जलने दीजिए जीवन को
हम अपने जीवन कोे बचा कर चलने के आदि हो गए हैं। आज के स्पाॅट में सद्गुरु बता रहे हैं कि जो जीवन आखिरकार खत्म ही होना है, आखिर क्यों न उसे पूरी तरह प्रज्जवलित करके रखें।
हर संस्कृति साल के इस समय का महत्व पहचानती है
हम लोग दक्षिणायन, जिसे साधना पद भी कहा जाता है, के दूसरे चरण में हैं। यह सबसे अच्छा समय है - खुद पर काम करने के लिए। अगर आप अपने मानसिक व भावनात्मक चक्रों को थोपे बिना अपने भीतर जीवन के प्राकृतिक चक्रों को सहज रूप से काम करने देते हैं तो इस अवधि में आप अपने जीवन के कई पहुलओं को स्वाभाविक तौर पर प्रबल बना पाएंगे। दुनिया के हर हिस्से में, किसी न किसी रूप में हर संस्कृति में, लोग जो कुछ भी कर रहे होते हैं, उसे इस अवधि में आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं। फिर चाहे यह सुदूर पूर्वी संस्कृति हो, जो चंद्रमा का विषुव मनाती हो या फिर प्राचीन मिस्र की संस्कृति हो, जो दिसंबर में नए सूर्य के उदय का पर्व मनाती हो या फिर पश्चिमी सभ्यता, जिसने धर्म का एक बहुत संगठित रूप ले लिया हो। आज भले ही थैंक्सगिविंग और क्रिसमस ने बड़े पैमाने पर खाने-पीने, पीने-पिलाने और पैसे जुटाने के अवसर का रूप ले लिया हो, लेकिन बुनियादी तौर पर यह पर्व आभार जताने और अपनी साधना को गहन बनाने का हेाता है। यह अवसर होता है अपनी बाहरी गतिविधियों को धीमी कर अपने भीतर मुड़ने की जरुरत के बारे में जागरूक होने का।
साधना तीव्र करने के लिए अच्छा समय है ये
योगिक विज्ञान में बड़ी गहराई से इस बात की पड़ताल की गई है कि साल का यह समय हमारे सिस्टम पर किस तरह का प्रभाव डालता है और कैसे हम योग अभ्यास करें, जिससे जब वसंत ऋतू आए तो साधना के पौधे में फूल व फल खिल सके।
ये जो पैर आपको चलने में मदद करते हैं, ये विकास की प्रक्रिया में एक तरक्की है। यह कुछ वैसा ही है, जैसे आपके फोन पर रोज नए-नए अपग्रेड आते रहते हैं, इसलिए आप उनकी कीमत नहीं समझते हैं। इसी तरह से धरती पर आपको चलने में सक्षम बनाने वाला यह अपग्रेड आपके लिए एक महान वरदान है, लेकिन अधिकतर इंसान इसका इस्तेमाल अपने कल्याण के लिए नहीं कर रहे हैं। लोगों को लगता है कि सबसे अच्छा जीवन कहीं और है और वे स्वर्ग की तरफ देख रहे हैं। इस धरती और इस सौर मंडल का चक्र आपके सिस्टम पर कई तरह से प्रभाव डालता है और आप इनसे फायदा उठा सकते हैं। हालांकि आप इसके बिना भी कर सकते हैं, लेकिन मकसद अगर मंजिल पर पहुँचना है तो इसके लिए ऊपर की ओर जाने वाला रास्ता क्यों लिए जाए, जब आप नीचे वाले रास्ते से भी वहां पहुँच सकते हैं।
निर्वाण के लिए बिना किसी लक्ष्य के जलना होगा
यह एक अच्छा समय है, और खास तौर पर यह साल कई रूपों में बहुत अच्छा है। आपको इस जीवन का हर पल तीव्र रूप से प्रज्जवलित रखना चाहिए। अगर आप कमजोर पड़ गए तो आप कहीं नहीं पहुंच पाएंगे। आमतौर पर लोग अपनी इच्छा, जुनून, चाहत, व महत्वाकांक्षा को लेकर ही जलते रहते हैं। जबकि निर्वाण का मतलब होता है बिना किसी निश्चित लक्ष्य के जलना। आप कहीं पंहुचने की कोशिश नहीं कर रहे, आप कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं कर रहे, बस सहज रूप से खुद को जला रहे हैं। जीवन का मकसद सिर्फ जीवन ही है। जीवन को अपने चरम पर पहंुचना चाहिए। इसका मतलब है कि आपको पूरी तरह से सक्रिय होना होगा। जो लोग खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें कोई नहीं बचा सकता। यह जीवन केवल जीने के लिए ही है। हम लोगों ने जीने को एक काम समझने की गलती की हैं। जीवन जीना एक घटना है, जो हमारे भीतर घटित हो रही है।
Subscribe
