गुरु पूजा : क्या है इसका महत्व?
योग विज्ञान में गुरु पूजा की एक पूरी प्रक्रिया है जिससे चैतन्य को आमंत्रित किया जाता है। क्या है इसका महत्व, और कैसे की जानी चाहिए गुरु पूजा?
योग विज्ञान में गुरु पूजा की एक पूरी प्रक्रिया है जिससे चैतन्य को आमंत्रित किया जाता है। क्या है इसका महत्व, और कैसे की जानी चाहिए गुरु पूजा?
प्रश्न: सद्गुरु, कृपया हमें बताएं कि ईशा में हम गुरु पूजा क्यों करते हैं? गुरु पूजा का क्या महत्व है?
सद्गुरु: गुरु पूजा का मतलब गुरु के आगे फल, फूल या नारियल चढ़ाना नहीं है, बल्कि यह दिव्यता को आमंत्रित करने की एक सूक्ष्म प्रक्रिया है। हम लोग इस काम को सरलतम तरीके से कर रहे हैं, क्योंकि ईशा एक धर्मनिरपेक्ष संगठन है, जहां हम कर्मकांड को काफी हल्के स्तर पर ही रखते हैं।
ध्यान और कर्मकांड
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ध्यान और कर्मकांड में अंतर होता है। ध्यान पूरी तरह से आपका अपना काम होता है, जो अपने आप में विशिष्ट होता है। लेकिन अगर हम कर्मकांड मेंं सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं तो सभी लोग उसमें शामिल हो सकते हैं, हर व्यक्ति उसका आनंद व लाभ ले सकता है। अगर कर्मकांड को समुचित तरीके से किया जाए तो यह सबके लाभ के लिए एक जोशपूर्ण और शानदार तरीका है।
गुरु पूजा एक जरिया है, एक खास तरीका है। यह कोई धन्यवाद ज्ञापन का उत्सव या समारोह नहीं है। बेशक इसमें आभार प्रकट करने का भाव होता है, लेकिन यह बस इतना ही नहीं हैं। यह कुछ खास तरह की पवित्र ऊर्जा-ज्यामिति को तैयार करने का एक तरीका है, जो स्वाभाविक रूप से अपनी ओर खास तरह की शक्ति को आकर्षित करता है। आपको गुरु पूजा इस तरह से करनी चाहिए कि मैं चाहे कहीं भी रहूं, मुझे आना ही पड़े, मेरे सामने इसके अलावा कोई विकल्प ही न बचे। लेकिन यह तभी संभव है कि जब आप खुद को विकल्पहीन बना लें।
कृष्ण दौड़ पड़े अपने भक्त को बचाने
महाभारत में इसी से जुड़ी एक बेहतरीन कहानी है। एक दिन कृष्ण अपने महल में बैठ कर भोजन कर रहे थे। उनकी पत्नी रुक्मणि उन्हें खाना परोस कर खिला रहीं थीं। कृष्ण एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने कंधे पर पूरी दुनिया का बोझ उठा रखा था। इस वजह से उन्हें घर पर बिताने के लिए वक्त कम ही मिल पाता था। इसलिए उन्हें भोजन परोसने और खिलाने का मौका भी कम ही मिल पाता था। यहां तक कि उनकी पत्नी के लिए यह मौका, एक सौभाग्य होता था, जिसका वह पूरी तरह से आनंद उठाती थीं। तो कृष्ण खाना खाते-खाते अचानक आधा खाना बीच में छोडक़र उठे और बिना हाथ धोए ही बाहर जाने लगे। रुक्मणि उन्हें इस तरह बीच में उठता देख बोलीं- ‘अरे, आप भोजन अधूरा छोडक़र कहां जा रहे हैं। जाने से पहले कम से कम भोजन तो पूरा कर लीजिए।’
कैसे करें गुरु पूजा?
गुुरु पूजा व्यक्ति को पूर्ण रूप से विकल्पहीन बनाने का एक जरिया है। सभी कर्मकांड इसी तरह के हैं। आप खुद को एक प्रक्रिया में लगा दीजिए और फिर खुद को पूरी तरह से विकल्पहीन बना लीजिए। अगर आप ऐसे बन जाते हैं तो गुरु के पास भी फिर कोई विकल्प नहीं बचता। आप खुद को इस तरह से विकल्पहीन बनाएं कि उस दैवी शक्ति के पास भी कोई विकल्प न बचे। इसी चीज को कई योगियों ने अलग-अलग अंदाज में व्यक्त किया है, जैसे ‘शिव के पास मेरा पार्टनर होने के सिवा कोई और चारा ही नहीं है।’
तो गुरु पूजा एक ऐसा ही जरिया है। आपको इसे इस तरह करना चाहिए कि गुरु के पास कोई विकल्प ही न बचे। आपको इस तरह से निमंत्रण भेजना चाहिए कि उनके सामने कोई विकल्प ही न हो, उन्हें आपके पास आना ही पड़े। आप दैनिक जीवन में जो कुछ भी करते हैं, अगर उसमें ऐसी शक्ति पैदा कर सकें तो साधना का फायदा कई गुना बढ़ जाएगा।