क्या भगवान का अस्तित्व है? कहाँ हैं भगवान? क्या भगवान सभी जगह हैं? बहुत से प्रश्न हैं जिनका कभी ठीक ढंग से उत्तर नहीं दिया गया है। सद्‌गुरु हमें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं देते, पर वे हमें एक तरीका बताते हैं जिससे हम भौतिकता से परे पहुँच बना सकें और जीवन की अनगिनत संभावनाओं की खोज कर सकें।

सद्गुरु :जब आप कहते हैं कि आप आध्यात्मिक रास्ते पर हैं तो इसका मतलब है कि आप सत्य की खोज कर रहे हैं। पर आप किस तरह का सत्य पाना चाहते हैं? साधारण रूप से, अधिकतर लोग - चाहे वे मंदिर जाते हों या चर्च या मसजिद या आश्रम - कुछ ऐसा पाना चाहते हैं जो उन्हें कुछ दे, उनकी मांगें पूरी हों, कुछ जो उनका फायदा कराये। पर जो वास्तव में, सही में सत्य की खोज कर रहा है, उसके लिये सत्य कुछ देता नहीं है। वो तो सब कुछ हड़प लेता है।

सत्य उस होशियार इंसान के लिये नहीं है जो इस दुनिया 'कुछ' बनना चाहता है। हर कोई कुछ न कुछ जीतना चाहता है। सिर्फ कोई बेवकूफ ही 'कुछ नहीं' बनना चाहेगा। सिर्फ एक मूर्ख ही समर्पण करना और हार जाना चाहेगा! उन मूर्खों की एक बहुत लंबी परंपरा है जो समर्पण करना चाहते हैं, जो 'कुछ नहीं' होना चाहते हैं, जो यहाँ एक गर्वीले मनुष्य की तरह नहीं, बस मिट्टी की तरह, ज़मीन की तरह रहना चाहते हैं। शिव ने यह देखा कि ये मूर्ख इस दुनिया में कुछ नहीं कर पायेंगे, तो उन्होंने उन्हें गले से लगा लिया। शिव ने उन्हें अपना बना लिया। अपनी चतुरता के कारण नहीं बल्कि अपनी सरलता की वजह से उन लोगों ने कृपा पा ली। 

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अगर आप काफी होशियार और ताकतवर हैं तो आपके लिये दुनिया के दरवाजे खुल सकते हैं, या लोग करुणावश आपके लिये दरवाजे खोल सकते हैं। पर ऐसे लोगों की एक पूरी परंपरा है जिन्हें रेंग कर भी पार जाने में कोई शर्म नहीं है, वे बस किसी भी तरह से पार जाना चाहते हैं। ये बेशर्म लोग हैं - उन्हें कोई शर्म नही, न ईर्ष्या, न गुस्सा आता है, कुछ भी नहीं। वे बेशर्म और नासमझ हैं। उन्हें अहंकार या गर्व भी नहीं होता। ये वो लोग हैं जो मुक्ति पा लेते हैं।

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भारत : वो स्थान जहाँ भगवान हर जगह है

भारतीय संस्कृति में यह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं है कि आप किसी मंदिर में जायें। हर कोई, वो चाहे जहाँ हो, एक पल में, किसी भी चीज़ को भगवान बना सकता है। ये एक अद्भुत तकनीक है, निर्माण करने की एक जबरदस्त कुशलता है। किसी पत्थर के टुकड़े को भी भगवान बनाया जा सकता है और आप देखेंगे कि कल सुबह हज़ारों लोग उसकी पूजा कर रहे होंगे। एक पत्थर के टुकड़े के सामने भी झुक जाने की इनकी इच्छा गज़ब की है। किसी के सामने झुक जाने के लिये तैयार रहना इनके लिये इतना आसान है, पर साथ ही ये एक शक्तिशाली साधन रहा है। कोई पेड़, फूल, पत्थर, लकड़ी - कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो क्या है- लोग उसके आगे परम श्रद्धा से झुकने के लिये तैयार रहते हैं। इस सरल सी तैयारी ने भारत में भौतिकता के पार जाने वाले सबसे ज्यादा लोग तैयार किये।

यही कारण है कि इस जमीन और इस संस्कृति को अनगिनत आत्मज्ञानी मिले। सारी दुनिया में, कहीं भी, अगर लोगों को झुकना है तो उनके आगे एक खास तरह का आकार होना चाहिये, नहीं तो वे नहीं झुक सकते। पर अगर आप एक पत्थर या छड़ी, एक कीड़े या चिड़िया के सामने झुकने को तैयार हैं तो उनमें से कोई भी आपके लिये एक रास्ते बन सकता है, और आपके लिये कोई दरवाजा खोल सकता है - फिर आपके लिये संभावनाओं का कोई अंत नहीं है। इस रुझान की वजह से लोगों ने हर कहीं करोड़ों सम्भावनायें खोल दीं।

“जहाँ भक्त है, वहाँ भगवान हैं…”

भक्ति का मतलब है एक खास निष्ठा - यानि आपका पूरा ध्यान हमेशा एक ही चीज़ में है। अगर आप लगातार एक ही चीज़ पर पूरा ध्यान दे रहे हैं तो आप ऐसे हो जाते हैं कि आपके विचार, आपकी भावनायें और सब कुछ बस उस एक ही दिशा में लग जाते हैं, और तब ‘कृपा’ स्वाभाविक रूप से होगी क्योंकि आप ग्रहणशील बन जाते हैं। आप किस चीज़ या किस व्यक्ति के भक्त हैं, ये कोई मुद्दा नहीं है। अगर आप ये सोचते हैं, "नहीं! मैं एक भक्त होना चाहता हूँ, पर मुझे शंका है कि भगवान हैं या नहीं" - तो ये एक सोचने वाले मन की दशा है। आपको ये जानना ज़रूरी है कि भगवान नहीं हैं, पर जहाँ कोई भक्त है, वहाँ भगवान हैं।

भक्ति की शक्ति ऐसी है कि वो सृष्टिकर्ता को भी बना सकती है। हम जिसे भक्ति कहते हैं, उसकी गहराई ऐसी है कि चाहे भगवान का अस्तित्व न हो, तो भक्ति भगवान का अस्तित्व बना भी सकती है।