गुरु संदीपनी के आश्रम में ब्रह्मचर्य का पालन करते-करते एक दिन कृष्ण को पता चला कि उनके गुरु पुत्र को समुद्री लुटेरे उठा ले गए हैं। उन्होंने अपने गुरु से वादा किया कि वह उनके पुत्र को वापस लेकर आएंगे। आइये पढ़ते हैं कैसे कृष्ण और बलराम इन लुटेरों के जहाज तक जा पहुंचे...

कृष्ण बोले,‘हे गुरुदेव, गुरु-दक्षिणा के रूप में मैं आपके बेटे को आपको लौटाना चाहता हूं। कृपा करके एक साल के लिए मुझे ब्रह्मचर्य से मुक्त कर दीजिए। मैं आपके पुत्र को वापस लाने में अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा।’
यशस्वी व्यक्तित्व के धनी श्रीकृष्ण जिंदगी को एक खेल और उत्सव की तरह मानते हुए बड़े हुए थे। उन्होंने गुरु संदीपनी के आश्रम में कठोर ब्रह्मचर्य का पालन किया। एक शिष्य के तौर पर कृष्ण के आचरण ने गुरु संदीपनी को बेहद प्रभावित किया। कृष्ण के बारे में पहले ही यह भविष्यवाणी की जा चुकी थी कि यह बालक स्वयं भगवान हैं। कृष्ण ने खुद को गुरु के प्रति पूरी तरह समर्पित कर दिया। जिस तरह वह अपने गुरु की सेवा करते थे और जो कुछ भी उन्हें पढ़ाया जाता था, उसे सीखने के लिए वह हमेशा उत्सुक रहते थे, इससे उनके गुरु बड़े प्रभावित थे। संदीपनी ने उन्हें सारे वेद, उपनिषद और तमाम तरह की कलाएं सिखाईं। इसके अलावा उन्होंने श्रीकृष्ण को हर तरह के अस्त्रों-शस्त्रों को बनाने और उनके इस्तेमाल का तरीका भी सिखाया।

छह साल के अपने ब्रह्मचारी जीवन के आखिरी समय में एक दिन कृष्ण ने संदीपनी को परेशान हालत में नदी के किनारे टहलते हुए देखा। उन्होंने संदीपनी से पूछा - ‘आचार्य, आप इतने परेशान क्यों हैं? पिछले तीन दिनों से आप न तो सोए हैं और न ही आपने ठीक से कुछ खाया है। आप लगातार बस महासागर की ओर देख रहे हैं। आपके दुख का कारण क्या है?’ संदीपनी बोले, ‘कुछ सालों पहले जब मैं यहां आया था, तो मेरे बेटे पुनर्दत्त का पुनर्जन प्रजाति के लोंगों ने अपहरण कर लिया था। उस समय वह तुमसे एक साल ही बड़ा रहा होगा।’

दरअसल, यह समुद्री डाकुओं का हुजूम था, जो जहाजों पर अपना कब्ज़ा कर लेते थे। वे लूट-मार और चोरी करते थे और अगर उन्हें कोई आदमी या औरत आकर्षक लगता तो उसे उठाकर दुनिया के दूसरे भागों में बेच देते थे। वे संदीपनी के बेटे को लेकर भागे और गायब हो गए। संदीपनी उनका पीछा भी नहीं कर पाए।

संदीपनी ने कृष्ण को मन की सारी बात बताते हुए कहा – ‘मैं वह दिन अब तक नहीं भूल पाया हूं। तुम अभी युवा हो। जाहिर है, तुम यह नहीं समझ पाओगे। जब तुम्हारे कोई संतान होगी और तुम्हें उसकी याद आएगी, केवल तभी तुम ठीक तरह से मेरा दुख जान पाओगे। कृष्ण बोले,‘हे गुरुदेव, गुरु-दक्षिणा के रूप में मैं आपके बेटे को आपको लौटाना चाहता हूं। कृपा करके एक साल के लिए मुझे ब्रह्मचर्य से मुक्त कर दीजिए। मैं आपके पुत्र को वापस लाने में अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा।’

