कृष्ण लीला: रुक्मणि की प्रेम कथा: भाग 3
राजकुमारी रुक्मणि ने कृष्ण को पहली बार तब देखा जब उन्होंने चाणूर और कंस से बाहू-युद्ध किया था। उन्होंने उसी समय यह फैसला कर लिया था कि वो कृष्ण से ही विवाह करेंगी,
अब तक आपने पढ़ा: राजकुमारी रुक्मणि ने कृष्ण को पहली बार तब देखा जब उन्होंने चाणूर और कंस से बाहू-युद्ध किया था। उन्होंने उसी समय यह फैसला कर लिया था कि वो कृष्ण से ही विवाह करेंगी, लेकिन उनका भाई उनकी शादी कहीं और करना चाहता था और इसके पीछे उसका मकसद ज्यादा ताकतवर होकर उभरना था। रुक्मणि पक्का इरादा कर चुकी थीं कि वह किसी और से विवाह नहीं करेंगी। कृष्ण को जब इसका पता चला तो उन्होंने यह पक्का करने की कोशिश की, कि उनकी इच्छा के खिलाफ उनका विवाह न हो। अब पढ़ें आगे की कहानी:
कुछ सालों के बाद रुक्मणि के लिए एक और स्वयंवर का आयोजन किया गया। हालांकि उन्होंने यह बात बिल्कुल साफ - साफ बता दी थी कि वह कृष्ण के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। रुक्मणि की दृढ़ता और संघर्ष की कहानी चारों ओर फैल चुकी थी। उनकी ख्याति बढऩे लगी कि एक राजकुमारी अपने पिता, भाई, राजा सभी के खिलाफ खड़ी हैं और उस शख्स को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं, जिससे वह प्रेम करती हैं।
इसके बाद उन्होंने अंतिम निवेदन किया, “रुक्मणि के साथ ऐसा मत होने देना। अगर तुम जाकर उसे जबर्दस्ती लेकर नहीं आओगे तो वह खुद को खत्म कर लेगी। कुछ युवाओं को इकठ्ठा करो और जाकर उसे जबर्दस्ती द्वारका ले आओ। उसे वहीं रहने दो। अगर मैं वहां नहीं भी रहूं, तब भी कम से कम उसे किसी और के हाथ नहीं पडऩे देना। अगर तुम्हारे पहुंचने से पहले ही वह जान दे चुकी हो तो उसकी राख ले आना और उसकी एक समाधि बना देना, क्योंकि जिस एकनिष्ठ प्रेम के साथ वह लडक़ी जी रही है, वह बहुत पावन है, पूजा करने योग्य है।” यह कहकर कृष्ण चले गए। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि कृष्ण ने कल्यावण का वध कर दिया। जब तक वह लौटकर नहीं आए, हर किसी को यही लगता रहा कि कृष्ण की मृत्यु हो गई है।
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कृष्ण की कही गई बात को पूरा करने के लिए यादवों की एक सेना रुक्मणि को लाने के लिए विदर्भ रवाना हो गई। इस बीच एक और स्वयंवर चल रहा था। लेकिन उद्धव और स्वेतकेतु की मदद से रुक्मणि ने यह तैयारी कर ली कि वह मंदिर से भाग जाएगी और नदी के किनारे खुद को आग लगा लेगी। जैसे ही ये लोग नदी के किनारे तक पहुंचे, कृष्ण वापस आ गए। कृष्ण रुक्मणि को अपने साथ ले गए और उसके बाद जीवन भर वह उनकी पत्नी बनकर रहीं।
कृष्ण के प्रति अपने एकनिष्ठ पागलपन के चलते रुक्मणि का कद काफी बढ़ गया। वह कौन थीं, इसका चित्रण करने के लिए बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा बहुत घमंडी और दिखावा पसंद महिला थीं। उन्हें लगता था कि वही सबसे खूबसूरत हैं और वही सबसे धनवान, क्योंकि उनके पिता एक बेहद धनी व्यक्ति थे और उनके पास वो हर आभूषण और संपदा थी जो उन्होंने चाही। वह हर किसी के सामने यह बात दिखाना चाहती थी कि कृष्ण को वह कितना प्रेम करती हैं। उन्होंने तय किया कि कृष्ण के जन्मदिन पर वह उन्हें सोने से तोल