सद्‌गुरु21 जून से शुरू हुए दक्षिणायन को साधना पद भी कहा जाता है। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि ये धरती से एक गहरा सम्बन्ध स्थापित करने का समय है। वे बाताते हैं कि हम मिट्टी को गंदगी समझने लगें हैं और इस समझ से छुटकारा पाना होगा।

21 जून से शुरू हुआ दक्षिणायन या साधना पद

योगिक पद्धति में साल के इस हिस्से को ‘दक्षिणायन’ या ‘साधना पद’ के नाम से जाना जाता है। यह ख़ुद पर काम करने का समय होता है। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे खेती और बाग़वानी में एक समय काम करने का और दूसरा समय बैठ कर वहाँ उगने वाले फूलों व फलों को देखने का होता है। पौधों का बढ़ना और फूलों का खिलना हमारा किया हुआ नहीं होता है। हमें जो करने की ज़रूरत है वो यह कि चीज़ों को साकार करने वाले पहलुओं को अपने हाथ में ले लें। जैसे हमारा शरीर, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारी ऊर्जा, इस शरीर का निर्माण करने वाले तत्व और समय- जो हमारे अस्तित्व की अवधि तय करता है। अगर हम इन सारी चीजों का जिम्मा अपने हाथों में ले लेंगे तो फूल जरुर खिलेंगे, उसे कोई नहीं रोक सकता।

दक्षिणायन धरती से गहरा सम्बन्ध बनाने के बारे में है

अगले छह महीनों तक सूर्य का धरती से रिश्ता बहुत अलग तरीके का होने जा रहा है। इसलिए इस दौरान आप भी तय कीजिए कि धरती से आपका रिश्ता अलग तरीके का हो।

इस संस्कृति में एक गहरी समझ है कि माटी हमारी मां है। हम लोग माटी से ही पैदा होते हैं। हमारी जैविक मां तो सिर्फ एक प्रतिनिधि भर होती है, जो खुद भी उसी माटी से जन्मी है।
हम लोग धरती पर चल रहे हैं, हम धरती से मिला हुआ खा रहे हैं और हम धरती के साथ ही सांस ले रहे हैं। वास्तव में आप धरती का ही एक हिस्सा हैं, लेकिन इस बात को आप ज्यादातर समय भूले रहते हैं। दक्षिणायन बुनियादी रूप से धरती से गहरा सम्बन्ध बनाने के बारे में है। धरती के साथ हमारे इस गहन रिश्ते की झलक हमें इस संस्कृति में भी बखूबी मिलती है। विंध्याचल पर्वत के दक्षिण की ओर की संस्कृति धरती केंद्रित है। यहां पृथ्वी व जल को सबसे महत्वपूर्ण कारक माना गया है। उत्तरी संस्कृति अग्नि और आकाश केंद्रित हैं। उत्तर में जब आप दैवीयता का बात करते हैं तो लोग ऊपर की ओर देखते है। ‘ऊपरवाला’  शब्द उत्तर भारत से ही आया है। जबकि दक्षिण भारत में अगर आप दैवीयता की बात करेंगे तो लोग नीचे की तरफ देखेंगे।

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तमिल में हम मिट‌टी को 'थाई मनु’ कहते हैं, जिसका मतलब होता है - माटी मां। इस संस्कृति में एक गहरी समझ है कि माटी हमारी मां है। हम लोग माटी से ही पैदा होते हैं। हमारी जैविक मां तो सिर्फ एक प्रतिनिधि भर होती है, जो खुद भी उसी माटी से जन्मी है। असली मां तो यह माटी यानी धरती ही है, जिसे हम अपने शरीर के रूप में लेकर चलते हैं। लेकिन इन दिनों हम मिट‌्टी को गंदगी समझने लगे हैं। आजकल अगर बच्चे मिट्टी में खेलते हैं तो आज की मांए चिल्लाती हैं, 'तुम्हारे हाथ गंदे हैं।' हाथ गंदे नहीं होंगे, उनके जरिए आप अपने जीवन के स्रोत को छू रहे हैं। जब आप जीवन के स्रोत को गंदगी समझने की भूल करने लगते हैं तो इस बात की संभावना बेहद कमजोर हो जाती है कि अपनी परम संभावनाओं व क्षमताओं तक विकसित होने के लिए, फूल व फल खिलते हुए देखने के लिए, आप अपनी जड़ों को गहराई तक ले जा पाएंगे।

आप धरती का एक हिस्सा हैं

अगर कोई पेड़ यह सोचेगा कि मिट्टी में जाने से मेरी जड़ें गंदी हो रही हैं तो न तो उसमें फूल खिलेगा और न ही कोई फल आएगा। पेड़ अपनी जड़ें धरती की गहराई में डालते समय यह अच्छी तरह से समझता है कि यह मिट्टी ही उसके जीवन का आधार है।

