कृष्ण और बलराम की जलयात्रा: समुद्री डाकुओं के साथ – भाग 2
जब कृष्ण का ब्रह्मचर्य-जीवन समाप्त होने वाला था तब उन्होंने अपने गुरु संदीपनी से कहा कि वह उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहते हैं और इसके लिए वह उनके पुत्र को उन्हें वापस लाकर देंगे, जिसका अपहरण समुद्री लुटेरों ने कर लिया था। कृष्ण और उनके भाई बलराम किसी तरह से समुद्री लुटेरों के जहाज में घुस गए। जहाज चलाने वाले से कृष्ण ने दोस्ती कर ली। लुटेरों के सरदार ने जब इन दोनों बालकों को देखा तो उसे लगा कि वह उन्हें कहीं बेच देगा, और इसीलिए उसने अपने लोगों को आदेश दिया कि उन दोनों की ठीक तरह से देखभाल की जाए। अब आगे की कहानी पढ़िए।
पिछले ब्लॉग में आपने पढ़ा कि जब कृष्ण का ब्रह्मचर्य-जीवन समाप्त होने वाला था तब उन्होंने अपने गुरु संदीपनी से कहा कि वह उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहते हैं और इसके लिए वह उनके पुत्र को उन्हें वापस लाकर देंगे, जिसका अपहरण समुद्री लुटेरों ने कर लिया था। कृष्ण और उनके भाई बलराम किसी तरह से समुद्री लुटेरों के जहाज में घुस गए। जहाज चलाने वाले से कृष्ण ने दोस्ती कर ली। लुटेरों के सरदार ने जब इन दोनों बालकों को देखा तो उसे लगा कि वह उन्हें कहीं बेच देगा, और इसीलिए उसने अपने लोगों को आदेश दिया कि उन दोनों की ठीक तरह से देखभाल की जाए। अब आगे की कहानी पढ़िए:
हुक्कू और हुल्लू नाम के दो अंगरक्षक हमेशा पांचजन्य के साथ रहते थे। बड़े डील-डौल वाले इन दोनों अंगरक्षकों के पास हमेशा पशुओं को मारने वाला कोड़ा रहता था। अगर कोई भी गड़बड़ी करता तो उसे इसी कोड़े से दंड दिया जाता।
कृष्ण ने अगले पड़ाव के बारे में जानना चाहा। जहाज चालक बिकरू ने उन्हें बताया कि हमारा अगला पड़ाव कुशस्थली है, जिसे अब द्वारका कहा जाता है। एक समय में यह एक द्वीप हुआ करता था। हमारा मालिक तुम्हें वहीं बेचना चाहता है, लेकिन अगर तुम्हारी अच्छी कीमत नहीं मिली तो हम तुम्हें अगले बंदरगाह पुरी पर बेचेंगे, जहां पहुंचने के लिए हमें लंबी यात्रा करनी होगी। वहां तो तुम्हारी अच्छी कीमत मिल ही जाएगी। वहीं हमने संदीपनी के पुत्र पुनर्दत्त को भी बेचा था।
कृष्ण ने कहा, “ठीक है। मैं भी चाहता हूं कि मुझे वहीं बेचा जाए।”
इसी बीच जहाज पर काम कर रहा राधी नाम का एक युवा बढ़ई काम करते-करते सो गया। उसकी तबियत ठीक नहीं थी। यह खबर पांचजन्य तक पहुंची। पांचजन्य ऐसे मामलों में कोई दया-धर्म नहीं बरतता था। राधी को पकड़कर जहाज के ऊपरी भाग पर लाया गया। पांचजन्य चाहता था कि दूसरे लोग भी इस घटना से सबक लें, इसलिए उसने हुक्कू को आदेश दिया कि वह राधी को छह कोड़े लगाए। बड़े डील-डौल वाले हुक्कू के हाथों छह कोड़े खाकर राधी की तो जैसे हालत ही खराब हो गई। उसकी कमर से खून बहने लगा। कृष्ण ने यह सब देखा। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। रात में कृष्ण और बलराम उस बढ़ई के पास गए। कृष्ण ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। उन्होंने उसे पानी पिलाया, कपड़े से उसके घाव पोंछे और दवा लगाई। दोनों भाई उसके सोने तक उसके साथ बैठे रहे।
अचानक बडे डील-डौल वाला हुल्लू वहां आ पहुंचा। उसने जब देखा कि जिस लड़के को सजा दी गई है, वे दोनों बालक उसकी देखभाल कर रहे हैं तो वह हैरान रह गया।
उसने पूछा – “तुम लोग क्या कर रहे हो ?”
