बदल गई मेरे जीवन की राह
मैं ईशा सत्संग टीचर ट्रेनिंग में शामिल हुआ, जिसने मेरे जीवन का रुख परम मार्ग की ओर मोड़ दिया और सद्गुरु का अंग बनने का सुनहरा अवसर दिया।

मैं ईशा सत्संग टीचर ट्रेनिंग में शामिल हुआ, जिसने मेरे जीवन का रुख परम मार्ग की ओर मोड़ दिया और सद्गुरु का अंग बनने का सुनहरा अवसर दिया।
पहली बार मुज़फ्फ़रनगर के द्वार
पहला सत्संग है, पहली-पहली बार
नई लहर पर तैरता यह नया सफर
अंजाना शहर, ढूंढती मुझे अपनों की नजऱ
इतने प्यार से हुआ सभी का इस्तक बाल,
कैसे करूं ख़ुशियों का पूरा इजहार
जाने कितना जागरूक था और कितना तैयार,
पर था जबरदस्त उस माहौल का श्रृंगार।
सद्गुरु के सौजन्य से हुआ यह आयोजन,
जहां हुआ विशाल ऊर्जा का सृजन,
मैं अपनी शख्सियत और मेडिटेटर्स के बीच,
Subscribe
नहीं कर पाया कोई भेद
क्योंकि हर जन, बन गया था मेरा परिजन।
आभारी हूं मैं सद्गुरु का
और सभी वालंटियर्स का,
बना जिनके समर्थन से मैं
इस विशाल वृक्ष की एक डाली,
है इंतजार अब तो,
ईशा के अगले योग कार्यक्रम का,
उत्साह जिसके लिए
छलकता है ऐसे,
मानो त्यौहार कोई आनेवाला हो जैसे,
हर क्षण है एक अवसर
खुद को पूरी तरह अर्पित करने का,
और हो जाने का - बिलकुल खाली,
डूब जाने का - हर पल की गहराइयों में,
जब तक पता न लगा ले,
जिन्दगी के हर पहलू की कलाकारी।
सद्गुरु ने मुझे भीतर तक छू लिया
मैं मनोरंजन के लिए, यूट्यूब पर ढेर सारे वीडियो देखा करता था। जिन दिनों मैं एम. बी. ए. कर रहा था, मेरे प्रोफेसर्स मुझे अलग-अलग क्षेत्र के लीडर्स की बातें सुनने के लिए कहते थे। तब से ही मैंने वीडियो देखना शुरू किया और फिर रातें ऐसे ही बीतने लगीं। उन्हें सुनकर मेरे सोचने का नजरिया बदलता जा रहा था। इसके लिए मुझे ज़्यादा खोज भी नहीं करनी पड़ती थी, क्योंकि यूट्यूब खुद ही मेरे होमपेज पर ऐसे लोगों की लाइन लगा देता था। इसी दौरान एक दिन मेरी नजर एक लम्बी सफेद दाढ़ी वाले चमकते हुए इंसान पर पड़ी। मेरे दिमाग में था कि मुझे इन बाबाओं के चक्कर में नहीं पडऩा है, लेकिन सुनने में ये लोग बहुत रोचक और अनूठे होते हैं, तो क्यों न एक बार ऑनलाइन प्रवचन सुना जाए। फिर जो मैंने सद्गुरु को सुनना शुरू किया, लगातार एक साल तक सुनता रहा, क्योंकि उन्होंने मुझे कहीं अंदर तक छू लिया था।
एक रोज सद्गुरु के एक वीडियो के अंत में मैंने ‘इनर इंजीनियरिंग’ लिखा देखा और उसके बारे में पता करके, सद्गुरु की वाणी पर भरोसा करते हुए, इनर इंजीनियरिंग प्रोग्राम में हिस्सा लेने चला गया। पहले दिन वालंटियर्स के हार्दिक स्वागत से ही मन प्रसन्न हो गया था, लेकिन मुझे सोने नहीं दिया गया, तो थोड़ा चिढ़ा हुआ भी था। सद्गुरु बहुत बढिय़ा बोल रहे थे, लेकिन बहुत सारा बोल रहे थे। प्रोग्राम इंग्लिश में था और मुझे इस भाषा में सुनते हुए इतना सब समझने की आदत नहीं थी। लेकिन रविवार की गतिविधियों ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया और प्रोग्राम के अंत में ऐसा लगा मानो बचपन वाला प्यार और खुशी मेरे अंदर जाग उठी हो।
एक महीने बाद स्वयंसेवा करने के लिए, अनाउंसमेंट शीट से ढूंढक़र नंबर मिलाया और सत्संग सेटअप के लिए पहुंच गया। वहां पहुंचकर किसी अनजान की तरह ज़्यादा बात किए बिना काम करता रहा। अकसर प्रोग्राम स्थल दूर होता था, जिसकी वजह से मैं तभी जाता था जब समय और मोटरसाइकिल की सुविधा हो। लेकिन कुछ ही समय में ईशा का काम, मेरा काम बन चुका था क्योंकि मुझे यह दुनिया का सबसे बेहतरीन काम लगता था। और अब मेरे पास कोई सुविधा हो न हो, मैं अपने करियर के काम को भी छोडक़र स्वयंसेवा करने पहुंच जाता हूं। सभी स्वयंसेवक, दोस्त, भाई, बहन, सरीखे हो गए हैं। ऐसा लगता था मानो वेकेशन मनाने परिवार के पास आए हों।
जब योगेश्वर लिंग की प्राणप्रतिष्ठा के दौरान आश्रम गया, तब सद्गुरु की उपस्थिति को महसूस किया। ऐसा महसूस हुआ कि उनकी जागृत की गई ऊर्जा बरकरार है, बल्कि बढ़ती ही जा रही है। एक बार बीस किलोमीटर दूर, सुबह सूर्य क्रिया के लिए और शाम को अंगमर्दन के लिए जाता था। दो महीने बाद, ‘भाव-स्पंदन’ और ‘शून्य ध्यान’ किया, जिसमें एहसास हुआ कि मैं यह शरीर नहीं हूं। मैं एक मस्त बादल जैसा झूमने लगा। फिर अगले साल सत्संग टीचर ट्रेनिंग में शामिल हुआ, जिसने मेरे जीवन का रुख परम मार्ग की ओर मोड़ दिया और सद्गुरु का अंग बनने का सुनहरा अवसर दिया। सद्गुरु कहते हैं प्यार हमारी भावनाओं की मिठास है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं इस मिठास से भरपूर लोगों के बीच हूं।
धनंजय, जयपुर


