सद्‌गुरुहम में से अधिकतर लोग शिव को एक भगवान के रूप में जानते, मानते और पूजते रहे हैं। लेकिन क्या कभी सोचा है कि शिव का मतलब क्या है? शिव कहां से आए?

क्या ईश्वर में विश्वास करना चाहिए?

लोग अकसर मुझसे पूछते हैं कि उन्हें ईश्वर में विश्वास करना चाहिए या नहीं।

विश्वास की बात इसलिए आती है क्योंकि आप सच्चाई से स्वीकार नहीं करते कि आप नहीं जानते। ‘मैं नहीं जानता’ एक जबर्दस्त संभावना है।
मैं आपसे एक सवाल पूछता हूं - ‘क्या आपको विश्वास करते हैं कि आपके दो हाथ हैं, या आप जानते हैं कि आपके पास दो हाथ हैं? आपके पास दो हाथ हैं, यह जानने के लिए आपको अपनी बाहें देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे आप अपने अनुभव से जानते हैं। तो फिर ऐसा क्यों है कि हाथों की बात होती है तो आप जानते हैं, मगर ईश्वर के मामले में आप विश्वास करते हैं? क्योंकि आप ईमानदारी से स्वीकार नहीं करना चाहते कि आप नहीं जानते।’

विश्वास की बात इसलिए आती है क्योंकि आप सच्चाई से स्वीकार नहीं करते कि आप नहीं जानते। ‘मैं नहीं जानता’ एक जबर्दस्त संभावना है। जब आप समझ लेते हैं कि ‘मैं नहीं जानता’, तभी जानने की इच्छा उभरती है। जानने की इच्छा पैदा होने पर खोजने की जिज्ञासा होगी। खोज से जानने की संभावना होती है। लेकिन जिस चीज के बारे में आप नहीं जानते, उस पर सिर्फ विश्वास कर लेने पर यह पक्का हो जाता है कि आप उसे कभी नहीं जान पाएंगे।

विश्वास कर लेने से खोज रुक जाएगी

दूसरी तरफ क्या है - अगर उसके बारे में हम बस विश्वास कर लें, तो वास्तव में कोई खोज नहीं हो सकती। जब व्यक्ति नहीं जानता, तभी उसकी खोज सच्ची होती है। खोज हमेशा ‘मैं नहीं जानता’ से उत्पन्न होती है।

व्यापक शून्यता अस्तित्व का आधार और ब्रह्मांड का मूलभूत गुण है। अरबों विशाल तारामंडल इस व्यापक शून्यता में बस जरा सी छींटें हैं। इस विशाल शून्यता को ही हम शिव कहते हैं।
आप नहीं जानते, इसलिए आप जानने की कोशिश कर रहे हैं। खोज या जिज्ञासा एक अज्ञानता, एक शून्य से उभरती है, जिससे आप बाहर आना चाहते हैं। जिज्ञासा तलाश करना है – आप उस चीज को नहीं जानते, आप खोज कर रहे हैं, आप रास्ता ढूंढ रहे हैं। दुर्भाग्यवश, दुनिया में अधिकतर लोग कोशिश नहीं करना चाहते और विश्वास उनके लिए एक आसान विकल्प होता है। आप सिर्फ विश्वास कर लेते हैं कि ईश्वर और शैतान का अस्तित्व है। आप इससे खुद को बेवकूफ बना सकते हैं, लेकिन इसका कोई मायने नहीं है, क्योंकि यह आपके दिमाग की उपज है।

लोगों के मन में कई तरह के विश्वास होते हैं। वे स्वर्ग की बात करते हुए एक ऐसी जगह की कल्पना करते हैं, जहां आपको भोजन, स्त्रियां, ईश्वर और भी बहुत सी चीजें मिल सकती हैं, जो चीजें आपको धरती पर नहीं मिलतीं। जिन चीजों से अभी आप वंचित हैं, उन्हें आप ‘ऊपर’ पाना चाहते हैं। इसीलिए, भारतीय संस्कृति में ‘शि-व’ कहा गया, जिसका अर्थ है ‘वह जो नहीं है’। जब हम शिव कहते हैं, तो हम किसी ईश्वर की बात नहीं करते। शिव का वास्तविक अर्थ है, ‘वह जो नहीं है’। आधुनिक भौतिक विज्ञानियों ने भी यह साबित कर दिया है कि पूरी सृष्टि शून्य से निकली है और शून्य में ही चली जाएगी। व्यापक शून्यता अस्तित्व का आधार और ब्रह्मांड का मूलभूत गुण है। अरबों विशाल तारामंडल इस व्यापक शून्यता में बस जरा सी छींटें हैं। इस विशाल शून्यता को ही हम शिव कहते हैं।