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कृष्ण ने कहा – “हम बस उसे सुलाने की कोशिश कर रहे हैं।”
हुल्लू बोला – “तुम लोग यह सब नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे मालिक का यही आदेश है।”
कृष्ण बोले – “लेकिन मैं तो यही करता हूं। अगर कोई परेशानी में है, तो मैं उसकी मदद के लिए पहुंचता हूं। तुम्हारा मालिक मुझे नहीं रोक सकता।”
हुल्लू काफी ताकतवर था, लेकिन उसके पास इस बात का मानो कोई जवाब नहीं था। उसे ऐसी आदत थी कि जैसे ही लोग उसे देखते, डर से कांप उठते, लेकिन यहां एक ऐसा लड़का था जिसने उसकी ओर देखा, उसे देखकर मुस्कराया और उससे बातचीत की। यहीं नहीं, उससे उसके काम को लेकर प्रश्न भी पूछे। हुल्लू को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।
उसने कहा – “मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें अपने मालिक के पास ले चलता हूं। इस बारे में उनसे बात करो। यह सब मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है।”
हुल्लू कृष्ण और बलराम को पांचजन्य के पास ले गया। पांचजन्य गुस्से में था।
उसने पूछा – “तुम लोग क्या कर रहे थे?”
कृष्ण ने कहा – “हम बस उसे सुलाने की कोशिश कर रहे थे। इसमें कोई दिक्कत है क्या?” पांचजन्य चिल्लाया – “तुम मेरे जहाज पर इस तरह की हरकतें नहीं कर सकते।”
कृष्ण बोले – “अगर मैं किसी को परेशान देखता हूं तो मैं उसकी मदद के लिए पहुंचता ही हूं। यही मेरा धर्म है। मुझे इसका पालन करने से कोई नहीं रोक सकता। पांचजन्य बोला – “यह धर्म क्या बकवास है? इस जहाज पर मैं ही कानून हूं। अगर मैंने ना कह दिया तो कह दिया।”
कृष्ण ने कहा – “मेरे साथ यह सब नहीं चलेगा। मैं कहीं भी रहूं, मैं अपने धर्म का पालन करता हूं। मैं जरूरतमंद लोगों की मदद करता ही हूं, भले ही कानून कुछ भी कहे। पांचजन्य को लगा कि इन बालकों को झटका देना ही पडे़गा लेकिन फिर उसने सोचा कि वे उसके लिए बेचने की एक शानदार वस्तु की तरह हैं। अगर उन्हें कोड़े मारे गए और उनकी खाल उधड़ गई तो वे अच्छे दामों में नहीं बिकेंगे।उसने हुल्लू से कहा – इन्हें बंद कर दो। इन्हें भोजन देते रहो, लेकिन बाहर मत आने दो। कोड़े मारने का तो कोई मतलब ही नहीं है, क्योंकि उससे इनकी कीमत कम हो जाएगी। “भला कोई अपना सामान खराब थोड़े ही कर सकता है”, इसलिए उन दोनों को ले जाकर जहाज के निचले हिस्से में एक लकड़ी की जेल में बंद कर दिया गया।
देर रात जहाज का चालक बिकरू कृष्ण के पास गया और बोला – हम अपनी दिशा बदल रहे हैं। अब हम अपनी पुरानी मंजिल की ओर नहीं जा रहे हैं। हम उससे भी दूर जा रहे हैं। कृष्ण तो पुरी जाना चाहते थे क्योंकि गुरु पुत्र पुनर्दत्त वहीं था, लेकिन अब पांचजन्य ने कहीं और जाने का फैसला कर लिया था। ऐसे में कृष्ण ने बिकरू से कहा – मैं इस कैद से बाहर आना चाहता हूं। मैं इसे तोड़कर बाहर आ जाऊंगा।
