कृष्ण की रास लीला - क्या सिखाती है हमें?
भगवान कृष्ण ने अपने जीवन के 16 वर्ष तक रास लीला की। क्या रास लीला हमारे जीवन का भी एक हिस्सा बन सकतीं हैं? या फिर क्या ये हमारे पूरे जीवन को प्रभावित कर सकतीं हैं? कैसे बनाएं हम अपने जीवन को रसमय?
भगवान कृष्ण ने अपने जीवन के 16 वर्ष तक रास लीला की। क्या ये रास लीला हमारे जीवन का भी एक हिस्सा बन सकतीं हैं? क्या ये हमारे पूरे जीवन को प्रभावित कर सकती है? कैसे बनाएं हम अपने जीवन को रसमय?
प्रश्न - सद्गुरु, क्या आप संगीत और नृत्य के बारे में कुछ बता सकते हैं? ये मुझे कृष्ण रास लीला का एक महत्वपूर्ण अंग लगता है। हम अपने आपको जीवन के उस आयाम के प्रति ग्रहणशील कैसे बना सकते हैं?
सद्गुरु : ऐसा नहीं है कि कृष्ण हमेशा नाचते गाते रहते थे - ये उनके जीवन का बस एक हिस्सा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपने जीवन की प्रक्रिया को ही नृत्य बना लें। योगिक परंपरा में सृष्टि को हमेशा ऊर्जा या पांच भूतों के नृत्य के रूप में दर्शाया गया है। आजकल मॉडर्न वैज्ञानिक भी एक तरह से ऊर्जा के पूरी प्रक्रिया का नृत्य के रूप में वर्णन करते हैं।
इसी तरह प्रलय भी एक नृत्य है। सृजन एक नृत्य है और प्रलय एक नृत्य है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि सृष्टि में सब कुछ ऊर्जा का नृत्य है। यह नृत्य आनंदमय होगा, या कष्ट देगा ये आप पर निर्भर करता है, क्योंकि आपमें अपने विवेक का इस्तेमाल करके खुद को आनंदमय या दुखी बनाने की संभावना है। लेकिन ऊर्जा का खेल हर समय चलता रहता है।
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कृष्ण लीला हमें यही सिखाती है - हर पल जागरूकता के साथ जीवंत होना न कि विवशता के साथ। जब परिस्थितियां आपको बेबस कर देती है, तब जीवंत होना बहुत मुश्किल हो जाता है, आपको लगता है कि निस्तेज या सुस्त होना अच्छा है।
मृत्यु उसी पल नहीं आती, वो थोड़ा-थोड़ा करके किश्तों में आती है, क्योंकि आपका मन इतना तीव्र और केन्द्रित नहीं है कि आपके इच्छा करते ही आप वहीँ मर जाएं। लोगों के साथ ऐसा हुआ है - कोई किसी के साथ भयंकर रूप से झगड़ रहा था और भावुकता और क्रोध के पल में उसने बोला - "मैं मरना चाहता हूँ" - और वो वहीँ मर गया। क्योंकि उसने मृत्यु के इच्छा की और उसका मन तीव्र और केन्द्रित था तो यह संभव हो गया।
आपके मन में इस तरह की तीव्रता नहीं है, और आपका ध्यान केन्द्रित नहीं है - तो जब जब आप जीवन से बचना चाहेंगे - धीरे धीरे आपके साथ मृत्यु घटित होगी।
ज्यादातर लोग जवानी में वास्तव में जीवंत थे, लेकिन कुछेक लोगों को छोड़कर, उम्र बढ़ने पर उनमें पहले जैसी जीवंतता नहीं रहती।
वे कामयाब हो सकते हैं - और अपना जीवन पैसे, परिवार और बच्चों के साथ अच्छे से जी रहे होते हैं, पर उनके साथ धीरे धीरे मृत्यु घटित हुई है। उदाहरण के लिए - जब मैं अपने स्कूल और कॉलेज के कुछ दोस्तों से कई सालों बाद मिला, मैंने उनकी पीठ ठोककर उसी तरीके से बातें की जैसे कि मैं तीस साल पहले किया करता था। इस पर वे मुझे आश्चर्य से देखने लगे।
लीला का लक्ष्य यही है कि आप हर दिन के 24 घटे जीवंत बने रहें। आप इस बात का चयन न करें कि क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है। या फिर इसका कि किसी चीज़ में भागीदारी करें या न करें। अगर आप कुछ समय तक ऐसे रहें तो आप मृत्यु को दूर भगा देंगे। जीवन ऊर्जा का नृत्य है। अगर आप खुद को जागरूकता से ऐसा करने देंगे तो आप भी जीवन के साथ नृत्य करेंगे। अगर आपको लगता है कि जीवन को अपना नृत्य बदल देना चाहिए, तो आप इस प्रक्रिया में खुद को मार देंगे। जीवन नृत्य कर ही रहा है। कुछ चीज़ें आपके मर्जी से हो सकती हैं। पर यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आप जीवित हैं और आप जीवन के नृत्य का आनंद ले रहे हैं।
जीवन के नृत्य के साथ न जुड़ पाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि आपको लगता है कि आप बहुत सयाने हैं। विश्व का सबसे चतुर व्यक्ति, जीवन को जानने के बारे में सबसे बड़ा मूर्ख साबित हो जाता है। आपके पास प्रॉपर्टी, बैंक बैलेंस या जो भी कुछ और हो सकता है - पर आप जीवन से चूक जाएंगे।