जब लोग कहते हैं ‘मेरा जीवन’, तो ज्यादातर लोगों का मतलब होता है - उनका रोजगार, परिवार, कार, जो वे खरीद नहीं पा रहेे या फिर वह घर जिसके लिए उन्होनंे अपना जीवन गिरवी रखा हुआ है। वे लोग हर चीज के बारे में बात करते हैं, सिवाय अपने भीतर के जीवन के। आपके जीवन में ‘जीवन’ का मतलब आपका खाना, आपका कपड़ा और आपका काम नहीं होना चाहिए। ‘जीवन’ का मतलब है, वह जीवन जो आपके भीतर फिलहाल प्रज्जवलित है। आपका काम सिर्फ इस जीवन को पूरी तहर से सक्रीय रखना होना चाहिए। कोई काम या गतिविधि किसी पल की जरूरत का नतीजा है। हम वही करते हैं, जिसको करने की जरूरत होती है। सबसे महत्वपूर्ण चीज इस जीवन प्रक्रिया को पूरी तरह से सक्रिय रखा जाए, क्योंकि आप न तो इसे खींच कर बढ़ा सकते हैं और न ही बचा कर रख सकते हैं। जो लोग इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें ये मिलेगी ही नहीं।
प्रकृति ने मनुष्यों को बंधन मुक्त बना दिया है
अपने जीवन को पूरी तरह से सक्रिय बनाए रखने के लिए बहुत से तरीके हैं, इन योगिक अभ्यासों की गति बढ़नी चाहिए।
पेड़ सुंदर होते हैं, चिड़ियां चहचहाती अच्छी लगती हैं, वे उड़ सकती हैं और आप नहीं उड़ सकते। लेकिन वे सिर्फ खाने व बच्चे पैदा करने के बारे में सोचती हैं और मरना तो उन्हें एक न एक दिन है ही। वे अपने भीतर इससे ज्यादा बड़ी चाहत नहीं पाल सकती, क्योंकि यह चीज उनके भीतर है ही नहीं। इस मामले में प्रकृति ने आपके सामने से सारी बाधाएं हटा रखी है। लेकिन आप बिना यह पहचाने कि आप एक विकसित जीवन हैं, आदतन आप इन बाधाओं को पकड़े बैठे हैं। जब आप एक पेड़ या उस पेड़ पर मौजूद कोई जीव थे, उस समय की आपकी याद्दाश्त अभी भी आपको चला रही है। जिस तरह से आपके भीतर बचपन की यादें अभी भी भरी हुई हैं, उसी तरह से क्रमिक विकास से जुड़ी हुई यादें भी आपके भीतर बसी हुई हैं। अगर आप इन्हें मौका देते हैं तो यह आपको चलाती हैं। ये यादें आपको अभी भी एक बंदर की तरह सोचने व काम करने के लिए मजबूर करती हैं।
मानव जीवन की संभावनाओं को पहचानना होगा
क्रमिक विकास के इस जबदस्त वरदान को पहचानने के लिए कुछ काम करने की जरूरत है। नहीं तो हम इसे देख ही नहीं सकते। हमें लगता है कि हम भी दूसरे प्राणियों की तरह हैं और फिर हम उन्हीं बेकार की चीजों के साथ हमेशा संघर्ष करते रहते हैं। दुनिया की कम से कम 90 प्रतिशत आबादी अपना पूरा जीवन सिर्फ खाने और जीवन के संघर्ष में निकाल देती है। वह दूसरे प्राणियों की तुलना में हुए अपने क्रमिक विकास को पहचान ही नहीं पाते। अगर इतना ज्यादा इंसानी दिमाग विकसित हुआ है, अगर इतना ज्यादा प्रतिभा खिली है, अगर इतनी अधिक चेतना संभव हो पाई है तो हमें कम से कम अपने जीवन जीने के लिए होने वाले संघर्ष प्रक्रिया से ऊपर उठ जाना चाहिए।
हमारा पूरा जीवन इसी के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गया है कि कैसे हम अपनी रोजी-रोटी कमाएं, कैसे अपने सिर ढंकने के लिए एक आसरा बनाएं, कैसे बच्चे पैदा करें। क्रमिक विकास ने हमें धरती पर रेंगने वाले प्राणियों की श्रेणी से निकाल कर एक ऐसा प्राणी बनाया, जो इस धरती पर कुछ भी कर सकता है। अगर आप मानव के निर्माण के लिए हुए क्रमिक विकास को नहीं पहचान पाते तो यह जीवन और सृष्टि के साथ एक अन्याय और अपराध है। आपको यहां तक पहुँचने में खरबों बरस लगे हैं। फिर भी आप ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं, जैसा आप हजारों खरबों साल पहले करते थे? पूरी योगिक संस्कृति इंसान के भीतर पहले ही जो क्रमिक विकास हो चुका है, उसे पहचानने और उस विकास का सशक्त इस्तेमाल करने के लिए तैयार करने को लेकर है। आपको अब और विकसित होने की जरूरत नहीं है। विकास तो पहले ही हो चुका है। आपको इस स्तर के नीचे नहीं, बल्कि इस विकास को पहचानने और इसके शीर्ष पर खड़े होने की जरूरत है।
आखिर हम जीवन जी क्यों रहे हैं?
