ईशा लहर - सितंबर 2015 : कैसे बनाएं अपने रिश्ते को खुशहाल
रिश्ते में दो लोगों की या फिर आपकी और दूसरे पक्ष की भूमिका होती है। अगर किसी रिश्ते में दूसरा पक्ष अपना उत्तरदायित्व ठीक से न निभाए तो हम क्या कर सकते हैं? क्या दूसरों को सुधारने का प्रयास करना चाहिए या फिर वही प्रयास अपने अंदर की मिठास को और बढाने में लगाना चाहिए?
हमारा आज का ब्लॉग, ईशा हिंदी की मासिक पत्रिका ईशा लहर की एक झलक है। इस महीने ईशा लहर का मुख्य विषय है रिश्ते। रिश्ते में दो लोगों की या फिर आपकी और दूसरे पक्ष की भूमिका होती है। अगर किसी रिश्ते में दूसरा पक्ष अपना उत्तरदायित्व ठीक से न निभाए तो हम क्या कर सकते हैं? क्या दूसरों को सुधारने का प्रयास करना चाहिए या फिर वही प्रयास अपने अंदर की मिठास को और बढाने में लगाना चाहिए? आइये पढ़ते हैं इस माह का संपादकीय स्तंभ और जानते हैं रिश्तों में मधुरता लाने के सूत्र...
हमारे जीवन में रिश्तों की एक अहम भूमिका होती है। हमारी जिंदगी का सफर कितना सुहाना होगा यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे रिश्ते कितने खूबसूरत हैं। लेकिन सवाल है कि क्या इन रिश्तों की खूबसूरती केवल हम पर निर्भर करती है? इस सवाल का जवाब अधिकतर लोग यह देंगे कि रिश्ते की खूबसूरती उसमें जुड़े दोनों लोगों पर निर्भर करती है। यह उत्तर कहीं न कहीं हमारा बचाव है, उस स्थिति में जब रिश्ते में कोई कड़वाहट आनी शुरु होती है। तब हमारी यही सोच हमें उस कड़वाहट की जिम्मेदारी दूसरे पक्ष पर डालने और खुद को बरी कर लेने में हमारी मदद करती है।
नहीं जानती कि तुम मेरे क्या हो
शायद हो मीत या शायद सखा हो
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मिल जाती हैं सारी खुशियां जिसमें
अनमोल सा शायद तुम वो लम्हा हो
बंध गए हैं मन तेरे मेरे एक डोर में
नेह भरा ये बंधन जैसे प्रेम पगा हो
अनूठा सा एक रिश्ता है हमारे बीच
जो पहले न नहीं देखा हो
न ही कहीं सुना हो
रिश्तों की मिठास एक तरफ जहां हमारे विकास के लिए एक सकारात्मक माहौल पैदा करती है, वहीं दूसरी तरफ जब रिश्ते कटु हो जाते हैं, तो ऐसा लगने लगता है कि जीवन का संतुलन बिगड़ गया है। कई बार मानसिक संतुलन इतना बिगड़ जाता है कि इंसान अवसाद में डूब जाता है और उसे डॉक्टर की शरण तक लेनी पड़ती है। इसका प्रभाव हमारी ऊर्जा पर भी पड़ता है और परिणाम ये होता है कि हमारे जीवन का कोई भी पहलू इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। लेकिन रिश्ते की कटुता और मधुरता से इंसान की इंसानियत प्रभावित नहीं होनी चाहिए, इससे उसकी अंतर्दृष्टि मलिन नहीं होनी चाहिए।
- डॉ सरस
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