सद्‌गुरुहमारे शरीर का 6 फीसदी हिस्सा वायु तत्व है। हमें बता रहे हैं कि अन्य तत्वों के मुकाबले वायु पर महारत पाना आसान है। आइये जानते हैं इसे सक्रीय करने के लिए की जाने वाली साधना के बारे में, और वायु तत्व पर महारत पाने से आने वाले बदलावों के बारे में...


वायु पर महारत पाना, दूसरे तत्वों पर महारत पाने से आसान है

योगिक परंपरा में हम हवा का उल्लेख वायु के तौर पर करते हैं, जिसमें वायु का मतलब सिर्फ नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई ऑक्साइड व अन्य गैसों का मिश्रण नहीं होता, बल्कि यह गति का एक आयाम है। उन पांच बुनियादी तत्वों- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश, जिनसे इंसान सहित इस सृष्टि की हर चीज बनी है, में से वायु ऐसा तत्व है, जिस तक पहुँच आसानी से बनाई जा सकती है। इस पर अपेक्षाकृत आसानी से महारत पाई जा सकती है। इसीलिए योगिक प्रक्रिया के कई सारे अभ्यास वायु के इर्द-गिर्द तैयार किए गए हैं, हालांकि शरीर की बनावटी संरचना में वायु का हिस्सा बहुत छोटा है।

क्या है प्राण वायु?

योगिक अभ्यासों में सांसों का इस्तेमाल ज्यादातर वायु या प्राण वायु से ही जुड़ा होता है। वायु एक तत्व है, और प्राण वायु पंच प्राणों में से एक है। हम लोग प्राण के गर्भ में हैं, जो कि एक बुलबुले के समान है। यह बड़ा प्राण टूट कर चौरासी प्राणों में बंट जाता है, इनमें से केवल पांच प्राण ही इंसान की दैनिक जीवन से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी हैं।

अगर आप वायु तत्व को सक्रीय करते हैं, और आप एक स्तर तक पहुँच जाते हैं, तो अग्नि तत्व स्वाभाविक रूप से उसके साथ आएगा।
ये पंच प्राण ही आपके तन और मन को अच्छा रखने और आपको आध्यात्मिक रूप से सक्रिय रखने के लिए पर्याप्त हैं। जबकि अगले दस प्राणों की जरूरत उन्हें पड़ती है, जो लोग परा-विद्याओं में काम करते हैं। बाकी बचे हुए प्राण इतने सूक्ष्म हैं कि उन्हें खोजना व महसूस करना काफी मुश्किल होता है।

प्राण वायु एक भीतरी गतिशीलता है, जो गले के गढ्ढे से लेकर नाभि के बीच होती है। हम लोग जो शक्तिचालन क्रिया सिखाते हैं, उसकी कम से कम 60 प्रतिशत प्रक्रिया का लक्ष्य ही प्राण वायु है। हम लोग इस तत्व पर इसलिए फोकस करते हैं, क्योंकि हम जिस तरह से सांस लेते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, उसकी गुणवत्ता ही आमतौर पर हमारे जीवन के सतही अनुभवों को तय करती है।

मैं कहूंगा कि आज लगभग 99 प्रतिशत लोगों की चिंता सिर्फ इतनी है कि वे इस दुनिया में सुखद और सफल तरीके से कैसे गुज़रें। दुनिया में ऐसे कम ही लोग हैं, जो जीवन के दूसरे आयामों के प्रति जिज्ञासु होते हैं। इस संदर्भ में वायु और प्राण वायु सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो उठती है, क्योंकि प्राण पर एक खास स्तर की महारत तुरंत बुद्धि की धार को बढ़ा देती है। इसका मतलब है कि शक्ति चलन का अभ्यास आपको पहले से थोड़ा ज्यादा स्मार्ट बनाता है। इससे आपकी भावनाएं थोड़ी स्थिर, संयोजित और मधुर हो जाती हैं। फिर आपकी कुछ भौतिक गतिविधियां पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हो उठती है। ज्यादातर लोग जीवन में यही तीन आयाम चाहते हैं।