सारी फिलोसोफी और राजनैतिक विचारधाराएं बस जीवन को बचाय रखने को लेकर तैयार की गई हैं, मानो मानव जीवन का यही परम लक्ष्य हो।
मैं चाहता हूं कि दक्षिणायन के इन आखिरी तीन महीनों में आप खुद को पूरी तरह से प्रज्जवित करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं, लेकिन आपके भीतर का जीवन पूरी तरह से प्रज्ज्वलित रहना चाहिए। मन में सवाल आ सकता है- ‘अगर मैं मर गया तो क्या होगा?’ अरे उसी के लिए तो आप जी रहे हैं। एक न एक दिन तो आपको मरना ही है। बात सिर्फ इतनी है कि मरने से पहले आप एक भरपूर जीवन बनकर जीएंं। हमारी सबसे बड़ी समस्या है कि हमने अपने आप को बहुत बड़ा बना लिया है। हम लोग यह समझने को तैयार नहीं कि हम लोग एक गुजरती हुई पीढ़ी हैं। हमसे पहले कितने लाखों करोड़ लोग इस धरती पर आए और फिर इसी धरती में समा गए। लेकिन आज जब हम यहां हैं तो लगता है कि यही सब कुछ है। जबकि ऐसा नहीं है। अगर यह जीवन पूरी तरह से सक्रिय व प्रज्जवित हो उठेगा तो जीवन के घटित होने की घटना प्रत्यक्ष होगी। जब प्रकाश पूरी तहर से फैला होता है, तभी हमें अपने आस-पास सब कुछ दिखाई देता है। ठीक इसी तरह जब यह जीवन पूरी तरह से सक्रिय होगा, तभी आप देख पाएंगे कि इसके भीतर क्या है। वर्ना तो आपके विचार, भावनाएं, सोच व गतिविधियां आपके नजरिए व दृष्टि को धुंधला कर आपको व्यस्त रखती हैं।
22 दिसम्बर तक "मेरा क्या होगा" का विचार न आने दें
यही वो चीज है, जो मैं चाहता हूं कि युवा लोग समझें। मैं नही चाहता कि आप अपना पूरा जीवन यह सोचते हुए निकाल दें कि मैं किससे शादी करूं, कहां खाना खाऊं, कहां काम करूं? आप जिससे भी शादी करेंगे, कुछ समय बाद ही आप उसे अपने लिए सिरदर्द बना लेंगे।
आपको मजबूती से जीवन जीना होगा। यहां मजबूती से मतलब शारीरिक शक्ति नहीं है, बल्कि यह जीवन के संदर्भ में है। शक्ति का मतलब यह नहीं है कि आप किसी चीज या व्यक्ति पर कितना दबाव डाल सकते हैं। यह अपने भीतर से मजबूत होने की बात है। मजबूती से मतलब मन की मजबूती नहीं, तन की मजबूती नहीं, बल्कि उस जीवन की मजबूती से है, जो आप हैं। एक बार अगर आपके भीतर जीवन पूरी तरह से प्रज्जवलित हो उठता है तो फिर आप दुनिया में कुछ भी काम करते हैं तो वह अपने आप में शानदार होगा। जबदस्त चीजें घटित होंगी, अगर आप कुछ नहीं भी करते हैं तो भी यह दुनिया के लिए चमत्कारिक चीजें करेगा।