आध्यात्मिक प्रक्रिया का मूल है - कल्पना न करना

तो, ऊपर क्या है? कुछ नहीं, यानी शून्य। आप ‘कुछ नहीं’ की कल्पना कैसे करेंगे? कोशिश करके देखिए। आप जितनी अधिक कोशिश करेंगे, आपके दिमाग में जितने भी भौतिक रूप हैं, वे नष्ट होते जाएंगे।

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भौतिकता से परे जाते हुए भी अगर आप इस दुनिया में हैं, तो इसका अर्थ है कि आपने किसी और चीज को छू लिया है। उस किसी और चीज को हमने ‘वह, जो नहीं है’ कहा।
इस संस्कृति में आपको लगातार शिव शब्द का जाप करने को कहा गया, क्योंकि हम आपके बनाए हुए हर रूप को नष्ट करना चाहते हैं। चाहे आपने देवता बनाए, भूत या पिशाच, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें आपने ही बनाया है। अगर आप उन्हें नष्ट नहीं करेंगे, तो आप कभी हकीकत को उस तरह नहीं देख पाएंगे, जैसी वह वास्तव में है। आपको हमेशा ये चीजें आस-पास तैरती दिखाई देंगी। इसलिए इसे एक प्रक्रिया की तरह सिखाया गया, जिससे आप इन सारी चीजों को नष्ट कर सकते हैं।

एक आध्यात्मिक प्रक्रिया का मूलभूत तत्व यह है कि आप किसी चीज की कल्पना नहीं करते हैं। जब आप ‘शिव’ कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप यह विश्वास करते हैं कि शिव आसमान में ऊपर बैठे हैं। आप बस उस ध्वनि को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इस ध्वनि का इस्तेमाल बिना किसी आधार के नहीं किया गया। हमने देखा और महसूस किया है कि अलग-अलग तरह की ध्वनियां आपके ऊपर कैसा असर करती हैं। शि-व की ध्वनि उसे नष्ट करने का तरीका है, ताकि जीवन हर पल नए रूप में आरंभ हो। आपका मनोवैज्ञानिक पहलू एक दर्पण जैसा हो जाएगा। जो चीज उसके सामने होगी, वह सिर्फ उसे ही दिखाएगा, और कुछ नहीं। आपके मन को ऐसा ही होना चाहिए। फिर वह एक उपयोगी मन होगा। फिलहाल बहुत सारी चीजें उससे चिपकी हुई हैं। मान लीजिए, आपके घर का दर्पण ऐसा हो जाए कि उसके सामने जो चीज हो, उसका दस फीसदी प्रतिबिंब ही आ पाए। तो वह तुरंत बेकार हो जाएगा।

जिस चीज का कोई मानसिक चित्र नहीं बन सकता, जब आप उसे विचार में लाने की कोशिश करते हैं, तो आप एक निराकार चीज को देखने की कोशिश कर रहे होते हैं। अगर आप वास्तव में इसका प्रयास करते हैं, तो यही खोज है। फिर आप भौतिक सृष्टि से परे चले जाते हैं। भौतिकता से परे जाते हुए भी अगर आप इस दुनिया में हैं, तो इसका अर्थ है कि आपने किसी और चीज को छू लिया है। उस किसी और चीज को हमने ‘वह, जो नहीं है’ कहा।

शिव का उच्चारण क्यों करते हैं?

