लेख : जून 27, 2019

सद्‌गुरु: आज भी गोरखनाथ भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध योगियों में माने जाते हैं। उनके अनुयायियों को ‘कनफट’ के नाम से जाना जाता है, और वे अपने कानों के बड़े छेदों से ही पहचाने जाते हैं।

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गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ थे। मत्स्येंद्रनाथ - जिन्हें लोग स्वयं शिव का अवतार मानते थे - एक योगी एवं अत्यंत उच्च स्तर के दिव्यदर्शी थे। वे बस नाम भर के मनुष्य थे, वास्तव में वे बहुत पहुँचे हुए थे। लोगों से बहुत अलग, बहुत दूर, एकाकी जीवन बिताते थे। बस, बहुत ही थोड़े से, अत्यंत प्रतिबद्ध शिष्य ही उनके साथ थे, जिनमें से एक गोरखनाथ थे। गोरखनाथ भारत के पश्चिमी समुद्रतट से आये थे और वहीं से मत्स्येंद्रनाथ भी थे - आज भी एक पर्वत का नाम उनके नाम पर है।

ये बात लगभग 2000 वर्ष पहले की है

एक बार गोरखनाथ ने देखा कि उनके गुरु किसी से मिलने आसाम गये थे पर वापस नहीं आये। अपने ध्यान में उनको पता लगा कि उनके गुरु शारीरिक आनंद में मग्न थे। वे भौंचक्के रह गये, "मेरे गुरु ऐसी अवस्था में कैसे हो सकते हैं"? तो, पश्चिमी तट से वे पैदल ही आसाम गये, जो 3000 किमी से भी ज्यादा दूर था। वे सारे रास्ते पैदल गये और उन्हें उनके गुरु एक वेश्या के घर में मिले, जहाँ वे शारीरिक सुख का आनंद ले रहे थे और उनकी गोद में दो स्त्रियाँ थीं। वे इस पर विश्वास नहीं कर सके और सोचते रहे, "मत्स्येन्द्रनाथ के साथ ऐसा कैसे हो सकता है, वे तो स्वयं ही शिव हैं "!गोरखनाथ को अपने गुरु के साथ कई शक्तिशाली अनुभव मिले थे। "और यहाँ ये वेश्याओं के साथ हैं" ! वे अत्यंत व्यथित हुए।

तब गोरखनाथ ने उनसे कहा, "आप को मेरे साथ चलना होगा" और उन्होंने उन वेश्याओं को उग्रता से डरा कर भगा दिया। फिर उन्होंने अपने गुरु को बाहर निकाला और उन्हें साथ ले कर चल पड़े। रास्ते में मत्स्येन्द्रनाथ एक स्थान पर स्नान करने के लिये गये। उन्होंने अपना थैला गोरखनाथ को दिया और कहा, "इसे संभाल कर रखना, इसमें बहुत कीमती वस्तु है"। फिर वे नदी की ओर चले गये। थैला बहुत भारी था तो गोरखनाथ ने उसे खोल कर देखा और उन्हें उसमें सोने की दो छड़ें मिलीं। वे बहुत दुःखी हुए, "ये मेरे गुरु को क्या हो गया है? पहले वे वेश्याओं के साथ थे और अब वे स्वर्ण इकट्ठा कर रहे हैं। वे चाहें तो किसी चट्टान पर पेशाब कर के उसे सोने की बना सकते हैं - उनके पास ऐसी अद्भुत तांत्रिक शक्ति है। लेकिन वे सोने की दो छड़ों के पीछे आसक्त हो रहे हैं। क्यों"? उन्होंने वे दोनों छड़ें जंगल में फेंक दीं, और फिर वे आगे चले।

गोरखनाथ बहुत दुःखी थे कि उनके गुरु इस तरह से भटक गये थे, और साथ ही उन्हें गर्व हुआ कि वे अपने गुरु को भटकने से बचाने के लिए 3000 किमी से भी ज्यादा पैदल चले थे। जब उन्हें इस बात का घमंड हुआ, तो मत्स्येंद्रनाथ ने अपना हाथ उनके सिर पर पर रखा, और अचानक गोरखनाथ को अहसास हुआ कि वे तो वहीं बैठे हुए थे। न वे आसाम गये थे, न उन्होंने वेश्यायें देखीं, न सोना ! कुछ नहीं !! ये सब उनके मन में हो रहा था। लेकिन, उन्हें यह सब कुछ वास्तविक लग रहा था, कि वे इतना चले, और उन्होंने वह सब कुछ देखा। ये सब कुछ उनके गुरु की तांत्रिक शक्तियों के कारण हुआ था। मत्स्येंद्रनाथ ने ये सब अपने आसपास बना लिया था, वास्तव में ! और फिर गोरखनाथ बिल्कुल ही टूट गये - "मैंने ये सब किया। मैंने ये भी सोच लिया कि मेरे गुरु वेश्याओं के साथ थे और स्वर्ण के लिये लालची हो रहे थे"। वे बहुत दुःखी हो गए। तब मत्स्येंद्रनाथ ने उनसे कहा, "ये सब ठीक है। कम से कम ये तो है कि मुझे बचाने के लिये तुम 3000 किमी पैदल चलने को तैयार हो। ये तुम्हारे लिये बहुत अच्छा है। अपने अंदर इसे बनाये रखो"।

Editor’s Note: Be part of Guru Purnima 2019 with Sadhguru at Isha Yoga Center.