हम गुरु पूर्णिमा का उत्सव क्यों मनाते हैं ?
जून - जुलाई महीनों में आने वाले भारतीय आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं।. सदगुरु यहाँ, पहले गुरु की 15000 वर्षों से भी अधिक पुरानी कहानी सुनाते हुए बता रहे हैं कि हम गुरु पूर्णिमा का उत्सव क्यों मनाते हैं...
![हम गुरु पूर्णिमा का उत्सव क्यों मनाते हैं ? Guru Purnima Celebrations with Sadhguru at the 112ft Adiyogi statue, Isha Yoga Center | Why Do We Celebrate Guru Purnima? Sadhguru Answers](https://static.sadhguru.org/d/46272/1633177939-1633177938902.jpg)
अंग्रेज़ी कैलेंडर के जून - जुलाई महीनों में आने वाले भारतीय आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। साल 2019 में ये पवित्र उत्सव 16 जुलाई के दिन है। सदगुरु यहाँ, पहले गुरु की 15000 वर्षों से भी अधिक पुरानी कहानी सुनाते हुए बता रहे हैं कि हम गुरु पूर्णिमा का उत्सव क्यों मनाते हैं...
सदगुरु : गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब पहले गुरु का जन्म हुआ था। यौगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं माना जाता, उन्हें आदि योगी, अर्थात पहले योगी की तरह देखा जाता है। गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा का दिन है, जिस दिन पहले योगी ने खुद को आदि गुरु, अर्थात पहले गुरु के रूप में बदल लिया था।यह वर्ष का वो समय है, जब 15000 वर्षों से भी पहले, उनका ध्यान उन महान सप्तऋषियों की ओर गया जो उनके पहले शिष्य बने। उन्होंने 84 वर्षों तक कुछ सरल तैयारियाँ की थीं। फिर जब संक्रांति, गर्मियों की संक्रांति से सर्दियों की संक्रांति में बदली, यानि जब पृथ्वी के संबंध में सूर्य की गति उत्तरी गति से दक्षिणी गति में बदली, जिसे इस परंपरा में उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं, उस दिन आदियोगी ने सप्तऋषियों की ओर देखा और उन्होंने यह महसूस किया कि वे जानने की अवस्था के पात्र बन गये थे, और वे उन्हें और ज़्यादा अनदेखा नहीं कर पाए। आदियोगी उन्हें ध्यान से देखते रहे, और जब अगली पूर्णिमा आई तो उन्होंने गुरु बनने का फैसला किया। उसी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। उन्होंने अपना मुख दक्षिण की ओर कर लिया और सात शिष्यों को यौगिक विज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई।
गुरु पूर्णिमा : वह दिन जब प्रथम गुरु का जन्म हुआ
![The 112 ft statue of Adiyogi at the Isha Yoga Center | Why Do We Celebrate Guru Purnima? Sadhguru Answers | Guru Purnima: The Day the First Guru Was Born](https://static.sadhguru.org/d/46272/1633177963-1633177962301.jpg)
यौगिक विज्ञान बस शरीर को मोड़ना, झुकाना या बस सांस रोकना नहीं है। ये तो मानवीय तंत्र की तांत्रिकी को समझने का, इसे विघटित करने का और फिर से एकत्रित करने का विज्ञान है। सृष्टि के स्रोत तथा अस्तित्व का लोगों का जो बोध है या फिर लोग जिस तरह से इसे समझते हैं, उसे आदियोगी एक नए आयाम में ले गए। उन्होंने अपने आप को सृष्टि और सृष्टि के स्रोत के बीच पुल बना लिया। उन्होंने कहा, "तुम अगर इस मार्ग पर चलोगे तो तुम्हारे और जिसे तुम सृष्टिकर्ता कहते हो, उसके बीच कोई अंतर नहीं रहेगा"। ये सृष्टि से सृष्टिकर्ता तक की यात्रा है।
