क्या उत्तर-पूर्वी भारत पूरे देश से अलग-थलग महसूस करता है?
सद्गुरु इस राष्ट्र के भूत, वर्तमान और भविष्य की बात कर रहे हैं और खोज कर रहे हैं कि क्यों यह संस्कृति दुनिया भर के इंसानों के लिये प्रासंगिक है। चित्रों, लेखचित्रों और सदगुरु के प्रेरणादायी शब्दों के साथ यह वो भारत है जिसे आपने कभी नहीं जाना।
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प्रश्न : उत्तर पूर्व भारत के लोग अपने आप को शेष भारत से अलग थलग क्यों महसूस करते हैं?
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सद्गुरु : हमें इसके संदर्भ और इतिहास को थोड़ा और जानना चाहिये। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब उत्तर पूर्व के लिये निर्णय और योजनायें बन रही थीं तब जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें उस क्षेत्र की प्राचीन प्रकृति एवं आदिवासी संस्कृति को नही छूना चाहिये।
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उत्तरपूर्व का इतिहास
शुरुआत में यह एक सोचा समझा निर्णय था कि उत्तरपूर्व क्षेत्र को न छुआ जाये क्योंकि वे लोग अपने प्राकृतिक तंत्र में आराम से रह रहे थे। वहां मोटर कार, रेल गाड़ी और हवाई जहाज लाकर उस क्षेत्र को बाकी के संसार की तरह बनाने की कोई जरूरत नही थी। वे लोग अच्छी तरह से जी रहे थे। आज, एक ऐसा देश जिसने ऐसा सोचा समझा निर्णय लिया है और उसे सफलता पूर्वक लागू किया वह शायद भूटान है।
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मूल उद्देश्य यह था कि आदिवासी संस्कृति और उनके प्राकृतिक इलाकों के साथ छेड़छाड़ न की जाए। लेकिन लगभग बीस साल बाद उन्होंने देखा कि वहां के लोगों की आकांक्षा कुछ और है तो उन्हें अपनी योजना बदलनी चाहिए थी पर भारत में योजनाएं बदलने में बहुत समय लगता है। इसके कारण विकास कार्य बिना उचित योजना बनाये शुरू हो गया।
विकास की आकांक्षा
अब, आज संचार माध्यमों के संपर्क के कारण सभी लोग न्यू यॉर्क और लंदन जैसे बड़े शहरों को टीवी और इन्टरनेट पर देख रहे हैं, बिना कभी वहां गए। सभी लोग पश्चिमी जीवन पद्धति से बहुत आकर्षित हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें भी वैसा ही बनना चाहिये। सरकार ने अगले 15 - 20 वर्षों में उत्तरपूर्व में रेल्वे, विमान सेवा, सड़कें और सभी कुछ लगाने की योजना बनाई है। जब वैसा हो जायेगा तब बाकी भारत के लोग सारे उत्तरपूर्व में आसानी से घूम सकेंगे।
परिस्थिति अब बदल रही है। तो मुझे नही लगता कि अगले पांच वर्षों में उत्तरपूर्व वाले अपने आप को शेष भारत से अलग-थलग महसूस करेंगे। लोग वहां सभी जगह होंगे। इस साल मैं अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिये लद्दाख और सियाचिन गया था। यह देखना आश्चर्यचकित करने वाला था कि हर जगह हज़ारों मोटर साइकिलें थीं। पर्यटक हर जगह थे और पहाड़ों पर ट्रैफिक जाम लग रहे थे जो कुछ वर्षों पहले नही सुना गया था।
उत्तर पूर्व में आने वाला बदलाव
परिस्थितियां अब बदल रहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि अगले 5 वर्षों में उत्तरपूर्व के लोग अपने आप को अलग थलग महसूस करेंगे। लोग वहां सभी जगह होंगे। वहाँ सिर्फ वन्य जीवन देखने वाले लोग नही होंगे -- हर जगह लोग पिकनिक कर रहे होंगे। यह सब होने वाला है क्योंकि लोगों ने विकास को चुना है। हमें लग रहा है कि यह विकास है, लेकिन इससे देश को कुछ नुकसान भी होगा।
संपादकीय टिप्पणी : सद्गुरु इस राष्ट्र के भूत, वर्तमान और भविष्य की बात कर रहे हैं और खोज कर रहे हैं कि क्यों यह संस्कृति दुनिया भर के इंसानों के लिये प्रासंगिक है। चित्रों, लेखचित्रों और सदगुरु के प्रेरणादायी शब्दों के साथ यह वो भारत है जिसे आपने कभी नहीं जाना।