सद्गुरु:
‘उपयोग’ योग की एक प्रणाली है, जिसका रूझान आध्यात्मिकता की ओर बहुत अधिक नहीं है, वह इन्सान के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा के आयामों की ओर अधिक झुकी हुई है। यह इसलिए है ताकि इन्सान एक अधिक संपूर्ण भौतिक जिन्दगी जी सके।
भारतीय भाषाओं में, दुर्भाग्यवश
उपयोग शब्द का अर्थ विकृत हो गया है। इसका अर्थ समझा जाता है- जो फायदेमंद या लाभदायक हो। ‘उपयोग’ शब्द दरअसल ‘योग’ में ‘उप’ लगाने से बना है, जिसका अर्थ होता है- आधा योग या अर्ध-योग। योग, संयोजन या जोड़ को कहते हैं। उसका मतलब हुआ कि वह एक समर्पित अभ्यासी के लिए है, जो अपनी चरम प्रकृति को प्राप्त करना चाहता है। जो ऐसी तीव्र इच्छा या इरादा नहीं रखता, और अपने अंतर या केंद्र की ओर जाने के लिए तैयार नहीं होता लेकिन साथ ही सांसारिकता में खोना भी नहीं चाहता – ऐसे व्यक्ति के लिए हम अर्ध-योग या ‘उपयोग’ की पेशकश करते हैं। समय के साथ भाषा के आधार पर ‘उपयोग’ शब्द का फायदेमंद योग या लाभदायक क्रिया के रूप में अर्थ निकाला गया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह फायदेमंद है, लेकिन यह इसके प्रति सही नजरिया नहीं है। आप किसी चीज को सिर्फ उसके फायदे या उपयोगिता के कारण नहीं पाना चाहते, उसका कुछ और भी महत्व होता है। अगर आप उसके प्रति इस्तेमाल वाला नजरिया छोड़ दें तो वह न सिर्फ आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा, बल्कि आपकी मूलभूत प्रकृति को भी रूपांतरित कर देगा।
‘उपयोग’ योग की एक प्रणाली है, जिसका रूझान आध्यात्मिकता की ओर बहुत अधिक नहीं है, वह इन्सान के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और ऊर्जा के आयामों की ओर अधिक झुकी हुई है। यह इसलिए है ताकि इन्सान एक अधिक संपूर्ण भौतिक जिन्दगी जी सके। भौतिक जिन्दगी में मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पहलू भी शामिल होते हैं। समझने के लिए एक बुनियादी चीज यह है कि योग कसरत का रूप नहीं है। लेकिन योग के अंदर, ‘उपयोग’ जैसी प्रणालियां हैं, जो व्यायाम की शक्तिशाली प्रणालियां हैं। व्यायाम के रूप में गंभीर योग करने की बजाय, शुरुआत के लिए उप-योग बहुत से लोगों के लिए अच्छा तरीका हो सकता है क्योंकि वह अपने आप में एक शक्तिशाली प्रणाली है। अगर फिर वे योग की ओर आकृष्ट हों, तो उसे अपना सकते हैं।
जब आप सीधा लेटते हैं और स्थिर हो जाते हैं तो ऊर्जा प्रणाली में एक तरह की सुस्ती आ जाती है और जोड़ों के कुछ हिस्सों में उतनी चिकनाई नहीं आ पाती, जैसा कि सामान्य क्रियाकलाप में उनमें होना चाहिए। अगर आप अपने जोड़ों में चिकनाई लाए बिना चलेंगे, तो वे अधिक समय नहीं चलेंगे।
‘उपयोग’ का एक पहलू शरीर की जरूरतों को समझना और उसके मुताबिक काम करना है। जरूरतों से मेरा मतलब आपके शरीर की शौचालय जाने या लेटने या गिर जाने की इच्छा से नहीं है। जब आप सीधा लेटते हैं और स्थिर हो जाते हैं तो ऊर्जा प्रणाली में एक तरह की सुस्ती आ जाती है और जोड़ों के कुछ हिस्सों में उतनी चिकनाई नहीं आ पाती, जैसा कि सामान्य क्रियाकलाप में उनमें होना चाहिए। अगर आप अपने जोड़ों में चिकनाई लाए बिना चलेंगे, तो वे अधिक समय नहीं चलेंगे। एक मनुष्य शारीरिक रूप से इसलिए मुक्त है क्योंकि उसके जोड़ खास तरह के हैं। सभी जोड़ ऊर्जा के भंडार हैं क्योंकि जोड़ों में नाडियां एक खास तरह से काम करती हैं। इसलिए ‘उपयोग’ का एक पहलू जोड़ों में चिकनाई लाना और ऊर्जा बिंदुओं को सक्रिय करना है ताकि बाकी की प्रणाली काम करने लगे।
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