खूबसूरत रिश्ते : दूसरों को समझें
रिश्तों में एक दूसरे से होने वाली अपेक्षाएं अक्सर परेशानी का कारण बन जाती हैं। जानें अनेक अपेक्षाओं के बेच रहते हुए रिश्तों को सुंदर बनाने के टिप्स...
रिश्तों में एक दूसरे से होने वाली अपेक्षाएं अक्सर परेशानी का कारण बन जाती हैं। जानें अनेक अपेक्षाओं के बीच रहते हुए रिश्तों को सुंदर बनाने के टिप्स...
दूसरों की गहरी समझ रखें
जिज्ञासु : मान लीजिए कि मेरा किसी के साथ घनिष्ठ रिश्ता है और वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, तो क्या मुझे उससे अपने प्रति थोड़ी बेहतर समझदारी की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए?
सद्गुरु : यही तो समझना है। संबंध जितना ही घनिष्ठ होगा, तुम्हें उन्हें समझने के लिए उतना ही ज्यादा प्रयास करना होगा। लेकिन तुम्हारे मामले में ऐसा नहीं हो रहा है राम। एक बार ऐसा हुआ कि एक आदमी था, जो कई महीनों से कोमा में था। कभी-कभी उसे होश भी आ जाता था। उसकी पत्नी दिन-रात उसके बिस्तर के पास बैठी रहती थी। एक बार जब वह कोमा से बाहर आया, तो होश के उन कुछ लम्हों में उसने पत्नी को पास बुलाया और कहने लगा, ...... ‘मेरे जीवन के सभी बुरे वक्तों में तुम मेरे साथ रही हो।
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बिल्कुल ऐसा ही तुम अपने साथ और अपने रिश्तों के साथ कर रहे हो। तुम्हें कोई ज्यादा आत्मीय और प्रिय तभी लगता है, जब तुम उसे बेहतर ढंग से समझने लगते हो। अगर वे तुम्हें बेहतर ढंग से समझते हैं, तो वे रिश्ते की उस घनिष्ठता का आनंद लेते हैं। अगर तुम उन्हें बेहतर ढंग से समझते हो, तो तुम उस घनिष्ठता का आनंद लेते हो।
दूसरों की समझ को अपनी समझ का हिस्सा बना लें
जिज्ञासु : कहना आसान है, लेकिन इस पर कायम रहना कठिन है ....
सद्गुरु : ऐसा नहीं है कि दूसरे व्यक्ति में बिल्कुल समझ नहीं है। इसलिए अपनी तरफ से तुम ऐसी स्थितियां पैदा कर सकते हो, जिससे वह व्यक्ति तुम्हें बेहतर ढंग से समझ सके। लेकिन अगर दूसरे व्यक्ति से यह आशा कर रहे हो कि वह तुम्हें समझे और हर वक्त तुम्हारी सुने, जबकि तुम उस व्यक्ति की सीमाओं, संभावनाओं, जरूरतों और क्षमताओं को नहीं समझते, तब केवल कलह ही होगा; उसका होना निश्चित है। दुर्भाग्यवश संसार के सबसे घनिष्ठ रिश्तों में उससे ज्यादा कलह होती है, जितनी भारत और पाकिस्तान के बीच होती है। भारत और पाकिस्तान ने अभी तक केवल तीन ही युद्ध लड़े हैं। अपने रिश्तों में तुम इनसे कहीं ज्यादा युद्ध लड़ चुके हो और अभी भी लड़े जा रहे हो। क्या ऐसा नहीं है? इसका कारण यह है कि तुम्हारी और उनकी समझ की रेखा —लाइन ऑफ अंडरस्टैंडिंग अलग-अलग है। अगर तुम इस नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी) का उल्लंघन करते हो, तो वे नाराज हो जाते हैं। अगर वे इसे पार करते हैं, तो तुम पागल हो उठते हो। अगर तुम अपनी समझ के दायरे को उनसे ऊपर ले जाते हो, तो उनकी समझ भी तुम्हारी समझ का एक हिस्सा बन जाती है। तुम उनकी सीमाओं और क्षमताओं को अपनी समझ में समाहित करने के योग्य हो जाते हो।
हरेक व्यक्ति में कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक चीजें होती हैं। अगर तुम अपनी समझ में इन दोनों को शामिल करते हो, तो फिर रिश्ते को वैसा बना सकते हो, जैसा तुम उसे चाहते हो। लेकिन अगर तुम उसे उनकी समझ के भरोसे छोड़ देते हो, तो वह रिश्ता संयोग के भरोसे होता है। अगर वे बहुत उदार हृदय निकले, तब तो तुम्हारे साथ सुंदर घटित होगा; अन्यथा वह रिश्ता टूट जाएगा।
मैं बस यही पूछ रहा हूं —क्या तुम वैसा व्यक्ति बनना चाहोगे जो यह निर्णय लेता है कि उसके जीवन में क्या होना चाहिए? वे चाहे घनिष्ठ रिश्ते हों, व्यावसायिक हों, राजनीतिक हों, अंतरराष्ट्रीय हों या जो भी हों। क्या तुम वैसा व्यक्ति नहीं बनना चाहते जो यह निर्णय ले सके कि उसके जीवन में क्या होना चाहिए? अगर तुम ऐसा चाहते हो, तो बेहतर होगा कि तुम अपनी समझ में हरेक व्यक्ति और हरेक पक्ष को शामिल करो।