लोग अक्सर आकर कहते हैं, ‘मैं यह करना चाहता हूं, लेकिन...’। ऐसी अनेक खूबसूरत चीजें थीं, जो इंसान कर सकता था, लेकिन वह कर नहीं पाया, क्योंकि उसके पास एक ‘लेकिन’ था। हाल ही में किसी ने मुझसे कहा, ‘सद्गुरु मैं आपको अपना जीवन समर्पित करना चाहता हूं, लेकिन....’। यहां ‘लेकिन’ जैसी कोई चीज नहीं होती। अगर आप ‘लेकिन’, और ‘परंतु’ जैसे शब्दों की खोज कर लेते हैं तो आप एक ख्याल बनकर रह जाते हैं। क्योंकि तब आप अपने ख्यालों को अपने दिल और दिमाग से ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।

 

सीमित पहचानों से जुड़ाव

आपमें से किसी ने अगर ईशा योग कार्यक्रम को पूरा किया होगा, तो उस समय आपके मन में कहीं न कहीं, एक पल के लिए ही सही, यह विचार आया होगा - ‘यही असली चीज है’। यह एक वो पल था, जहां आपने अपने चरम का अनुभव किया था। उसी पल को आपको अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए, न कि आपको अपने जीवन का आधार निराशा, ईष्र्या, नफरत भरे क्षणों, आनंद विहीन पलों, दर्द या असहनशीलता से भरे पलों को बनाना चाहिए। आपके जीवन के जो सबसे बेहतरीन अनुभव रहे हों, वही आपके जीवन के केंद्र बिंदु होने चाहिए।

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आपमें से किसी ने अगर ईशा योग कार्यक्रम को पूरा किया होगा, तो उस समय आपके मन में कहीं न कहीं, एक पल के लिए ही सही, यह विचार आया होगा - ‘यही असली चीज है’। यह एक वो पल था, जहां आपने अपने चरम का अनुभव किया था।

अगर आप अपनी पहचान अपने अनुभवों में आई छोटी चीजों से बनाते हैं, तो आपके विचार और भावनाएं हमेशा उन्हीं के आसपास काम करेंगे और फिर उन्हीं के इर्द-गिर्द आप अपने पूरे जीवन का निर्माण करेंगे। जीवन में हर चीज - चाहे वह घास का तिनका ही क्यों न हो, अपनी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल कर रही होती है। चाहे वह कीड़ा हो या पतंगा, एक चिडिय़ा या एक पेड़ - हर एक जीवन अपनी क्षमता के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश करता है। कुछ समय पहले मैं एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म देख रहा था, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे किसी पेड़ की जड़, बल्कि उस जड़ के सिरे की हर कोशिका, जमीन के भीतर से अपना रास्ता खोजने की कोशिश में जुटी हुई है और कैसे हर कोशिका ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्वों को समेटने की कोशिश में लगी है। यह फिल्म इस तरह से बनाई गई थी कि यकीन करना मुश्किल था। आप सोच भी नहीं सकते कि एक छोटे से पौधे की जड़ का सिरा भी कैसा अद्भुत काम करता है, वह भी बिना रुके लगातार चौबीसों घंटे।

अगर आपके मन में एक ख्याल आता है तो यह ख्याल आपकी अपनी तरक्की के लिए होना चाहिए या फिर हरेक की तरक्की के लिए होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता है तो आपको अपने मन में कोई ख्याल ही पैदा नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब आपका जीवन बेकार हो जाता है।

 

अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल

एक इंसान के तौर पर अगर हम अपनी क्षमता का इस्तेमाल नहीं करते, और कीड़े-मकोड़े की तरह रहने की कोशिश करते हैं, तो क्या यह हमारे जीवन की भयंकर सच्चाई नहीं होगी? हमें हर हाल में अपनी परम संभावनाओं को पाने की कोशिश करनी चाहिए, चाहे हम अपनी गतिविधियों के जरिए इसे पाएं या फिर शांत होकर स्थिर बैठकर - एक पहाड़ की तरह स्थिर और अचल होकर। अगर आप बिना हिले-डुले बिलकुल एक पहाड़ की तरह स्थिर बैठ सकते हैं तो हम आपकी पूरी जिंदगी देखभाल करने के लिए तैयार हैं, तब आपको और कुछ नहीं करना होगा। यहां तक कि मैं आपके पैर तक धोने के लिए तैयार हूं। अगर आप स्थिर होकर बैठ नहीं सकते, तो आप कुछ न कुछ तो करेंगे ही। ऐसे में आप वह काम कम से कम इस तरह कीजिए, जिससे वह हर किसी के काम आए। बहरहाल, आपके दिमाग में बहुत सारी अनावश्यक गतिविधियां चल रही हैं, आपके शरीर में बहुत सारी अनावश्यक गति हो रही है, कम से कम हम इन गतिविधियों को कुछ सार्थक करने की दिशा में ले जाएं।

अगर आप अपनी पहचान अपने भीतर मौजूद जीवन प्रक्रिया के साथ स्थापित करते हैं, न कि मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से, न भावनात्मक प्रक्रिया से और न ही अपने भीतर की रसायनिकता से, तो उस स्थिति में आप जो कुछ भी करेंगे, वह अच्छा ही होगा।

अगर आपके मन में एक ख्याल आता है, तो यह ख्याल आपकी अपनी तरक्की के लिए होना चाहिए या फिर हर एक की तरक्की के लिए होना चाहिए और अगर ऐसा नहीं होता है तो आपको अपने मन में कोई ख्याल ही पैदा नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब आपका जीवन बेकार हो जाता है। जीवन का हर अंश ऐसा ही है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या करते हैं, लेकिन अपने-अपने तरीके से हर जीवन उपयोगी है। बेशक बहुत से लोग इस उपयोगिता को समझ नहीं पाए हैं, लेकिन धरती पर मौजूद बाकी सारे प्राणी यह बात जानते हैं, क्योंकि भीतरी तौर पर यह आपस में इस कदर जुड़े हुए हैं कि वे जो भी करते हैं, वह उनके व दूसरों के काम आता है। अगर इंसान जीवन के अंश के रूप में अपनी पहचान बनाए, तो वह भी जो कुछ करेगा, वह किसी न किसी रूप में उपयोगी हो सकता है। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता, इंसान खुद को जीवन मानने के बजाय अपनी पहचान आसपास की चीजों से बना लेता है, जिससे उसकी गतिविधियों का टकराव किसी न किसी रूप में उसके आस-पास मौजूद जीवन से होता है।

अगर आप अपनी पहचान अपने भीतर मौजूद जीवन प्रक्रिया के साथ स्थापित करते हैं, न कि मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से, न भावनात्मक प्रक्रिया से और न ही अपने भीतर की रसायनिकता से, तो उस स्थिति में आप जो कुछ भी करेंगे, वह अच्छा ही होगा। लेकिन अगर आप अपनी पहचान अपने मन से, अपने विचारों से, अपनी भावनाओं से बनाते हैं तो फिर अस्तित्व की बाकी सारी चीजों के साथ आप टकराव की स्थिति में हो सकते हैं। आप अपनी विचार प्रक्रिया को, अपनी भावनाओं को, शरीर को इस तरह बनाएं कि यह जीवन प्रक्रिया के साथ तालमेल में हो। अगर आप यहां एक सहज जीवन के रूप में रहते हैं, तो आप अपने भीतर मौजूद दिव्यता को स्पर्श करने से अछूते नहीं रह सकते। नहीं तो हजारों जीवन ऐसे ही बीत जाएंगे, फिर भी आप दिव्यता से चूकते रहेंगे और हमेशा अस्तित्व के बाकी हिस्सों के साथ संघर्ष करते रहेंगे।