प्राण वायु को सक्रीय करके त्वचा से भी सांस ले सकते हैं

हम सांस के रूप में जो हवा भीतर लेते हैं, उसका असर बेहद तत्काल होता है। आप बिना खाए आठ से दस दिन तक अपने सिस्टम को नुकसान पहुंचाए बिना जीवित रह सकते हैं। इसी तरह से आप बिना पानी के तीन से साढे़ तीन दिनों तक अपने सिस्टम को नुकसान पहुंचाए बिना जिंदा रह सकते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग बिना हवा के सिर्फ साढ़े तीन से पांच मिनट तक ही चल पाएंगे। कुछ अभ्यासों की मदद से आप बिना हवा के ज्यादा समय तक भी जिंदा रह सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको थोड़ा छल करना होगा।

प्राण वायु को बढ़ाकर आप अपनी मानसिक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। इससे आपका मन पहले से ज्यादा संतुलित हो जाएगा।
अगर आप अपनी चयापचयन प्रकिया यानी मेटाबोलिज़म प्रक्रिया को बेहद निम्न स्तर पर रखने में सफल हो जाते हैं तो फिर आपको नाक से सांस लेने की जरूरत नहीं रहती, तब आप अपनी त्वचा से भी सांस ले सकते हैं। जिस तरह से त्वचा से पसीना निकलता है, उसी तरह से श्वसन प्रक्रिया भी होती है, जहां त्वचा के जरिए हवा का आवागमन होता है। अगर आप पर्याप्त रूप से अपनी प्राण वायु को सक्रिय कर लेते हैं तो आप अपनी नाक से सांस लिए बिना भी अपेक्षाकृत लंबे समय तक जिंदा रह सकते हैं।

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इस संदर्भ में शक्तिचालन एक जबरदस्त क्रिया है। पिछले कुछ सालों में हमने कुछ लाख लोगों को यह क्रिया सिखाई है। अगर उनमें से सभी लोगों ने इसे जारी रखा होता और इसी दिशा में आगे बढ़े होते तो अभी तक दुनिया बदल जानी चाहिए थी। दिशा में आगे बढ़ने का मतलब है कि अगर शुरू में आप इसका अभ्यास 40 मिनट तक करते थे तो समय के साथ आप इसे बढ़ाकर डेढ़ से दो घंटे का कर दें। अगर कम से कम एक लाख लोग शक्ति चालन की क्रिया को उसी तरह से कर रहे होते, जैसे यह की जानी चाहिए थी तो अब तक दुनिया का माहौल बदल जाना चाहिए था।

वायु तत्व हर तरह से शक्तिशाली बनाता है

तो हम वायु के साथ क्या कर सकते हैं? हम इसे प्रदूषित कर सकते हैं। हम इसे साफ कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात कि हम वायु को अपना जीवन रूपांतरित करने वाली शक्ति के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। वायु में एक खास तरह की तात्कालिकता होती है, जो न सिर्फ इसे बेहद प्रतिक्रियाशील बनाती है, बल्कि इसे रूपांतरण करने की क्षमता भी देती है।

योगिक संस्कृति में प्राण वायु को संयोजित करने का एक और तरीका है कि भोजन पकने के बाद डेढ़ घंटे से लेकर ज्यादा से ज्यादा चार घंटे के भीतर खा लेना चाहिए।
सभी पंच भूतों में केवल हवा ही ऐसी है, जिसमें सबसे ज्यादा ताकत होती है या जो सबसे ज्यादा ताकत पैदा कर सकती है। यह बाहरी वातावरण और इंसान के भीतरी ताकत - दोनों के लिए सही है। अगर आप इसे सक्रिय करना सीख लें तो यह आपको जबरदस्त तरीके से मजबूत बना सकती है। जरुरी नहीं कि मांसपेशियां मज़बूत बनें, पर आपका जीवन मज़बूत बन जाएगा। प्राण वायु को सक्रिय करने के लिए कुछ खास अवधि तक साधना करने की जरूरत होती है। आमतौर पर अगर आप लगातार 1008 दिन तक शक्ति चालन करते हैं, तो आप के प्राण एक खास स्तर तक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में जो ऊर्जा आपके भीतर होती है, वो आपको सबसे अलग बना देगी।