आदियोगी जब बोल रहे थे तो वे धर्म, दर्शन शास्त्र या कट्टर सिद्धांतों के बारे में नही बता रहे थे। वे एक विज्ञान समझा रहे थे - एक वैज्ञानिक पद्धति स्पष्ट कर रहे थे जिसके द्वारा आप उन सीमाओं को तोड़ सकते हैं जिनमें प्रकृति ने मनुष्य जीवन को सीमित किया है।
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शुरुआत में, हमारी बनायी हुई प्रत्येक सीमा का उद्देश्य अपनी सुरक्षा होता है। हम अपने घर के चारों ओर एक दीवार इसी सुरक्षा के लिये बनाते हैं। लेकिन जैसे जैसे आप ये दीवार बनाने के कारणों के प्रति अपनी जागरूकता खो देते हैं, वैसे वैसे, सुरक्षा की ये दीवार आप के लिये कैद की दीवार भी बन जाती है। ये दीवारें किसी एक प्रकार की नहीं होती, उनके कई जटिल रूप बन गये हैं।
मैं केवल उन मनोवैज्ञानिक सीमाओं की बात नहीं कर रहा हूँ जो आप ने अपने चारों ओर बनायी हैं। मैं उन दीवारों की बात कर रहा हूँ जो प्रकृति ने आप की सुरक्षा और खुशहाली के लिये बनायी हैं। लेकिन मनुष्य का स्वभाव कुछ ऐसा है कि आप उस समय तक सच्ची खुशहाली का अनुभव नहीं कर सकते जब तक आप, खुद पर ही लगाई गई सीमाओं के परे नहीं जाते। इंसान इस मुश्किल स्थित में हैं। आप जब खतरे में होते हैं तो आप को अपने चारों ओर सुरक्षा की एक मजबूत दीवार, एक सुदृढ़ किला चाहिये। जैसे ही खतरा दूर हो जाता है, आप चाहते हैं कि ये दीवार, ये किला ढह जाये गायब हो जाये।
लेकिन जो दीवार आप ने अपनी सुरक्षा के लिये बनाई है, वह जब आप की इच्छानुसार नहीं टूटती, तो आप को ऐसा लगता है कि आप कैद में हैं और घुट रहे हैं क्योंकि प्रकृति ने आप को ऐसी विवेकशील बुद्धिमानी दी है, कि कोई भी बंधन या कोई भी चीज़ जो हमें कैद कर दे, बंदी बना दे, वो हमारे लिये सबसे बुरी चीज़ होती है। मनुष्य के लिए कैद की पीड़ा, शारीरिक यातना से भी बड़ी पीड़ा है। जैसे ही किसी मनुष्य को ऐसा अनुभव होता है कि वो कैद में है, तो उसकी पीड़ा शब्दों से परे होती है।
गुरु पूर्णिमा आदियोगी की पद्धतियों का उत्सव मनाती है
![The 112 ft statue of Adiyogi at the Isha Yoga Center | Why Do We Celebrate Guru Purnima? Sadhguru Answers | Guru Purnima Celebrates Adiyogi’s Methods](https://images.sadhguru.org/sites/default/files/inline-images/sadhguru-isha-wisdom-adiyogi-112ft-isha-yoga-center-why-do-we-celebrate-guru-purnima-adiyogi-methods-relevant-all-times.jpg)
शिव का कार्य था जागरूकता के वे साधन देना जो आप को इन सीमाओं के परे ले जायें, ऐसे साधन जो आप को अपनी सुरक्षा के किले की दीवारें तब तक रखने दें, जितनी आवश्यकता है और जब ज़रूरत न हो तो आप उन्हें मिटा सकें।