आप ‘शिव’ इसलिए कहते हैं क्योंकि आप उस चीज की परिकल्पना करते हैं, जो नहीं है। आप इस दिशा में जितनी कोशिश करेंगे, आपका मन उतना ही स्पष्ट और समरूप होता जाएगा।

जब आपके पास समतल और साफ दर्पण होगा, तो आप उसमें चीजों को वास्तविक रूप में देख पाएंगे क्योंकि आप अपने मन के विस्तार में ही अस्तित्व की सभी चीजों को देखते हैं।
आपकी पसंद-नापसंद, प्रेम-घृणा, सब कुछ नष्ट हो जाएगा। जब आपके पास समतल और साफ दर्पण होगा, तो आप उसमें चीजों को वास्तविक रूप में देख पाएंगे क्योंकि आप अपने मन के विस्तार में ही अस्तित्व की सभी चीजों को देखते हैं। अगर आप उसे साफ और समतल नहीं रखेंगे, तो आपको उसमें अपने ही भूत दिखाई देंगे।

मैं आपको एक चुटकुला सुनाता हूं। एक आदमी मेडिकल चेकअप के लिए भर्ती हुआ। वह बहुत संकोची और सुशील आदमी था और ऐसे फिजिकल चेकअप का अभ्यस्त नहीं था। उसके कपड़े उतार कर उससे काफी सारी चीजें करवाई गईं। उसका वजन किया गया, ऊंचाई नापी गई, ट्रेडमिल पर चढ़ाया गया, बहुत सी चीजें कराई गईं। इन सब के बीच उसे बाथरूम का इस्तेमाल नहीं करने दिया गया। आखिर उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने बिस्तर पर ही मलत्याग कर दिया। वह नहीं चाहता था कि उसकी देखभाल में लगी सुंदर सी नर्स को पता चले कि उसने चादर पर क्या किया है क्योंकि वह बहुत संकोची था। इसलिए उसने चादर उठाई और तीसरे फ्लोर की खिड़की से बाहर फेंक दिया।

नीचे सड़क पर एक शराबी चल रहा था, जो धरती का आकार पता करने की कोशिश में लगा था।

आप कल्पना से किस तरह बच सकते हैं? क्योंकि यादें होंगी तो कल्पना भी होगी। इसलिए यह उपकरण आपको दिया गया – कि उस चीज की परिकल्पना करें, जो नहीं है।
अचानक यह सफेद चादर उड़ती हुई उस पर आ गिरी। वह चादर को हटाने के लिए हाथ-पैर चलाने लगा और इधर-उधर लुढकने लगा। आखिरकार बहुत मुश्किल से किसी तरह वह चादर को हटा पाया। फिर वह ध्यान से नीचे गिरी गंदी चादर को देखने लगा। तभी किसी ने आकर पूछा, ‘क्या हुआ?’ वह बोला, ‘मुझे लगता है कि मैंने भूत को इतना पीट दिया कि उसका मल निकल गया।’ ज्यादातर लोगों के साथ यही होता है। आप ऐसे भूतों के साथ लड़ते रहते हैं, जिनका अस्तित्व ही नहीं होता। आप उनसे लड़कर जीत सकते हैं मगर आप जितना जीतेंगे, उतना ही खोएंगे।

साधना का मतलब किसी चीज की कल्पना करते हुए वहां तक पहुंचना नहीं है, वह तो पागलपन है। इसमें आप कोई कल्पना नहीं करते। आप कल्पना से किस तरह बच सकते हैं? क्योंकि यादें होंगी तो कल्पना भी होगी। इसलिए यह उपकरण आपको दिया गया – कि उस चीज की परिकल्पना करें, जो नहीं है। कोशिश करते रहें और आप देखेंगे कि आपका मन खाली होता जाएगा।

संपादक की टिप्पणी:

20 फरवरी से 23 फरवरी तक ईशा योग केंद्र में सद्‌गुरु योगेश्वर लिंग की प्रतिष्ठा करने वाले हैं। इन्हीं दिनों यक्ष महोत्सव भी आयोजित होगा, और इसका सीधा प्रसारण आप यहां देख सकते हैं।

महाशिवरात्रि की रात होने वाले आयोजनों का सीधा प्रसारण आप यहां देख सकते हैं।

महाशिवरात्रि की रात के लिए खुद को तैयार करने के लिए आप एक सरल साधना कर सकते हैं। सात दिनों की साधना कल 18 फरवरी से शुरू हो रही है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यहां जाएं

2017-महाशिवरात्रि