काशी: दुनिया का सबसे अनूठा यंत्र
वाराणसी या काशी शहर का आध्यात्मिक महत्व किसी से छिपा नहीं है। हर इंसान की इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार वह यहां जरूर आए। काशी के बारे में प्रसून जोशी के सवालों के जवाब दे रहे हैं सद्गुरु:
काशी की प्राचीनता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि, जब एथेंस को बसाने के बारे में सोचा भी नहीं गया था, उस समय काशी का अस्तित्व था। जब रोम नाम की कोई चीज लोगों के दिमाग में भी नहीं थी, उस वक्त भी काशी था। जब मिस्र नहीं था, काशी तब भी था। काशी, जिसका दूसरा नाम बनारस है, इतना ही प्राचीन है। दरअसल, शहर के रूप में एक यंत्र बनाया गया, जो सूक्ष्म और दीर्घ के बीच एकात्म पैदा करता है। इसी विषय पर प्रसून जोशी के सवालों के जवाब दे रहे हैं सद्गुरु:
जब हम किसी ऐसी चीज के बारे में सोचते हैं जिसे हमेशा या काफी लंबे समय के लिए काम करना है, तो हम एक ऐसा मशीन बनाना चाहते हैं जिसमें जड़ता की गुंजाइश न हो। हम एक ऊर्जा मशीन का निर्माण करने की कोशिश करते हैं। इसे ही परंपरागत रूप से यंत्र कहा जाता है। सामान्य त्रिकोण सबसे मूल यंत्र है। अलग-अलग स्तर की मशीनों को बनाने के लिए अलग-अलग तरह की व्यवस्था करनी पड़ती है। ये मशीनें आपकी भलाई के लिए काम करती हैं।
तो यह काशी एक असाधारण यंत्र है जैसा न पहले कभी बना न आगे कभी बनेगा। इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया, जिसके भीतर भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो और वह हमेशा सक्रिय रह सके।
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काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है, क्योंकि हमारा सौरमंडल कुम्हार के चाक की तरह है। इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है। सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं। अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे, तो बाकी के चार चक्र अपने आप ही विकसित हो जाएंगे। उनका कुछ नहीं करना है। शरीर के 108 चक्रों को सक्रिय बनाने के लिए 108 तरह की योग प्रणालियां है ।
पूरे बनारस शहर की रचना इसी तरह की गई है। यह पांच तत्वों से बना है और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि शिव योगी और भूतेश्वर थे, उनका नंबर पांच है। इस स्थान की परिधि पांच क्रोशा है। इसी तरह से उन्होंने सकेंद्रित कई सतहें बनाईं। यह आपको काशी की मूलभूत ज्यामिति दिखाता है। गंगा के किनारे यह शुरू होता है और ये सकेंद्रित वृत परिक्रमा की व्याख्या करते हैं। सबसे बाहरी परिक्रमा की माप 168 मील है।
यह शहर इसी तरह बना है और विश्वनाथ मंदिर इसी का एक छोटा सा पहलू है। असली मंदिर का बनावट ऐसा ही है। यह बेहद जटिल है। इसका मूल रूप तो अब रहा ही नहीं। यहां 72 हजार शक्ति स्थलों का निर्माण किया गया। एक इंसान के शरीर में नाडिय़ों की संक्चया भी इतनी ही होती है। इस शहर के निर्माण की पूरी प्रक्रिया ऐसी है, मानो एक विशाल इंसानी शरीर एक वृहत ब्रह्मांडीय शरीर के संपर्क में आ रहा हो, ज्यामितीय रूप से सूक्ष्म और व्यापक जगत के मिलन का शानदार प्रदर्शन। कुल मिलाकर एक शहर के रूप में एक यंत्र की रचना की गई।
ब्रह्मांड की संरचना से संपर्क के लिए यहां एक सूक्ष्म ब्रह्मांड की रचना की गई। इन दोनों चीजों को आपस में जोडऩे के लिए 468 मंदिरों की स्थापना की गई। मूल मंदिरों में 54 शिव के हैं और 54 शक्ति या देवी के हैं। अगर मानव शरीर को भी हम देंखे तो उसमें आधा हिस्सा पिंगला है और आधा हिस्सा इड़ा। दायां भाग पुरुष का है और बायां हिस्सा नारी का। यही वजह है कि शिव को अद्र्धनारीश्वर के रूप में भी दर्शाया जाता है, आधा हिस्सा नारी का और आधा पुरुष का।
इस पूरे शहर की रचना इस शरीर की तरह से हुई है। यहां 468 मंदिर बने, क्योंकि साल में 13 महीने होते हैं (चंद्र कैलंडर में हर साल एक महीना अधिक होता है), 13 महीने और 9 ग्रह, चार दिशाओं में या चार मूल तत्व। वैसे तत्व पांच होते हैं, लेकिन इनमें से आकाश तत्व का हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। इस तरह से तेरह, नौ और चार के गुणनफल के बराबर 468 मंदिर बनाए गए। आपके स्थूल शरीर का 72 फीसदी हिस्सा पानी है, 12 फीसदी पृथ्वी है, 6 फीसदी वायु है और 4 फीसदी अग्नि। बाकी का 6 फीसदी आकाश है। सभी योगिक तंत्रों का जन्म एक खास विज्ञान से हुआ है, जिसे भूत शुद्धि कहते हैं। इसका अर्थ है अपने भीतर मौजूद तत्वों को शुद्ध करना। इस तरह भूत शुद्धि के आधार पर इस शहर की रचना हुई।
यहां एक के बाद एक 468 मंदिरों में सप्तऋषि पूजा हुआ करती थी और इससे इतनी जबर्दस्त ऊर्जा पैदा होती थी कि हर कोई इस जगह आने की इच्छा रखता था। जिसका जन्म भारत में हुआ है, उसका तो सपना होता है काशी जाने का। यह जगह सिर्फ आध्यात्मिकता का ही नहीं, बल्कि संगीत, कला और शिल्प के अलावा व्यापार और शिक्षा का केंद्र भी बना। इस शहर ने देश को कई प्रखर बुद्धि और ज्ञान के धनी लोग दिए हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, 'पश्चिमी और आधुनिक विज्ञान भारतीय गणित के आधार के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते थे।' यह गणित बनारस से ही आया। जिस तरीके से इस शहर रूपी यंत्र का निर्माण किया गया, वह बहुत सटीक था। ज्यामितीय और गणितीय रूप से यह अपने आप में इतना संपूर्ण है कि हर व्यक्ति इस शहर में आना चाहता है। यह शहर जो अदभुत घटनाओं का गवाह रहा है।
स्रोत - काशी द ईटर्नल सीटी (डीविडी)
वाराणसी या काशी शहर का आध्यात्मिक महत्व किसी से छिपा नहीं है। हर इंसान की इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार वह यहां जरूर आए। ईशा पावन प्रवास आपके लिए ऐसा ही मौका लाया है, जिसमें आप वाराणसी की आध्यात्मिकता को आत्मसात कर सकते हैं:
इस वर्ष की वाराणसी यात्रा का आयोजन 21- 25 नवंबर 2013 के बीच होगी। अधिक जानकारी के लिए - www.sacredwalks.org फोन - + 91 9488 111 555