सद्गुरुगीता की व्याख्या अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग तरह से की है और पाठक अपने हिसाब से उसका अर्थ निकाल लेते हैं जो गलत ही नहीं, बल्कि खतरनाक भी हो सकता है। तो फिर कैसे समझें गीता का सही अर्थ?

सौरभ:

कृष्ण कहते हैं, 'तुम एक तरफ तो बुद्धिमानी की बातें करते हो और दूसरी तरफ उन लोगों के लिए विलाप करते हो, जो इसके योग्य ही नहीं हैं। कोई ऐसा वक्त नहीं था जब तुम, मैं या ये लोग नहीं थे' - इसका क्या मतलब हुआ?

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सद्‌गुरु:

अगर इन शब्दों को केवल शब्दों की तरह लिया जाए, तो ये बड़े खतरनाक शब्द साबित होंगे। यही वजह है कि गीता पर आने से पहले हमने कृष्ण के व्यक्तित्व को स्पष्ट करने में इतना वक्त लगाया, जिससे कि आप एक हद तक इस बात को अच्छी तरह से समझ पाएं कि वह कौन थे और फिर उनकी कही गई बातों का गलत अर्थ न निकालें।

आप अपने तार्किक दिमाग का प्रयोग करने लगेंगे, और तब आपके लिए यह आसान हो जाएगा कि आप दूसरों के लिए कष्टों और परेशानियों का ढेर लगा देंगे और फिर लोगों से कहेंगे- आखिर यहां है क्या।
'तुमने बुद्धिमानी की बात की है', यह कहकर कृष्ण यह स्वीकार कर रहे हैं कि अर्जुन की बातें बुद्धिमानी से भरी हैं। 'तुमने उन लोगों के लिए विलाप किया, जो इसके योग्य नहीं हैं'- इस बात का मतलब है कि तुम ऐसे लोगों के लिए विलाप कर रहे हो जो तुम्हारे विलाप के काबिल नहीं हैं, क्योंकि वे कोई छोटे मोटे शैतान नहीं हैं, वे बहुत बड़े दुष्ट हैं। तुम उन्हें जहां भी भेजोगे, वे नकारात्मक चीजें ही करेंगे। तुम उन्हें पूरा राज्य दे दो, वे फिर भी नहीं रुकेंगे और यही तो वास्तव में हुआ था।

पूरा का पूरा राज्य कौरवों को दे दिया गया था। पांडव राज्य छोडक़र चले गए, जंगलों को साफ किया और अपने लिए नए राज्य की स्थापना की। लेकिन जब पांडव सुख-चैन से रहने लगे तो कौरव चुप नहीं बैठे। पांडवों को उनके नए राज्य से बाहर करने के लिए उन्हें कुछ न कुछ तो करना ही था। पांडवों को छल से जंगल भेज दिया गया, लेकिन वह भी मानो काफी न था। कौरवों ने वहां जाकर उनकी खिल्ली उड़ाई। जब ज्यादा कुछ न बिगाड़ पाए तो उन्होंने पांडवों की हत्या करने की योजना बना डाली। इस तरह यह सब चलता ही रहा।

तो युद्ध में अर्जुन जिन लोगों का सामना कर रहे थे, वे लोग ऐसे नहीं थे जो कुछ परिस्थितियों से बाध्य हो कर गलत काम कर रहे थे। दरअसल वे बहुत बड़ी दुरात्मा थे। उन्हें कुछ भी दे दो, उन्हें फिर भी गलत काम ही करना था। इसलिए कृष्ण ने कहा - तुम उन लोगों के लिए विलाप कर रहे हो, जिनके लिए तुम्हें कोई विलाप नहीं करना चाहिए। तुम जाकर जंगलों में छिप गए थे, फिर भी उन्होंने तुम्हें नहीं छोड़ा। तुम पहाड़ों पर चले गए, तो भी उन्होंने तुम्हें नहीं छोड़ा। कुछ भी हो जाए, वे तुम्हें छोडऩे वाले नहीं हैं। इसलिए अब तुम्हारे पास बस दो ही विकल्प हैं या तो इन्हें मार दो या खुद मर जाओ। अच्छा हो कि तुम इन्हें मार दो, क्योंकि अगर तुम इन्हें मार दोगे, तो हो सकता है कि तुम उनसे कुछ बेहतर करोगे। संभव है, तुम शत प्रतिशत ठीक न करो, लेकिन मुझे यकीन है कि तुम उनसे अच्छा ही करोगे। इसी विश्वास के साथ कृष्ण कहते हैं, 'अब आगे बढ़ो।'

