कृष्ण और बलराम की जलयात्रा: समुद्री डाकुओं के साथ – भाग 3
समुद्री डाकुओं ने पुनर्दत्त का अपहरण कर के उसे कहीं बेच दिया था। कृष्ण और बलराम किसी तरह समुद्री डाकुओं के जहाज पर पहुंचने में कामयाब हो जातें हैं। जहाज का कप्तान पांचजन्य कृष्ण और बलराम को भी बेचने के बारे में सोचता है और शुरू में उन्हें अच्छे से रखता है, लेकिन जब कृष्ण बार-बार उसकी सत्ता को चुनौती देने लगते हैं, तो वह उन्हें सबक सिखाने का फैसला करता है।
अब तक आपने पढ़ा कि कृष्ण अपने गुरु संदीपनी के पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाने का बीड़ा उठाते हैं। समुद्री डाकुओं ने पुनर्दत्त का अपहरण कर के उसे कहीं बेच दिया था। कृष्ण और बलराम किसी तरह समुद्री डाकुओं के जहाज पर पहुंचने में कामयाब हो जातें हैं। जहाज का कप्तान पांचजन्य कृष्ण और बलराम को भी बेचने के बारे में सोचता है और शुरू में उन्हें अच्छे से रखता है, लेकिन जब कृष्ण बार-बार उसकी सत्ता को चुनौती देने लगते हैं, तो वह उन्हें सबक सिखाने का फैसला करता है। अब आगे पढ़िएः
पांचजन्य ने तय किया कि इन दोनों लड़कों को सबके सामने सजा देनी चाहिए। उसने दोनों लड़कों को बुलवाया और साथ ही, अपने सभी साथियों को भी जहाज के ऊपरी हिस्से में इकट्ठा होने को कहा।
जब सब आ गए तो पांचजन्य ने हुल्लू से कहा - ‘इन लड़कों को कोड़े लगाओ।’
जैसे ही हुल्लू ने कृष्ण की ओर देखा, कृष्ण मुस्करा दिए। हुल्लू अंदर से डरा हुआ था। उसने सोचा - जरूर यह कोई बुरी आत्मा है। यह बिना कटघरा तोड़े उससे बाहर आ गया और जब से कटघरे से बाहर आया है, तब से कुछ न कुछ अजीब सी हरकतें कर रहा है। हुल्लू इतना डर गया कि वह अपना कोड़ा उठा ही नहीं पाया। पांचजन्य ने देखा कि हालात बेकाबू हो रहे हैं। वह नहीं चाहता था कि वहां मौजूद लोगों को ऐसा लगे कि हुक्कू और हुल्लू उसका हुक्म नहीं मान रहे हैं।
Subscribe
उसने कहा - ‘लाओ, कोड़ा मुझे दो, मैं ही इन्हें सजा दूंगा।’
जानवरों को लगाने वाले उस लंबे कोड़े को चलाने के लिए एक खास किस्म का हुनर चाहिए। अगर आपको इसे ठीक से चलाने का तरीका नहीं आता, तो इसकी पूरी संभावना है कि कोड़ा खुद आपको लग जाए। यह मछली पकड़ने जैसा है। अगर आपको मछली पकड़ना नहीं आता तो आप कोई मछली नहीं पकड़ पाएंगे। शायद आपकी आंखें निकल आए। जानवरों को लगाने वाला कोड़ा भी ऐसी ही चीज है। आपको पता होना चाहिए कि उसे कैसे इस्तेमाल करते हैं।
पांचजन्य कोड़ा चलाना नहीं जानता था, जबकि कृष्ण, जिनका पूरा बचपन गायों को चराते बीता था, अच्छी तरह से कोड़ा चलाना जानते थे। पांचजन्य ने कृष्ण को कोड़ा मारने की कोशिश की, लेकिन कोड़ा कृष्ण को ठीक से नहीं लग पाया। आमतौर पर कोड़े से खाल उधड़ जाती है लेकिन उससे कृष्ण की पीठ पर बस एक हल्का सा निशान ही पड़ा। मौका देखकर कृष्ण ने कोड़े के दूसरे सिरे को कसकर पकड़ लिया और पांचजन्य के हाथ से खींच कर उसे छीन लिया और उल्टे उसकी पीठ पर ही जबर्दस्त कोड़े बरसाने लगे। पांचजन्य को इतनी बुरी तरह से कोड़े लगाए कि उसकी खाल उधड़ गई और वह बेहोश हो गया। हुक्कू और हुल्लू की मदद से कृष्ण पांचजन्य को उसके कमरे तक ले कर गए। इसके बाद कृष्ण ने खुद उसके घावों पर दवा लगाई।
