युवाओं में बढ़ती निराशा का क्या हल है?
यहाँ सद्गुरु कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर दे रहे हैं जो इस बारे में हैं कि आज की पीढ़ी में युवा लोग बहुत ज्यादा पैसा कमा रहे हैं, जिससे काफी ज्यादा निराशा पैदा हो रही है।

प्रश्न : ऐसे बहुत से लोग हैं जो जीवन में बहुत जल्दी पैसा कमाना शुरू कर रहे हैं। 20 या 21 साल की उम्र में वे बड़ी कंपनियों में काम करके बहुत बड़ी रकम कमा रहे हैं। पर, फिर, कुछ समय बाद उन्हें ऐसा लगने लगता है कि उनके जीवन में कुछ कमी है, उन्हें खालीपन का अहसास होने लगता है।
सद्गुरु: पहले, बहुत से लोगों के साथ जो 60 साल की उम्र में होता था, वो आज 24 में हो रहा है। उन्हें तो खुश होना चाहिये। उन्हें जल्दी ही समझ आ जाती है, नहीं तो पूरी उम्र बर्बाद करने के बाद ही ये पता चल पाता था।
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पुरानी पीढ़ी के लोगों को ये इसलिये पता नहीं चलता था क्योंकि 18 की उम्र में आने तक उनकी शादी हो जाती थी, और 24 के होते-होते उनके 4 बच्चे हो जाते थे। पूरा जीवन एक संघर्ष होता था - चार बच्चों को पढ़ाना, उनकी शादी कराना। फिर पोते, पोतियाँ आ जाते थे और इससे पहले कि उनको कुछ पता चले कि ये सब क्या था, उनका अंतिम समय आ जाता था और अंतिम संस्कार हो जाता था।
अब, आप 25 के हैं और अभी आपकी शादी भी नहीं हुई है। आप अच्छा पैसा कमा रहे हैं, आपने दुनिया भी देख ली है और आप जानते हैं कि इस सब का कोई मतलब नहीं है। तो ये अच्छा है कि लोगों को समझ जल्दी आ रही है।
प्रश्न : तो ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिये? उन्हें कौन सा रास्ता लेना चाहिये?
सद्गुरु: कोई दो रास्ते नहीं हैं। यहाँ बस जीवन है। अगर आपको लगता है कि जीवन बस सतही है, बस ऊपर-ऊपर है तो इसका मतलब है कि आप बस सतही तौर पर ही जी रहे हैं। तो आपको जीवन में थोड़ा गहरा उतरना चाहिये। क्या कोई और रास्ता है? "नहीं, मैं मरना चाहता हूँ"! मौत भी आपके जीवन का ही भाग है। यहाँ, जीवन के अलावा आपके पास और कुछ नहीं है। आपके पास एक ही विकल्प है, कि आप या तो इसे सतही तौर पर जियें या फिर एक गहन ढंग से। तो चुनिये। आपके पास यही विकल्प हैं।
प्रश्न : पर यहाँ एक और सवाल उठता है। सही गुरु कैसे चुनें? बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि किस पर विश्वास करें?
सद्गुरु: किसी पर भी विश्वास न करें। आप अगर ईशा में आयें तो मैं आपको कुछ आसान सी चीज़ दूँगा, उस पर काम कीजिये। अगर आपको कुछ नहीं मिलता तो चले जाईये। अगर ये काम करता है तो अगला कदम उठाईये। या, अगर आपके अंदर कुछ प्रज्वलित हो जाता है, तो मुझे आपको कुछ भी बताने की ज़रूरत ही नहीं है, किसी भी तरह से आप वही करेंगे, जो आपको करना है। तब तक बस एक समय पर एक कदम उठाईये। अगर कुछ होता है तो डटे रहिये, और कुछ और कदम उठाईये।
प्रश्न : पर हम अपने उद्देश्य को कैसे जानें?
सद्गुरु:क्या आप ये देख सकते हैं कि आप कुछ बंधनों के साथ रह रहे हैं, कुछ सीमाओं में बंधे हुए हैं? तो, उनसे मुक्त होना ही एकमात्र उद्देश्य है। रास्ते पर आप क्या करते हैं, वो आपकी योग्यता के अनुसार होगा। हो सकता है कि आप फर्श पर झाड़ू-पोछा लगायें, या कुछ और संभालें, या देश चलायें, या कुछ भी करें - वो तो सिर्फ रास्ते पर होता रहेगा। भारत में होने का यही महत्व है। आप चाहें राजा हों, या कोई अनपढ़ किसान, या बड़े पंडित, हम सब एक ही उद्देश्य को पाना चाहते हैं - मुक्ति! कोई सिर्फ इसलिये श्रेष्ठ नहीं है कि वो राजा है। हम सब एक ही मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। सवाल बस यही है कि वहाँ जल्दी कौन पहुँचता है?
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