं।

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