कुछ देर में जब पांचजन्य को होश आया तो कृष्ण ने उसे समझाया - 'देखो, मेरा तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरा मकसद सिर्फ अपने गुरु के पुत्र को बचाना है, जिसे तुमने बेच दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे मन में मेरे गुरु या गुरु पुत्र के प्रति कोई नफरत नहीं है। तुम अपना धंधा कर रहे हो। तुम लुटेरे हो और यह सब तुम्हारा धर्म है। दूसरी तरफ मैं भी एक शिष्य का धर्म निभा रहा हूं। मुझे इस तट पर उतार दो और अपने रास्ते जाओ। मैं तुमसे कोई मतलब नहीं रखना चाहता।'
लेकिन पांचजन्य इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था। वह दर्द से कराह रहा था, लेकिन साथ ही अपने ही साथियों के सामने हुए अपमान की आग में जल रहा था। उसे पता था कि अगर उसने कड़ा कदम नहीं उठाया तो उसके हुक्म को फिर कोई नहीं मानेगा और जहाज के कप्तान के तौर पर उसकी सत्ता खत्म हो जाएगी।
पांचजन्य के पास एक बेहद खूबसूरत शंख था, जिसे वह हमेशा अपने कंधे पर सजाए रखता था। आदेश देने, जहाज चलाने और ऐसी ही दूसरी चीजों के लिए वह इस शंख का इस्तेमाल करता था। उन दिनों भारत में शंख का खूब प्रयोग होता था, लेकिन यह एक बड़ा अनोखा शंख था, जिसकी आवाज बहुत सुरीली थी। कृष्ण ने वह शंख पांचजन्य से ले लिया और कहा, ‘मैं इस शंख को अपने पास रखूंगा। मैं इसे पांचजन्य से एक तोहफे की तरह ले रहा हूं।’ कृष्ण ने उस शंख का नाम पांचजन्य रख दिया और फिर वह शंख हमेशा उनके पास रहा। महाभारत के युद्ध के दौरान इस पांचजन्य शंख ने बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। यह ताकत और विजय का प्रतीक बन गया था।
पांचजन्य के घावों पर मरहम वगैरह लगाने के बाद कृष्ण जहाज के ऊपरी हिस्से में आ गए और जहाज को उधर मोड़ दिया जिधर वे जाना चाहते थे। कृष्ण जहां जाना चाहते थे, वह एक ऐसा राज्य था, जिस पर एक महिला का शासन था और लोग उसे देवी मां जैसा मानते थे। कृष्ण ने जहाज चलाना सीख लिया था और वह खुद ही जहाज लेकर आगे बढ़ रहे थे।
रात के वक्त कृष्ण और बलराम ने देखा कि एक बड़े डीलडौल वाला इंसान हाथ में एक छोटी सी तलवार लिए उनकी ओर हमला करने को बढ़ रहा है। यह पांचजन्य ही था। वह विशालकाय था और अगर उसके हाथ में तलवार है तो उससे लड़ना बेहद मुश्किल हो सकता था। कृष्ण कोई रास्ता ढूंढने लगे। उन्हें लगा कि अब जान बचाने का एकमात्र तरीका यही है कि वे पानी में कूद जाएं। जैसे ही कृष्ण पानी में कूदने वाले थे, हुल्लू, जिसकी जिंदगी पांचजन्य की गुलामी में बीत रही थी, पीछे से आया और पांचजन्य को उठाकर समुद्र में फेंक दिया, एक उधड़ी हुई चमड़ी वाला आदमी नमक के पानी में था... । और फिर उन लोगों ने अपनी यात्रा जारी रखी।
आगे जारी ...