बिकरू ने कहा – “ऐसा कोई काम मत करना। अगर तुम इसे तोड़कर बाहर आ गए तो तुम्हें मौत की सजा मिल सकती है।”
कृष्ण बोले – “इसका ताला तोड़ने का कोई तरीका निकालिए और मुझे कल सुबह तक यहां से आजाद कराइए। अगर आप मेरी मदद नहीं करेंगे, तो मैं इसका ताला तोड़कर कैसे भी बाहर आ जाऊंगा, फिर चाहे मुझे मौत की सजा ही क्यों न हो जाए! अगर आप मुझे किसी दूसरी जगह ले जाएंगे, तो मैं वहां क्या करूंगा! मैं तो पुरी जाना चाहता हूं।”
सुबह होते ही कृष्ण ने उस लकड़ी की जेल को तोड़ दिया। जिस बढ़ई की उन्होंने मदद की थी, वह चुपचाप उस जेल के भीतर घुस गया और उसकी मरम्मत कर दी। कृष्ण और बलराम आराम से बाहर आ गए। पांचजन्य को पता चल गया कि दोनों बालक बाहर आ गए हैं। गुस्से में भरकर उसने पूछा – “उन्हें किसने आजाद किया?” लोगों ने कहा – “उन्हें किसी ने आजाद नहीं किया है।” पांचजन्य ने आशंका जताई – “तो क्या उन्होंने जेल को तोड़ दिया? अगर ऐसा है तो उन्हें मौत की सजा मिलेगी। अब बहुत हो चुका। अब इन दोनों मूर्खों को निबटाना ही होगा।”
हुल्लू जेल को देखने गया। उसने पाया कि जेल टूटी हुई नहीं है। जेल वैसी की वैसी ही है और ताला भी उसी तरह लगा हुआ है। फिर बच्चे बाहर कैसे आ गए? हुल्लू बुरी तरह घबरा गया। उसे पक्का यकीन हो गया कि वे बुरी आत्माएं ही हैं।वह पांचजन्य के पास गया और बोला – “बालकों ने जेल नहीं तोड़ी है। वहां अब भी ताला लगा हुआ है, फिर भी वे बाहर आ गए।”
यह सुनकर पांचजन्य को भी थोड़ी घबराहट महसूस हुई।
एक कहानी सुनिए। आज से करीब 70-75 साल पहले कुन्नूर में ‘सद्गुरु’ (यहां सद्गुरु का आशय सद्गुरु के पूर्व अवतार सद्गुरु श्री ब्रह्मा से है) का एक छोटा सा आश्रम था। यह आज भी वैसा ही है। अंग्रेजों ने वहां कॉर्डाइट का एक कारखाना लगाया, जो एक तरह का विस्फोटक होता है। इसी वजह से कुन्नूर में सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़ी थी। वहां एक छोटा सा रेलवे स्टेशन था। तमाम क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के उस इलाके में घुसने के डर से उस क्षेत्र में किसी भी भारतीय के जाने पर पाबंदी थी, लेकिन ‘सद्गुरु’ इन नियमों को नहीं जानते थे। इसलिए वह रेलवे स्टेशन को पार कर आने जाने लगे। दरअसल, यह उनके लिए छोटा रास्ता था। एक दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि वह लगातार नियमों को तोड़ रहे थे। उन्हें जेल में डाल दिया गया। वह जेल में गए और सलाखों से गुजरते हुए बाहर आ गए। अंग्रेजों को समझ में नहीं आया कि वे उनका क्या करें। इसके बाद उन्होंने उन्हें कभी कुछ नहीं कहा। सद्गुरु ने भी कभी कारखाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वह बस यूं ही जेल से बाहर आ गए, लेकिन कृष्ण ने जेल से बाहर आने में उस बढ़ई की मदद ली। दरअसल, इस तरह की मदद लेने में कृष्ण को कोई हिचक नहीं होती थी।
आगे जारी ...