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संदीपनी ने पूछा, ‘अब तुम क्या कर सकते हो? वह महासागर के पार चला गया है और हम यह भी नहीं जानते कि अब वह कहां है। वे समुद्री डाकू बहुत निर्दयी हैं। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे लिए खुद को इस तरह के खतरे में डालो। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं तुम्हारे माता-पिता वसुदेव और देवकी को क्या जवाब दूंगा।’

कृष्ण ने अपनी शांत कर देने वाली मुस्कुराहट बिखेरी। उनकी मुस्कुराहट ही उनका एकमात्र शस्त्र थी। इसके अलावा वह अपने साथ और कोई शस्त्र लेकर नहीं चलते थे।
कृष्ण बोले, ‘आप उसकी चिंता न करें। वे जानते हैं कि मैं मुक्तिदाता और उद्धारक हूं। आप केवल उन्हें यह बता दें कि मैं न्याय और धर्म की स्थापना करने के लिए गया हूं। वे समझ जाएंगे।’ संदीपनी अपने पुत्र को वापस पाने के लिए तिनके तक की मदद लेने से नहीं हिचकते थे, इसीलिए उन्होंने कृष्ण को जाने की अनुमति दे दी।एक महीने के अंदर ही पुनर्जन जाति का मुखिया पांचजन्य अपना जहाज लेकर व्यापार के लिए एक खास पत्तन पर आने वाला था। समुद्री डाकू लगातार हरकत में रहते हैं। वे एक जगह से माल चुराकर कहीं और बेच देते हैं। ऐसे लुटेरे सिर्फ सामान बेचते हैं, खरीदते नहीं। यह एक तरह का व्यापार था और पांचजन्य बड़ा व्यापारी था। खैर,पांचजन्य अपने जहाज से पहुंचा और उसे किनारे से थोड़ा दूर लगा दिया। फिर वह अपनी नाव से आया और अपने अनमोल रत्नों, दुर्लभ जड़ी-बूटियां और लोगों का व्यापार करने लगा।

समुद्री डाकू व्यापार के लिए एक महीने से यहीं डेरा डाले हुए थे। कृष्ण पूरे धैर्य से इंतजार करते हुए उनके सभी तौर तरीकों पर नजर रख रहे थे। एक दिन उन्होंने पांचजन्य को अपने सारे सौदे निपटाकर छोटी नाव में अपने जहाज की ओर वापस जाते देखा। वह जहाज चलने के लिए हवा के सही रुख का इंतजार कर रहा था। कृष्ण और बलराम जहाज की ओर तैरकर उसमें चढ़ गए और छिप गए, लेकिन कुछ ही देर बाद जहाज के चालक बिकरु ने उन्हें देख लिया और उनसे पूछा – ‘तुम लोग कौन हो और यहां किसलिए आए हो?’ कृष्ण ने अपनी शांत कर देने वाली मुस्कुराहट बिखेरी। उनकी मुस्कुराहट ही उनका एकमात्र शस्त्र थी। इसके अलावा वह अपने साथ और कोई शस्त्र लेकर नहीं चलते थे।

कृष्ण ने कहा - ‘हमारे भाई पुनर्दत्त को आप ले आए हैं। आप उसे जहां भी लेकर गए हैं, वहां हमें ले चलिए और छोड़ दीजिए। हम अपने भाई से दूर नहीं रह सकते। हम उसे ढ़ूंढना चाहते हैं।’ बिकरु यह सुनकर बहुत खुश हुआ, लेकिन बाद में उसे लगा कि वे दोनों कोई देसी चोर हैं जो जहाज से कुछ चुराने के लिए आए हैं।

वह बोला, ‘मेरे सामने आकर बैठो और यहां से हिलना नहीं।’ वह यह देखना चाहता था कि जब जहाज गहरे पानी में जाएगा तो ये लड़के क्या करेंगे। उसे लगा कि वे निराश होकर जहाज से कूद जाएंगे। वह उन पर नजर रखे हुए था कि वे कब जहाज से कूदें और जमीन की तरफ तैरने की कोशिश करें। लेकिन वे दोनों वहीं बैठ गए और बिकरु से बातें करने लगे। वे जहाज चलाने के तरीकों के बारे में और जहाज के आने-जाने के बारे में भी पूछने लगे।

