भारत की नदियाँ – कैसे बचाएं इन्हें लुप्त होने से?
भारत की नदियां जो हमारे देश की जीवन शक्ति हैं, अभी भारी संकट से गुजर रही हैं। सद्गुरु बता रहे हैं कि इससे पहले कि नदियां हमें असहाय छोड़ जाएं, हम उनमें फिर से जान फूंकने के लिए क्या कर सकते हैं।
सद्गुरु : हम जो हैं, उसकी वजह हमारी नदियां हैं। भारत मुख्य रूप से अपनी प्रमुख नदियों के तट पर विकसित हुआ है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी प्राचीन सभ्यताएं नदियों के तटों पर ही जन्मीं और जब नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया, तो ये सभ्यताएं नष्ट हो गईं।
आज हमारी नदियां इस दर से घट रही हैं कि 20 सालों में वे मौसमी हो जाएंगी। पिछले 10 से 12 सालों में मैंने सिर्फ तमिलनाडु में एक दर्जन नदियों को सूखते देखा है। आज दक्षिणी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदियों कावेरी, कृष्णा और गोदावरी का जल साल में सिर्फ कुछ महीने ही समुद्र की ओर बहता है।
विपरीत पक्ष – जरूरत से अधिक बारिश
जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ रहा है, दक्षिणी प्रायद्वीप, जिसके दोनों ओर समुद्र हैं, वहां कुदरती तौर पर अधिक वर्षा होगी। आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र अक्सर मानसून के दौरान पानी में डूब जाते हैं। दिसंबर में चेन्नई में आई बाढ़ के बाद, लोग बारिश से डरने लगे हैं। चेन्नई में दो दिन की बारिश सभी राहत नौकाओं को चौकन्ना कर देने के लिए काफी है।
ज्यादा बारिश मिट्टी बहा ले जाएगी
जरूरत से ज्यादा बारिश, दक्षिणी प्रायद्वीप को सूखे के मुकाबले ज्यादा तेज गति से रेगिस्तान बना सकती है। यह जमीन की उवर्रता को बहा ले जाती है और समय के साथ उसे खेती के बिल्कुल अयोग्य बना देती है।
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ट्रेनों और ट्रकों से पानी ढोकर हम कब तक देश चलाएंगे? इस देश की प्यास को ट्रेनों या पाइपलाइनों से बुझाना संभव नहीं है। मैं डर नहीं फैलाना चाहता, मगर हर किसी को उन असली समस्याओं के बारे में सोचना चाहिए जो हम अपनी नदियों के साथ अपने बर्ताव से पैदा कर रहे हैं। एक अरब लोगों से अधिक आबादी के साथ, नदियों के सूखने पर लोग क्या करेंगे? क्या वे एक-दूसरे को मार कर उनका खून पिएंगे?
जँगलों पर निर्भर नदियों को बचाना होगा
हम बर्फ से जीवन पाने वाली अपनी नदियों को तत्काल नहीं सुधार सकते क्योंकि बर्फ और बर्फबारी की मात्रा पूरे विश्व में होने वाले बदलावों पर निर्भर है, मगर हम अपनी उन नदियों में जरूर जान फूंक सकते हैं, जो जंगलों पर टिकी हैं। लोग आपातकालीन हल चाहते हैं और वे चाहते हैं कि नीति निर्माता नदियों को जोड़कर ज्यादा जमीन तक पानी पहुंचाएं। यह और ज्यादा विनाशकारी साबित होगा। हम सिर्फ एक बड़ी रकम खर्च करेंगे और उससे भी बड़ी पर्यावरणीय आपदा ले आएंगे।
पेड़ लगाना एक व्यापक समाधान है
इसका एक व्यापक समाधान जरूरी है, जिसकी शुरुआत लोगों में यह जागरूकता पैदा करने से होनी चाहिए, कि हम अपनी नदियों के साथ क्या कर रहे हैं और क्या करना चाहिए। सिर्फ लोगों को कुछ करने के लिए प्रेरित करना काफी नहीं है।
सरकारें पेड़ लगाएं और किसान बागवानी करें
नदियों के दोनों तटों पर एक किलोमीटर तक खेती नहीं की जानी चाहिए क्योंकि जब किसान तटों को जोतते हैं, तो खाद और कीटनाशक पानी में चले जाते हैं जिससे जीवन प्रभावित होता है। हमें अपने नदियों के लिए एक वृक्ष अवरोधक तैयार करना चाहिए। सरकारी जमीन पर वनरोपण और निजी जमीन पर बागवानी की जानी चाहिए।
भारत सरकार को प्रस्तुत करेंगे प्रस्ताव
सरकार को नदियों के अनुकूल नीतियां बनाना होगा। आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों ने इस दिशा में पहल की है। फिलहाल हम भारत सरकार के सामने प्रस्तुत करने के लिए एक परियोजना प्रस्ताव बना रहे हैं कि किस तरह खेती का यह तरीका पारंपरिक कृषि से ज्यादा फायदेमंद है।
अगर अब कदम न उठाये गए, तो देर हो जाएगी
आज बहुत सारे लोग पूरी तरह निराश हो गए हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे चाहे जो भी कर लें, कुछ नहीं बदलने वाला। मगर अब बदलाव लाने का समय है। दस साल बाद ज्यादा देर हो जाएगी। अपने आर्थिक लालच में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी जमीन और नदियां ही हमें जीवित रखे हुए हैं। हमारी नदियां लाखों सालों से बहती आ रही हैं।