पंच तत्व - मिट्टी तत्व से जुड़ी साधना
मिट्टी तत्व हमारे अस्त्तिव का आधार है, क्योंकि अन्य तत्वों जैसे पानी, हवा के लिए धरती ही आधार है। इस बार के स्पॉट में सद्गुरु हमें कुछ अत्यंत सरल साधनाएं बता रहे हैं, जो मिट्टी तत्व से जुड़ी हुई हैं।
योग के शब्दों में जब हम ‘धरती’ की बात करते हैं तो उसका मतलब सिर्फ इस ग्रह से नहीं होता, बल्कि हमारा मतलब सबसे महत्वपूर्ण तत्व मिट्टी से होता है जो इस भौतिक शरीर, बल्कि सृष्टि की हर चीज के निर्माण के लिए जरुरी तत्वों में से एक है। हमारा भौतिक शरीर बुनियादी रूप से धरती, जल, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों का एक मेल होता है। धरती इन पांचों तत्वों में सबसे बुनियादी और स्थायी तत्व है। बात जब ऊर्जा सिस्टम और चक्रों पर आती है तो इसका संबंध मूलाधार से होता है। यही वह आधार है, जिसपर बाकी सारे तत्व और हमारी भौतिकता निर्भर है। हालांकि यह धरती तत्व हमारे चारों तरफ पाए जाने वाले भौतिक पदार्थों का भी हिस्सा है, लेकिन बेहतर यह होगा कि हम इसे अपने जीवन के आधार के रूप में समझना और अनुभव करना शुरू कर दें। दरअसल, अधिकतर लोग वास्तव में अपने शरीर और मन का ही अनुभव करते हैं। पृथ्वी तत्व को अपने भीतर से जानना और महसूस करना भी योगिक प्रकिया का हिस्सा है।
जब भी आप खाना खाते हैं तो आप धरती के एक हिस्से को निगल रहे होते हैं। दरअसल इस शरीर को बनाए रखने के लिए हम इस धरती के एक हिस्से को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
अब सवाल यह है कि पृथ्वी के साथ संबंध कैसे स्थापित किया जाए? हरेक जीव-जंतु ने बोध का अपना एक स्तर सेट किया हुआ है, उसी के अनुसार वे जीवन को एक खास तरह से अनुभव करते हैं। जानवर धरती से काफी हद तक जुड़े होते हैं, क्योंकि उनके पास वैसी बुद्धिमत्ता और जागरूकता नहीं होती जैसी इंसानों के पास होती है। बात जब इंसानों की आती है तो उनके अस्तित्व पर उनकी मनावैज्ञानिक चेतना हावी हो जाती है। एक तरह से देखें तो अनुभव के स्तर पर एक केंचुआ इस धरती से अपना संबंध बेहतर तरीके से जानता है, लेकिन वह जागरूकता के स्तर पर इसे महसूस नहीं कर पाता। अगर आप इसे मिट्टी से बाहर निकालेंगे तो यह वापस सीधे उसी मिट्टी में जाना चाहेगा। अगर आप किसी मछली को पानी से निकालेंगे तो यह तुरंत वापस उसी पानी में जाना चाहेगी। ऐसा सिर्फ उनके जीवन-रक्षा की वजह से नहीं है, बल्कि अपने प्राकृतिक निवास से एक खास तरह का परिचय भी एक कारण होता है। उस संदर्भ में वे धरती के साथ अपने संबंधों को जानते हैं। लेकिन जब वे धरती या पानी में होते हैं तो उनमें इनके प्रति जागरूकता नहीं होती।
ज्यादातर इंसान एक ही स्थिति में होते हैं। प्रकृति ने हमें बुद्धि व जागरूकता के एक अलग स्तर तक विकसित कर दिया है, लेकिन हम लोग इस प्रमोशन को स्वीकार करने से मना कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि आप हवा, पानी या धरती के बिना नहीं रह सकते। अगर कोई इनमें से एक भी चीज आपसे लेने या छीनने की कोशिश करता है तो आप बुरी तरह से उसे वापस पाने की कोशिश करते हैं।