आज आप जो भी हैं, उसका आधार यह धरती ही है और जब तक आप इससे सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि हर तरह से पोषित नहीं होते, जब तक आप इसके साथ ट्यून नहीं होते, तब तक आपके लिए इसके च्रकों की सवारी करना बहुत मुश्किल होगा।
लेकिन इस धरती के सबसे बुद्धिमान मानी जानी वाली प्रजाति मानव, इस सच को समझ नहीं पा रही। आज इंसान कई तरह की समस्याओं से जो जूझ रहा है, उसके मूल में कहीं न कहीं यह चीज है कि वह जीवन के स्रोत से कट गया है। आत्म-ज्ञान की बात भूल जाइए, जीवन के दूसरे आयामों तक पहुंचने की बात भी भूल जाइए, इंसान तो आज खुद को सेहतमंद रख पाने में भी सफल नहीं हो पा रहा, जबकि कुदरत के दूसरे जीव बिना किसी दिक्कत के, आराम से, खुद को सेहतमंद रख पा रहे हैं। क्योंकि इंसान धरती से जुड़ नहीं पा रहा और मिट्टी को लेकर कहीं न कहीं उसके मन में यह बैठ गया है कि यह गंदगी है।

आज लगभग पूरी दुनिया में यही संस्कृति आ चुकी है। उन्हें लगता है कि वे स्वर्ग से सीधे आ टपके हैं। यहां तक कि कई धर्म भी आपको यही बता रहे हैं कि आप स्वर्ग से आए हैं, आपकी शादियां वहां तय होती हैं, यही वजह है कि ज्यादातर लोगों की शादियाँ ‘दूसरी दुनिया’ की लगती है। जबकि आप इस धरती से बाहर निकले हैं। आदियोगी ने यह बात कई तरह से समझाई है – सिर्फ पांच तत्वों पर काबू करने पर, आप यह जान सकते हैं कि आप कौन हैं और आप अपने जीवन-चक्रों की सवारी कर सकते हैं। आज आप जो भी हैं, उसका आधार यह धरती ही है और जब तक आप इससे सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि हर तरह से पोषित नहीं होते, जब तक आप इसके साथ ट्यून नहीं होते, तब तक आपके लिए इसके च्रकों की सवारी करना बहुत मुश्किल होगा।

धरती से जुड़ना होगा

अगर आप चाहते हैं कि फूल खिलें, तो आपको अपनी जड़ें धरती में जमानी होंगी। इसके लिए आपको जमीन से जुड़ना होगा।

मेरी कामना है कि दुनिया का हर व्यक्ति जाने कि यहां मौजूद सबसे ऊंची संभावनाएं क्या हैं। अब वे इस रास्ते पर चलें या नहीं, ये पूरी तरह से उन पर निर्भर होगा।
आपको उस दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए कि लोग रोते हुए, या रोने का बहाना करते हुए, आप पर मिट्टी डालें। इस सच्चाई को महसूस करने के लिए आज का दिन अच्छा है। मानवता के इतिहास में हम उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां इंसान की बुद्धि आज से पहले कभी इतनी सक्रिय नहीं थी। आज लोग अपने बारे में पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से सोच सकते हैं, हम लोग आज पूरी दुनिया से संपर्क और संवाद बना सकते हैं, जो आज से पहले कभी संभव ही नहीं था। आज इंसानों के जीवन को छूने की हमारी क्षमता लगभग असीमित हो चुकी है। हम लोग इस चीज के महत्व को कम समझ रहे हैं। इसलिए जब ऐसी संभावना मौजूद है तो आपको इस पृथ्वी पर मौजूद महानतम संदेश को जानना चाहिए। मेरी कामना है कि दुनिया का हर व्यक्ति जाने कि यहां मौजूद सबसे ऊंची संभावनाएं क्या हैं। अब वे इस रास्ते पर चलें या नहीं, ये पूरी तरह से उन पर निर्भर होगा।

हर व्यक्ति को पता होना चाहिए कि जीवन जीने के बेहतर तरीके भी हैं। अब वे उसे आज चुनते हैं या कल, दस साल बाद या अपनी मृत्युशैया पर चुनते हैं, ये पूरी तरह से उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर है, जो कहीं न कहीं उनकी बुद्धि का स्तर पर दिखाता है। भले ही यह उनकी इच्छा पर निर्भर करता है, लेकिन उन्हें पता जरूर होना चाहिए। जिस तरह से आप जीवन जीते हैं, उससे यह जरूर लगना चाहिए कि आपकी साधना काम कर रही है। आपका चेहरा देखकर लोगों को यह पता चलना चाहिए कि आपके साथ जीवन में शानदार चीजें हुई हैं। यहां तक कि जो लोग आपको पसंद भी नहीं करते, उन्हें भी आपके बारे में कुछ शानदार चीजें नजर आनी चाहिए। यह अगले छह महीने के लिए आपका काम है। इसे अपने लिए साकार कर दिखाएँ।

Love & Grace