वायु सक्रीय होने पर आपकी ऊर्जा बढ़ जाएगी

तब आपको लगेगा कि आपमें असीम ऊर्जा है। हालांकि असीमित ऊर्जा जैसी कोई चीज नहीं होती, सिर्फ दूसरे लोगों के नजर में ऐसा लगने लगता है। अगर आपकी प्राण वायु वाकई सक्रिय है तो आप अपने समय को सही ढंग से इस्तेमाल करने लगते हैं। जीवन दरअसल समय और ऊर्जा का मेल है।

जीवन में उच्चतर संभावनाओं की ओर बढ़ने के लिए इन तत्वों पर महारत हासिल करना जरूरी है।
अगर आपकी ऊर्जा या प्राण वायु काफी प्रबल होंगे तो आपके पास ज्यादा समय होगा। तब क्रियाकलाप आपके भीतर मौजूद ऊर्जा की वजह से होंगे, न कि आपके प्रयासों की वजह से। अगर आप शक्तिचालन की अपनी क्रिया लगातार करते हैं, तो आपके सक्रिय होने की क्षमता जबरदस्त तौर पर बढ़ जाएगी।

आज बड़ी संख्या में लोगों को अपने काम के बीच में लंबे आराम की जरूरत महसूस होती है। इसकी जरूरत तब होती है, जब आप अपनी प्राण वायु का ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाते। और प्राण वायु के ठीक तरह से न रह पाने के कई कारण हैं। एक वजह तो आपका भोजन है। अगर आप ऐसा भोजन करते हैं, जो आपके पेट के निचले हिस्से यानी नाभि के नीचे या मणिपूरक चक्र में गैस पैदा करता है, तो यह गैस नाभि से गले के गढ्ढे के बीच होने वाली हवा की गतिशीलता में परेशानी पैदा करता है। प्राण वायु की सक्रियता का सबसे मुख्य इलाका नाभि से लेकर गले के गढ्ढे तक का स्थान है। जब आप खराब भोजन करते हैं और उससे गैस होती है, तो आप अपने भीतर ऊर्जा की बेहद कमी महसूस करते हैं, उसकी वजह है कि गैस की वजह से प्राण वायु ठीक तरह से काम नहीं कर पाती। ऐसे में आप गलत जगह पर वायु इकट्ठी कर लेते हैं। यह आपके नाभि से लेकर गले के गढ्ढे के बीच में घूमनी चाहिए। इस इलाके में ही यह सबसे अधिक शक्तिशाली होती है।

पकाने के बाद रखे गए खाने में प्राण वायु घटती जाती है

अगर प्राण वायु नाभि के नीचे घूमती है, तो समझिए जीवन का उत्साह चला गया। शरीर आलू की एक बोरी की तरह महसूस होता है। बहरहाल, आलू शरीर में वैसे ही सुस्ती लाता है, क्योंकि यह प्राण वायु को कम करता है। कोई भी खाना जो सड़न की तरफ बढ़ रहा हो, उसका एक जैसा ही असर होता है। इसमें वो भोजन भी शामिल है, जो आप सुपर मार्केट से खरीदते हैं, जो लंबे समय से वहां स्टोर करके रख गया होता है और उसमें कोई भी प्राणिक तत्व नहीं होता।

हम लोग जो शक्तिचालन क्रिया सिखाते हैं, उसकी कम से कम 60 प्रतिशत प्रक्रिया का लक्ष्य ही प्राण वायु है।
अगर इसने अपनी एक्सपाइरी तिथि को पार न भी किया हो, तो भी यह धीरे-धीरे सड़न या खराब होने की तरफ बढ़ रहा होता है। योगिक संस्कृति में प्राण वायु को संयोजित करने का एक और तरीका है कि भोजन पकने के बाद डेढ़ घंटे से लेकर ज्यादा से ज्यादा चार घंटे के भीतर खा लेना चाहिए। कुछ पदार्थ तो उससे भी जल्दी खा लेने चाहिए वर्ना वो शरीर में गैस पैदा करते हैं। अगर आपके शरीर में गैस रहती है तो आप प्राण वायु पर महारत हासिल नहीं कर सकते।

