भोलेनाथ शिव - जो ज्ञान और अज्ञान से परे हैं
हम कुछ भी पाने के लिए अपने ज्ञान का सहारा लेते हैं। लेकिन क्या हमारा सीमित ज्ञान हमें असीमित तक पहुंचा पाएग? तो क्यों न हम अपनी अथाह अज्ञानता को ही खंगालें? लेकिन कैसे?
हम कुछ भी पाने के लिए अपने ज्ञान का सहारा लेते हैं। लेकिन क्या हमारा सीमित ज्ञान हमें असीमित तक पहुंचा पाएग? तो क्यों न हम अपनी अथाह अज्ञानता को ही खंगालें? लेकिन कैसे?
रहस्यवाद या आध्यात्मिकता का अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं है। लोग जान-बूझकर अज्ञानता में जीना चाहते हैं, इसलिए रहस्यवाद का अस्तित्व है। उन्हें जिन चीजों के बारे में पता नहीं है, उन्हें वे रहस्य का नाम दे देते हैं। जबकि उसमें रहस्यमय कुछ भी नहीं है, वह पहले से यहां मौजूद है। आपकी सीमाएं किसी चीज को रहस्यमय बनाती हैं। आप किसी चीज को नहीं समझ पाते, आपकी यह कमजोरी उसे रहस्यमय बनाती है, उसकी अपनी प्रकृति नहीं।
तो अंधकार से परे क्या है? जिसे भी आप नहीं समझ सकते, वह आपके लिए अंधकार है और बात बस यही है।
इसलिए जो कुछ भी अंधकार और आपके बोध के परे है, उसे हम शिव कहते हैं क्योंकि वह एक असीम विस्तार है। अज्ञानता का असीम विस्तार है मगर ज्ञान का कोई असीम विस्तार नहीं है। ज्ञान हमेशा सीमित होता है, वह विशाल हो सकता है मगर फिर भी बहुत सीमित होता है। केवल अज्ञानता ही असीम हो सकती है। इसलिए शिव को भोलेनाथ, यानी अज्ञानी, भी कहा जाता है क्योंकि वह अज्ञानता के देवता हैं। हो सकता है आपको यह बात पसंद नहीं आई होगी। क्योंकि आपको लगता है कि उन्हें तो ज्ञान का देवता होना चाहिए। तो मैं बता दूं कि वह ज्ञान के देवता भी हैं। वह ज्ञानेश्वर हैं, मगर यह उनका एक छोटा सा पहलू है। असल में वह अज्ञानता के देवता हैं क्योंकि अस्तित्व में सबसे विशाल दायरा अज्ञानता का है, जो अंधेरा है। अरे, उसे कौन खोजना चाहेगा? अगर आप अपनी अज्ञानता को खंगालेंगे, तभी ज्ञान हासिल होगा। अगर आप ज्ञान को खंगालेंगे तो कोई नई चीज नहीं मिलेगी। बस बेकार चीजों की रिसाइकलिंग होती रहेगी। जब आप अज्ञानता में गोता लगाएंगे, तभी ज्ञान निकल सकता है। आप अंधकार से, अज्ञानता से अनंत ज्ञान निकाल सकते हैं, मगर जो आप पहले से जानते हैं, उससे आपको क्या हासिल होगा? आप उसे हजारों अलग-अलग तरीकों से मथ सकते हैं, बस।
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