'ऐसा कोई समय नहीं रहा जब मैं, तुम या ये राजा इस धरती पर नहीं थे। हम सभी का भविष्य में भी अस्तित्व रहेगा।' यहां वह जीवन के मौलिक गुण के बारे में बात कर रहे हैं, जीवन के इंसानी रूप की नहीं। आप जीवन को नष्ट नहीं कर सकते। आप बस उस मनुष्य के जीवन का अंत कर सकते हैं जो इस समय आपके सामने खड़ा है। लेकिन वह जारी रहेगा और तुम भी रहोगे। जो कुछ भी ईश्वरीय है, जो भी इस जगत का आधार है, वह अविनाशी, शाश्वत होगा। यह जगत खुद में अविनाशी नहीं है। यह आता और जाता है। लेकिन जो इस जगत का स्रोत है, वह अविनाशी है। इस संदर्भ में वह कहते हैं - तुम चिंता मत करो। तुम्हें जो भी करना है, वह इस शरीर के साथ ही करना है। अगर कोई आनंदपूर्वक रहता है तो उसके लिए इस शरीर के मायने हैं। अगर किसी ने यह फैसला कर लिया है कि वह इस शरीर से दूसरों को कष्ट ही देगा, वह इससे क्रोध और नफरत पैदा करेगा, हिंसा करेगा, तो उसके शरीर को मिटा देना ही सही है। लेकिन जो व्यक्ति तुम्हारे सामने खड़ा है, उसके भीतरी आयाम को तुम नष्ट नहीं कर सकते। वे हमेशा से रहे हैं, वे हमेशा रहेंगे। तुम्हारे मामले में भी यही सही है। उनके साथ भी यही बात सही है। तो इन बातों पर शोक मत करो।

जब लोग कष्ट में होते थे, तो कृष्ण को भी कष्ट होता था। वे लोगों के साथ हंसते थे, लोगों के साथ रोते थे। एक व्यक्ति की पीठ पर पड़े छह कोड़ों के घाव पर मरहम लगाकर उन्होंने अपनी जिंदगी तक को खतरे में डाल दिया था।

तो युद्ध में अर्जुन जिन लोगों का सामना कर रहे थे, वे लोग ऐसे नहीं थे जो कुछ परिस्थितियों से बाध्य हो कर गलत काम कर रहे थे। दरअसल वे बहुत बड़ी दुरात्मा थे। उन्हें कुछ भी दे दो, उन्हें फिर भी गलत काम ही करना था। पांचजन्य के
जहाज की कहानी आपको याद होगी। जब वह वहां एक इंसान के रूप में मौजूद थे, उन्होंने बहुत अच्छे काम किए। लेकिन अब वह पूरी तरह से एक अलग ही रूप में थे। अब वह मानवों के बीच में मानव के रूप में नहीं खड़े हैं। वह परम प्रकृति के रूप में खड़े हैं। एक ईश्वरीय संभावना के रूप में खड़े कृष्ण पूरी तरह से एक अलग ही बोली बोल रहे हैं। अब यही व्यक्ति कह रहा है - चिंता मत करो। तुम इन लाखों लोगों की हत्या कर सकते हो, क्योंकि ये सब शरीर हैं। एक ईश्वरीय संभावना के तौर पर वह शरीर को लेकर चिंतित नहीं हैं। वह कहते हैं - ये सब तो बर्तन हैं और हमें इन्हें पिघला देना चाहिए क्योंकि अब इन सबमें दरारें आ गई हैं। उनके साथ और कोशिश करने का कोई फायदा नहीं है। जो वे हैं, उसके स्रोत को तुम नहीं मिटा सकते। तुम बस इनकी बाहरी सतह को मिटा सकते हो। आओ ये काम कर डालें। क्या आप उस व्यक्ति में कोई अंतर महसूस कर रहे हैं? किसी की पीठ के घावों पर मरहम लगाकर वह अपनी जिंदगी को खतरे में डाल देते हैं और अब वही मुस्कराते-मुस्कराते हजारों-लाखों लोगों की जिंदगी ले लेना चाहते हैं।

आपको देखना होगा कि ये बातें कह कौन रहा है? किसी और को जो ऐसी अवस्था में नहीं है, ऐसे शब्द नहीं बोलने चाहिए। इसी वजह से मैं लोगों को गीता पढऩे से मना करता हूं, क्योंकि आप अपने तार्किक दिमाग का प्रयोग करने लगेंगे, और तब आपके लिए यह आसान हो जाएगा कि आप दूसरों के लिए कष्टों और परेशानियों का ढेर लगा देंगे और फिर लोगों से कहेंगे- आखिर यहां है क्या। न कोई मरता है, न कोई जन्म लेता है। सब कुछ ठीक है। ये बातें सही तभी हैं, जब ये आपके साथ भी सही हों। ये आपके मामले में भी सही तभी होंगी, जब आप भी कष्टों से परे होंगे, जब आप भी जीवन और मृत्यु से परे होंगे, केवल तभी आपको ये शब्द कहने चाहिए। नहीं तो ये शब्द आपके लिए नहीं हैं। जब ये बातें कृष्ण के मुख से निकलती हैं, तो ये सत्य और खरी हैं, लेकिन अगर कोई और इन शब्दों को दुहराता है तो यह पूरी तरह से एक झूठ होगा।