सिर्फ योगिक अभ्यास में ही नहीं, जिस तरह से आप खुद को रखते हैं, जिस तरीके से आप सांस लेते हैं, चलते हैं, बैठते हैं और खड़े होते हैं, इससे भी आप प्राण वायु पर कुछ हद तक नियंत्रण पा सकते हैं। हर इंसान का इन पांच तत्वों पर कुछ न कुछ नियंत्रण होता है, वर्ना आप अभी तक जिंदा ही नहीं होते। जीवन में उच्चतर संभावनाओं की ओर बढ़ने के लिए इन तत्वों पर महारत हासिल करना जरूरी है। अल्प कालिक योगियों के लिए वायु के आयाम पर काम करना अच्छा है, क्योंकि महारत पाने में यह अपेक्षाकृत आसान है। वायु आधारित योगिक अभ्यास के नतीजे तुरंत सामने आते हैं, खासकर मन और भावनाओं के स्तर पर। प्राण वायु को बढ़ाकर आप अपनी मानसिक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। इससे आपका मन पहले से ज्यादा संतुलित हो जाएगा। लेकिन अगर आप वायु पर महारत हासिल कर भी लेते हैं तो आपके कर्म की चक्की लगातार चलती रहेगी। आमतौर पर यह पहले की अपेक्षा ज्यादा तेजी से चलेगी, क्योंकि अब इसका रास्ता साफ जो हो गया है। इसका मतलब है कि आपके कर्म अब तेजी से घटित होंगे, इसलिए हो सकता है कि आपका जीवन अब ज्यादा घटनाओ से भरा हो।

वायु तत्व सक्रीय होने पर अग्नि तत्व भी सक्रीय होता है

वायु तत्व पर महारत हासिल करने के पीछे विचार है, कि आपकी सेहत ठीक रहे और आपका कल्याण तुरंत हों। अगर आप वायु तत्व को सक्रीय करते हैं, और आप एक स्तर तक पहुँच जाते हैं, तो अग्नि तत्व स्वाभाविक रूप से उसके साथ आएगा। संभव है कि 25 से 30 प्रतिशत तक उसका अनुसरण करे। वायु तत्व पर महारत पाने पर, अग्नि तत्व भी एक हद तक साथ आ जाता है।

आज बड़ी संख्या में लोगों को अपने काम के बीच में लंबे आराम की जरूरत महसूस होती है। इसकी जरूरत तब होती है, जब आप अपनी प्राण वायु का ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाते।
अगर बहुत से लोगों में अग्नि तत्व की कमी होती है, जो जीवन की एक बड़ी समस्या है। इसका नतीजा यह होगा कि वो काम तो करेंगे, लेकिन नतीजा हासिल नहीं होगा। एक बार अगर यह अग्नि तत्व अच्छी तरह से काम करने लगे तो आप पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हो जाएंगे। हालांकि इंसान के सिस्टम में अग्नि तत्व का हिस्सा बहुत छोटा सा होता है, लेकिन कई वजहों से यह अपने आप में सबकुछ है। यह आपको सूक्ष्म तत्व ईथर या आकाश तत्व के नजदीक ले जाता है।

इंसानी दिनचर्या में जो रोजाना की चीजें और काम हैं और जो इंसान करना या पाना चाहता है, उन सब पर वायु तत्व का खासा प्रभाव रहता है। इंसान की प्रगति में वायु को सक्रिय करने की प्रक्रिया एक महत्वपूर्ण चरण होती है। वायु आधारित अभ्यास आपको बौद्धिक क्षमता, ऊर्जा और दुनिया में प्रभावशालिता के ऊंचे आयाम पर ले जा सकते हैं।

Love & Grace

संपादक की टिप्पणी:

शक्ति चलन क्रिया एक योग अभ्यास है, जिसे प्राण के प्रवाह को बढ़ाने के लिए ईशा योग केंद्र में सिखाया जाता है। यह क्रिया शून्य कार्यक्रम का एक हिस्सा है।