ध्यान को असरदार बनाने के 3 नुस्खे
बहुत लोगों की यह शिकायत रहती है कि वो ध्यान का अभ्यास तो नियमित करते हैं, लेकिन उन्हें आनंद का अनुभव नहीं मिल पाता। सद्गुरु बता रहे हैं इसका कारण और इसके लिए तीन नुस्खे:
प्रश्न:
कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जैसे ही ध्यान में बैठते हैं, उन्हें आनंद का अनुभव होने लगता है। मैं भी ध्यान करता हूं, लेकिन मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता।
सद्गुरु:
जिस जगत में हम रह रहे हैं, हमें उसकी प्रकृति को समझना होगा। मान लीजिए, बाहर एक सेब का पेड़ लगा है। अगर आपको सेब चाहिए तो ऐसा नहीं होगा कि आपने इच्छा की और सेब आपके हाथ में आ गया।
सवाल इसका नहीं है कि आप उसके लिए इच्छा कर रहे हैं या नहीं, जानबूझकर या अनजाने में आपने सही काम कर दिया और आपको उसका फल मिल गया। जीवन के हर पहलू के साथ यह सृष्टि इसी तरीके से काम करती है। अगर आपको यह पसंद नहीं है तो आप कहीं और चले जाइए। लेकिन इस सृष्टि का नियम तो यही है कि जीवन के बेहद सरल मामलों से लेकर जटिलतम पहलुओं तक, जब तक आप सही काम नहीं करेंगे, तब तक सही चीजें आपके साथ घटित नहीं होंगी।
तो अनुभव को लेकर आप चिंता न करें, आप अपने तरीके पर ध्यान दें और यह देखें कि उस क्रिया को करने का सही तरीका क्या है। जो होना है, होकर रहेगा। जो होना है, अगर वह नहीं हुआ तो एक बार फिर से अपने तरीके को देखें, फिर से अपने तरीके पर गौर करें, ध्यान से अपने तरीकों को देखते रहें। कुछ तो ऐसा है, जो आप सही से नहीं कर रहे हैं। फल की ओर मत देखिए। अपनी क्रिया की ओर देखिए। नतीजा तो आना ही है और कोई चारा ही नहीं है।
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तीन चीजों का ध्यान रखें:
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ध्यान के निर्देश का पालन करें
अगर कुछ नहीं हो रहा है तो इसकी वजह भाग्य या दुर्भाग्य नहीं है। कहीं न कहीं हम कुछ सही करने से चूक रहे हैं। बात जब साधना की आती है तो कुछ उम्मीद न करें, किसी अनुभव की इच्छा न करें। बस साधना को सही तरीके से करना सीखें। इसमें एक तरह की ‘सब्जेक्टिविटि’ यानी व्यक्तिपरकता है। यह एक बीज की तरह है। अगर आप चाहते हैं, बीज में अंकुर आएं तो आपको उसके लिए जरूरी परिस्थितियां पैदा करनी होंगी। इक्कीस मिनट की एक क्रिया को सिखाने के लिए हमने सात दिन का वक्त लिया। क्रिया सिखाते हुए करीब तीस घंटे तक आपको निर्देश दिए गए। जब तक आप उन सभी चीजों को तैयार नहीं करेंगे, यह काम नहीं करेगी। बीज कितना भी शानदार हो, अगर आप उसे जरुरत के हिसाब से धूप, हवा और पानी नहीं देंगे तो वह कभी भी अंकुरित नहीं होगा। यह भी कुछ ऐसा ही है। तो जो भी निर्देश आपको दिए गए हैं, उनका बस पालन कीजिए।
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ध्यान पूरी निष्ठा से करें
अगली बात है निष्ठा। अभी आपको जो भी प्रक्रिया बताई गई है, वह आपको उस दिशा में ले जाती है जहां आप सभी को शामिल करने के काबिल बन सकें। अगर आप खुद को सबसे अलग समझने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आपके भीतर निष्ठा की कमी है।
हर तरह से आप खुद को जीवन से अलग करके जीवन के उल्लास का आनंद लेना चाहते हैं। इस तरह से काम नहीं चलता। यह ऐसे है कि आप अपनी सांस को रोककर रखते हैं और फिर आप चाहते हैं कि जीवन आपके लिए खूबसूरत बन जाए।
जब बात शरीर की आती है तो आप काफी ‘इनक्लुसिव’ यानी समावेशी हैं, सब कुछ अपने भीतर शामिल कर लेने को तैयार हैं, रोटी हो या सेब, चिकन हो या अंडा, सबको आप अपने भीतर समा लेने को हमेशा तैयार हैं।
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ध्यान के उद्देश्य में तीव्रता लाएं
तीसरी चीज है उद्देश्य में तीव्रता। पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य खुद को बड़ा बनाना नहीं है। पूरी प्रक्रिया का मकसद आपको शून्य में विलीन कर देना है क्योंकि आप जिस चीज की खोज कर रहे हैं, वह असीमितता है, विशालता नहीं है। बड़ा या विशाल बनकर आप असीमित नहीं हो सकते। विशाल की भी सीमा होती है। आप असीमित तभी हो पाते हैं, जब आप शून्य हो जाते हैं। तो इन सब चीजों का उपयोग आप महान या बड़ा बनने के लिए नहीं करते। आप इसका प्रयोग खुद को मिटाने की प्रक्रिया के रूप में कर रहे हैं। अपना उद्देश्य आपको हमेशा स्पष्ट होना चाहिए।
तो तीन चीजें हैं: बुनियादी निर्देश, आपकी निष्ठा और उद्देश्य में तीव्रता। अगर आप इन तीनों चीजों का ध्यान रखते हैं, तो आपको चमत्कारिक परिणाम हासिल होंगे। इन पर आपको रोजाना गौर करना होगा। केवल अभ्यास से पहले ही नहीं, आप जब सुबह सोकर उठते हैं, तब चेक करें: क्या आज मैं ऐसा होने जा रहा हूं? यह चमत्कारिक ढंग से काम करेगा।
संपादक की टिप्पणी:
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ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया