एड्स पीड़ितों को जरूरत है प्रेम और करुणा की
1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस है। यह ऐसा मौका है जब दुनिया के तमाम लोगों को साथ लाकर एड्स के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है और इस महामारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन किया जाता है। 2007 में एचआईवी / एड्स पीड़ितों के लिए आयोजित एक खास सत्संग में सद्गुरु ने एचआईवी की चुनौतियों और संभव समाधान के बारे कहा:
1 दिसंबर विश्व एड्स दिवस है। यह ऐसा मौका है जब दुनिया के तमाम लोगों को साथ लाकर एड्स के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है और इस महामारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन किया जाता है। 2007 में एचआईवी / एड्स पीड़ितों के लिए आयोजित एक खास सत्संग में सद्गुरु ने एचआईवी की चुनौतियों और संभव समाधान के बारे कहा:
विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है लेकिन अभी भी ऐसे तमाम रोग हैं, जिनका कोई इलाज नहीं है। हम नई नई दवाओं और इलाज का आविष्कार करते जाते हैं और प्रकृति हमारे सामने नई नई चुनौतियां पैदा करते रहती है। मानव शरीर रोगों से लडऩे की अपनी क्षमता को खो सकता है, पर रोगों से पीड़ित लोगों के प्रति समाज में प्रतिरोध बढ़ रहा है। हमें समाज में मौजूद इस प्रतिरोध को कम करना चाहिए और शरीर के भीतर प्रतिरोध को बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में जो लोग एचआईवी से संक्रमित हैं, उनके प्रति समाज में काफी द्वेष का भाव है, जिसका सबसे प्रमुख कारण है लोगों के अंदर समझ की कमी। लोगों को इस बारे में कम जानकारी है कि यह संक्रमण कैसे होता है, कैसे एक दूसरे में फैलता है और हम इस मामले में क्या कर सकते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें लगता है कि एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को देखने से ही उन्हें संक्रमण हो जाएगा। इस डर को भगाने के लिए हमें इसके बारे में जागरूकता फैलानी होगी। पश्चिमी देशों में एचआईवी पीड़ितों के खिलाफ किसी के मन में कोई द्वेष नहीं होता, क्योंकि वहां के लोगों को इसके बारे में भरपूर जानकारी है। ऐसे कई रोग हैं जो इंसान को प्रभावित करते हैं और उसे पीड़ित करते हैं। ऐसा नहीं है कि कोई पीड़ित इसीलिए होता है क्योंकि उसे एचआईवी संक्रमण है। अगर आप देखें तो एचआईवी अपने आप में कोई रोग नहीं है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। इससे शरीर कमजोर होता है और रोगों से लडऩे की उसकी क्षमता क्षीण हो जाती है। एचआईवी एड्स महज एक मेडिकल समस्या नहीं है, यह सामाजिक संकट बनती जा रही है। एक समय लोग सोचते थे कि भारत जैसे देश में यह रोग तेजी से नहीं फैलेगा, क्योंकि यहां सामाजिक नियम बड़े कड़े हैं। जाहिर है कि यह बात गलत साबित हुई। आज अगर ग्रामीण इलाकों के लोग भी इस रोग की चपेट में आ रहे हैं तो उसका मतलब यह है कि समाज के ऐसे कई पहलू हैं जिनको हमने नहीं समझा है।
अंततः समझदारी से रहना ही इस समस्या का एकमात्र हल है। यह भी महत्वपूर्ण है कि जो लोग एचआईवी से संक्रमित हैं, वे अपनी जिम्मेदारी समझें और सावधानी से चलें। अगर एचआईवी से पीड़ित लोग अपनी जीवन ऊर्जाओं को तीव्र अवस्था में कायम रखें तो भले ही उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को पूरी तरह वापस न लाया जा सके, लेकिन उसे काफी हद तक बढ़ाया जरूर जा सकता है। अगर रोगी अपने खानपान के अलावा काम करने के तरीके और जीवन के दूसरे पहलुओं का भी ख्याल रखे, तो वह रोगों से लडऩे की अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है। अगर कोई कष्ट में है तो यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि उसकी वजह क्या है। आप ऐसा नहीं कह सकते कि एक पीड़ा बड़ी है और दूसरी छोटी। यह सोचना सही नहीं है कि अगर कोई कैंसर से पीड़ित है तो उसे प्यार देना चाहिए और अगर किसी को एड्स है तो उसे प्यार नहीं देना चाहिए। जब सुनामी आई तो हर कोई मदद के लिए आगे आ रहा था। मुझे समझ में नहीं आता कि एचआईवी की समस्या का सामना करने के लिए भी लोग उसी तरह से सामने क्यों नहीं आ रहे हैं। जाहिर सी बात है कि करुणा सोच – समझकर या चुनाव करके नही दिखाई जाती।
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