देंगी। कृष्ण को तराजू के एक पलड़े में बैठाकर दूसरे पलड़े में उनके वजन के बराबर सोना रख देंगी और फिर कृष्ण के वजन के बराबर सोना वह लोगों में बांट देंगी। इस प्रक्रिया को “तुलाभर” कहते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो मंदिरों में होती है। लोग अपने आप को मक्खन, चावल, घी, नमक, चना या सोने से तोलते थे और लोगों में बांट देते थे। अपने वजन के बराबर ऐसे सामान को लोगों के बीच दान कर देना, उस वक्त एक परंपरा थी।
तो सत्यभामा ने कृष्ण के लिए तुलाभर का आयोजन किया। आम लोग तो इस बात को सुनकर प्रभावित हो गए, लेकिन नीलवर्णी कृष्ण ऐसी चीजों से खुश नहीं थे। कृष्ण सत्यभामा के इस दिखावे को समझ गए। वह जाकर तुला के एक पलड़े में बैठ गए। सत्यभामा को कृष्ण के वजन का जितना अनुमान था उतना सोना उन्होंने दूसरे पलड़े में रख दिया। लेकिन तुला हिली तक नहीं। जब कृष्ण छोटे थे तब भी उनके साथ ऐसी ही एक घटना घटी थी। एक राक्षस आया और उन्हें लेकर जाने की कोशिश करने लगा। अचानक कृष्ण बहुत ज्यादा भारी हो गए और राक्षस उनके वजन के नीचे दबकर मर गया। क्रिया योग में ऐसे तरीके हैं, जिनसे कोई योगी अपने वजन को कम या ज्यादा कर सकता है। ऐसी कई कहानियां हैं जिनमें योगियों ने अपना वजन पहाड़ के बराबर कर लिया।
तो इस तरह कृष्ण ने अपना वजन बढ़ा लिया और तुला के पलड़े में बैठ गए। सत्यभामा ने और सोना मंगाया और उसे तुला के दूसरे पलड़े में रखा लेकिन कोई फायदा नहीं। उसने अपने सारे जेवर मंगाकर पलड़े में रख दिए, लेकिन सब कुछ मिलाकर भी कृष्ण के वजन के बराबर नहीं हुआ। कृष्ण जिस पलड़े में थे, वह नीचे ही रहा। पूरा शहर इस घटना को देखने के लिए वहां मौजूद था, इसलिए सत्यभामा को बड़ी बेइज्जती महसूस हुई। उन्हें लगा कि लोग सोचेंगे कि उनके पास कृष्ण के वजन के बराबर सोना है ही नहीं। उन्हें समझ में नहीं आया कि अब क्या किया जाए। एक स्त्री, जिससे वह ईष्र्या करती थीं और जिससे उन्हें परेशानी महसूस होती थी, वह थीं रुक्मणि। निराशा से भरी सत्यभामा ने रुक्मणि से कहा - “'बहन यह शर्मिंदगी जितनी मेरे लिए है, उतनी तुम्हारे लिए भी है और बाकी लोगों के लिए भी।” रुक्मणि ने हालात देखे और तुरंत जाकर तुलसी के तीन पत्ते ले आईं। इन पत्तों को उन्होंने उस पलड़े में रख दिया, जिसमें सोना रखा था। जैसे ही पत्ते उसे पलड़े में आए, कृष्ण का पलड़ा ऊपर उठ गया।
रुक्मणि के प्रेम के कई किस्से हैं, क्योंकि उनका प्रेम कभी भी डिगा नहीं। कृष्ण की वजह से उन्होंने कई ऐसी स्थितियों का सामना किया, जो एक राजकुमारी के रूप में उनके सामने कभी नहीं आतीं।
दुनिया में आप कहीं भी चले जाइए, पृथ्वी को मां की तरह माना जाता है। पृथ्वी को हमेशा स्त्री-गुण वाला माना गया है। हम उन महिलाओं की बात कर रहे हैं, जो कृष्ण के जीवन में आईं, चाहे वह उनकी पत्नी हों, गोपियां हों या कोई और स्त्री। कृष्ण हमेशा कहते थे कि जब मैं किसी महिला से मिलता हूं तो यह मैं उसी पर छोड़ देता हूं कि वह मेरी मां बनना चाहती है, बहन बनना चाहती है, प्रेमिका बनना चाहती है या पत्नी बनना चाहती है। लेकिन जहां तक मेरा सवाल है, मैं उसके इर्द गिर्द एक वेदी बना देता हूं। अब यह उस स्त्री पर है कि वह अपनी अग्नि को कैसे संभालती है।