हाथ-पैर बंधे होने के बावजूद कृष्ण लगातार जहाज के संचालन के बारे में पूछते रहे। क्या हुआ अगर आपके हाथ पैर बंधे हैं, आप सुन और सीख तो तब भी सकते हैं। यह सब बिकरु के लिए बहुत ज्यादा हो गया था, लेकिन धीरे-धीरे वह लड़कों को पसंद करने लगा, क्योंकि वे सच्चे थे और केवल जहाज चलाने के बारे में ही जानना चाहते थे।
कृष्ण ने पूछा - ‘मैं जहाज चलाना सीखना चाहता हूं। क्या आप मुझे सिखाएंगे?’ बिकरु बहुत समय से इस अपराध के जहाज को चला रहा था। उसने पहले कभी भी किसी को जहाज पर बैठकर मुस्कुराते हुए उससे बातें करते नहीं देखा था। इस तरह की घटना इस जगह पहले कभी नहीं हुई थी। बस लूट-पाट और हत्या ही उसकी जिंदगी थी। इसीलिए इन दोनों नौजवानों की हंसी-मजाक वाली बातें उसे अच्छी लग रही थीं। तभी उसे लगा कि ये दोनों लड़के कुछ न कुछ तो छिपा रहे हैं, जो वह नहीं समझ पाया है और इसीलिए उसने कोई जोखिम उठाना ठीक नहीं समझा। उसने उनके हाथ-पैर एक रस्सी से बांधकर अपने सामने बैठा लिया। वह एक पल के लिए भी उन्हें अपनी नजरों से दूर नहीं रखना चाहता था।

हाथ-पैर बंधे होने के बावजूद कृष्ण लगातार जहाज के संचालन के बारे में पूछते रहे। क्या हुआ अगर आपके हाथ पैर बंधे हैं, आप सुन और सीख तो तब भी सकते हैं। यह सब बिकरु के लिए बहुत ज्यादा हो गया था, लेकिन धीरे-धीरे वह लड़कों को पसंद करने लगा, क्योंकि वे सच्चे थे और केवल जहाज चलाने के बारे में ही जानना चाहते थे। यह आदमी पचास साल से भी ज्यादा समय से जहाज चला रहा था और पहली बार किसी ने इसे चलाने में इतनी दिलचस्पी दिखाई थी। उसे नौसंचालन के बारे में बहुत जानकारी थी और अब जाकर उसे अपने ज्ञान को बांटने का मौका मिला था। वह तुरंत शुरू हो गया। सारी रात वे लोग इसी के बारे में बातें करते रहे। सुबह होते-होते वे अच्छे दोस्त बन गए, लेकिन कृष्ण और बलराम के हाथ-पैर अभी भी बंधे हुए थे।

जहाज का मुखिया पांचजन्य बहुत सख्त आदमी था। अगर कोई चीज उसकी मर्जी से नहीं होती थी, तो इसके लिए लोगों को या तो बहुत निर्दयता के साथ सजा दी जाती थी या उन्हें मार दिया जाता था। इसीलिए बिकरु ने सुबह का होने का इंतजार किया ताकि वह पंचजन्य को बता सके कि यहां दो लड़के हैं। पांचजन्य आया। उसने दोनों को गौर से देखा और सोचा कि यह तो बढ़िया माल है। यह नीले रंग का लड़का अच्छे दाम ला सकता है और उसका साथी भी बुरा नहीं है। उसने उन्हें बंधन से मुक्त कर दिया और बिकरु से कहा, ‘इन्हें कोई मेहनत वाला काम मत देना। अच्छे से खाना देना और इन्हें यहीं रखना। मैं नहीं चाहता कि ये धूप से झुलसें या इन्हें खरोंच भी आए। ये बढ़िया हैं, सुंदर हैं। हम इन्हें कहीं बेच देंगे। मैं चाहता हूं कि तुम इनका ध्यान रखो।’

आगे जारी ...

Image courtesy:  Boat and sunset from pixabay