तो ऐसा जादुई सुरक्षा किला कैसे बनायें, जो केवल आप के लिये खतरनाक सिद्ध होने वाली शक्तियाँ ही देख सकें, पर आप खुद उसे न देख सकें? यही आदियोगी का कार्य था। प्रकृति के ही मूल, भ्रामक स्वभाव का उपयोग करते हुए, उन्होंने ऐसे कई आश्चर्यजनक, अतुल्य तरीके बताये जिनसे आप ऐसे जादुई किले अपने चारों ओर बना सकें जिनसे हो कर आप तो आसानी से गुजर जायें पर कोई शत्रु उन्हें भेद न सके। गुरु पूर्णिमा इसी उत्सव को मनाती है, जिससे पहली बार मानवता के लिये एक अत्यंत जटिल और अद्भुत बात की शुरुआत हुई।
इसी दिन, मानवता के इतिहास में पहली बार, मनुष्यों को याद दिलाया गया था कि उनका जीवन पहले से तय नहीं है। अगर वे प्रयास करने के लिये तैयार हैं, तो अस्तित्व का प्रत्येक दरवाजा उनके लिये खुला हुआ है।
गुरु पूर्णिमा किसी जाति या पंथ के भेदभाव के बिना मनायी जाती है
![The 112 ft statue of Adiyogi at the Isha Yoga Center | Why Do We Celebrate Guru Purnima? Sadhguru Answers | Guru Purnima Is Celebrated Irrespective of Caste or Creed](https://images.sadhguru.org/sites/default/files/inline-images/sadhguru-isha-wisdom-adiyogi-112ft-isha-yoga-center-why-do-we-celebrate-guru-purnima-adiyogi-predates-religion.jpg)
तो यह दिन पूरी मानव जाति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। हमारे देश में कुछ समय पहले तक ऐसा ही माना जाता था। देश में गुरु पूर्णिमा सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों, पर्वों में से एक था। लोग इसको जाति या पंथ के किसी भी भेदभाव के बिना मनाते थे, क्योंकि इस देश में धन, संपत्ति सबसे महत्त्वपूर्ण नहीं थे। ज्ञान प्राप्त करना या जानना सबसे अधिक मूल्यवान समझा जाता था। समाज में शिक्षक या गुरु को सर्वोच्च सत्ता का दर्जा दिया जाता था क्योंकि जानना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन फिर कुछ कारणों से हमने, जानने की बजाय अज्ञानता को महत्व दिया और पिछले 65 वर्षों में गुरु पूर्णिमा का महत्व इसलिये भी कम हो गया है क्यों कि भारत सरकार ने इस दिन को छुट्टी घोषित नहीं की है।
भारत में अंग्रेजों के आने से पहले अमावस्या के आसपास तीन दिन का और पूर्णिमा के आसपास दो दिन का अवकाश रहता था। तो महीने में आप के पास 5 दिन होते थे जब आप मंदिर जाते थे और अपनी आंतरिक खुशहाली के लिये काम करते थे। जब अंग्रेज़ आये तो उन्होंने रविवार को अवकाश का दिन बना दिया। उसका क्या मतलब है? आप को नहीं पता कि उस छुट्टी के दिन क्या करना चाहिये, तो आप बस खूब खाते हैं और टीवी देखते हैं!
तो सारे देश में ये उत्सव धीरे धीरे अपना महत्व खो बैठा है। यहाँ, वहां, कुछ आश्रमों में आज भी ये जीवित है लेकिन अधिकतर लोगों को तो ये भी नहीं पता कि ये सबसे महत्वपूर्ण दिन इसलिये है, क्योंकि, लोगों के दिमाग में धर्म का विचार आने से पहले, आदियोगी ने यह विचार सामने रखा कि मनुष्य, अपने अस्तित्व के वर्तमान आयामों के परे भी विकसित हो सकता है और उन्होंने इसे सच्चाई बनाने के लिये आवश्यक साधन भी दिये। ये वो सबसे कीमती विचार है, जो मनुष्य के मन में आया - कि वो अपनी वर्तमान सीमाओं के परे जा सकता है और अनुभव, अस्तित्व तथा पहुंच के एक बिल्कुल अलग आयाम में प्रवेश कर सकता है।