आधुनिक शिक्षा और आधुनिक संस्कृति का पूरा फोकस इसी पर है कि हम अपने भौतिक पर्यावरण व उसके हर तत्व का कैसे इस्तेमाल और दोहन कर सकें। हम अपनी बुद्धि के प्रभाव व जागरूकता का इस्तेमाल करते हुए जीवन को अनुभव करने के तरीके को कैसे बेहतर बना सकते हैं, इसे नहीं बताया जा रहा है। हमने अपने आसपास की हर चीज का इस्तेमाल करना सीख लिया, फिर भी हमारा कल्याण नहीं हुआ। अगर आप अपनी भौतिक स्थितियों को बेहतर करने की कोशिश करते हैं तो केवल वही बेहतर होते हैं, लेकिन इससे आपमें या जीवन को अनुभव करने के आपके तरीके में कोई सुधार नहीं आता। जब आप सांस लेते हैं तो हवा की कोई ऐसी खास मात्रा नहीं है, जो आपकी या मेरी हो। अपने आस-पास के परिवेश के साथ लेन-देन किए बिना आप जीवित नहीं रह सकते। एक केंचुआ तो यह जानता है, लेकिन अधिकतर इंसानों में इस स्तर की भी जागरूकता नहीं होती। हमारी बुद्धि और जागरूकता ही हमारे विरुद्ध उठ खड़ी हुई है, क्योंकि हमने कभी अपने लिए एक पर्याप्त मजबूत आधार तैयार करने की कोई जरूरत ही नहीं समझी। इसीलिए पृथ्वी तत्व हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है और इसीलिए आपका मूलाधार स्थिर होना चाहिए।
इस धरती के साथ संबंध बनाने का और अपने मूलाधार को स्थिर करने का सहज तरीका है कि नंगे पैर चलना। अमावस्या से दो दिन पहले वाला दिन प्रदोष होता है।
अगर रोज संभव न हो तो कम से कम इन तीन दिनों में, प्रदोष से लेकर अमावस्या तक, आप नंगे पैर रहें और चलें। अगर आप बाहर नंगे पैर नहीं निकल सकते तो कम से कम घर में तो नंगे पैर रहें, फर्श पर आलथी-पालथी मार कर बैठें। ये दोनों क्रियाएं ही आपके भीतर न सिर्फ धरती से ऊर्जा का गहन संबंध जोड़ती हैं, बल्कि आपके भीतर पृथ्वी का अंश होने का भाव भी जगाती हैं। फर्श पर लेटने से आपको उस तरह की सजग अनुभूति नहीं होगी। यह तो हमें पता है कि जब आप जमीन पर लेट जाएंगे तो किस तरह का ध्यान करेंगे। लेटते हुए आपकी ऊर्जाएं ऐसे काम करेंगी कि आपका अनुभव जागरूकता से भरा नहीं होगा। इस संस्कृति में ऐसे कई और भी अभ्यास हैं जिनके जरिए आप अनुभव के स्तर पर धरती से जुड़ सकते हैं। साल के कुछ खास दिनों में लोग कुछ खास जगहों की मिट्टी खाते भी हैं, जैसे दीमक के घरौंदे या ऐसी ही कुछ जगहों की मिट्टी, ताकि मिट्टी से जुड़ने का अनुभव पा सकें। अपने दैनिक जीवन में इन तत्वों को अपने अनुभव में लाने के लिए भूत शुद्धि की क्रिया भी की जाती है, जिसे हम सिखाते हैं।
सबसे अच्छी बात तो यह होगी कि आप अपने द्वारा ली जाने वाली हर सांस के प्रति सजग हो सकें। जब आप हवा में सांस लें तो यह सजगता बनाएं कि आप इस धरती का कुछ हिस्सा अपने भीतर सांस के रूप में ले रहे हैं।
नंगे पैर चलें, फर्श या धरती पर आलथी-पालथी मार कर बैठें और भूत शुद्धि क्रिया का अभ्यास करें। जो आप खाएं, सासं लें और पिएं उसके पीछे सजगता रखें कि उनके द्वारा आप अपने भीतर इस धरती का अंश ग्रहण कर रहे हैं। आप जो भी करें, उसे यथासंभव सजगता के साथ करें। आप जिंदगी का अनुभव कैसे करते है, यही चीज आपके लिए एक अलग ही दुनिया की रचना करेगी।
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वह मिट्टी जिसपर चलते हो तुम
वह मिट्टी जिसे समझते हो तुम गन्दगी -
वह मिट्टी है – एक जादुई पदार्थ
जो बन जाती है –
कभी फूल, कभी फल तो कभी पत्ती।
जीवन के रूप में
जिसे भी तुम जानते हो
उसे धारण किया था
कभी उस पावन मिट्टी ने-
अपने साश्वत गर्भ में।
मिट्टी – है किसी के लिए मां
तो किसी के लिए गंदगी।
लेकिन सबका ही उद्गम है - यही मिट्टी।
जीवन को एक आवरण देने वाला
यह शरीर रुपी पिंजरा
कुछ और नहीं – है मिट्टी।
किसान का हल, कुम्हार का चाक और
सर्वोपरि - दैवीय इच्छा –
रूपांतरित कर देते हैं इसे
एक जादुई कारखाने में।