आप आज क्या कर रहे हैं? - चार्ल्स ने कार्नेगी से पूछा
आपने कल तक क्या किया है, या कल आप क्या करने वाले हैं, यह हो सकता है आप महत्वपूर्ण समझते हों, लेकिन सही मायने में महत्वपूर्ण बस यही है कि आप आज क्या कर रहे हैँ। कैसे? आइए जानते हैं :
आपने कल तक क्या किया है, या कल आप क्या करने वाले हैं, यह हो सकता है आप महत्वपूर्ण समझते हों, लेकिन सही मायने में महत्वपूर्ण बस यही है कि आप आज क्या कर रहे हैँ। कैसे? आइए जानते हैं :
सुचित्रा: सद्गुरु, एक जिज्ञासु में सबसे खास गुण क्या होना चाहिए?
सद्गुरु: अगर आप एक सच्चे जिज्ञासु यानी खोजी हैं तो यही काफी है। सिर्फ यह सोच लेने से कि आप जिज्ञासु हैं, आप जिज्ञासु नहीं बन जाते, और न ही आपके आसपास के लोगों के ऐसा कह देने से आप जिज्ञासु बन जाएंगे। जब आप अज्ञानता की पीड़ा से गुजरते हैं, केवल तभी आप असली खोजी बनते हैं।
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जब हर पल आपको अज्ञानता की पीड़ा टीसने लगे, तो आप स्वाभाविक तौर पर सच्चे खोजी बन जाते हैं। तब आप खोजी हुए बिना रह भी कैसे सकते हैं? अगर आप खुद को खोजी बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो आप खोजी नहीं हैं। हो सकता है कि आपके परिवार या समाज में यह चलन हो कि हर किसी को आध्यात्मिक खोज करनी है। लेकिन इससे भी आप सच्चे खोजी नहीं बन जाते। आपको अज्ञानता की पीड़ा से गुजरना ही होगा।
उदाहरण के लिए अगर आप मुझसे पूछें, कि ‘भोजन का सच्चा खोजी’ कौन है तो मेरा जवाब होगा, जो भूखा है। हो सकता है कि किसी ने भोजन पर पीएचडी कर रखी हो या हो सकता है कि कोई आहार-वैज्ञानिक हो, लेकिन वह भोजन का खोजी नहीं कहलाएगा। जो इंसान भूखा है, वही भोजन खोजेगा। यही बात यहां भी लागू होती है। जिसे अज्ञानता की पीड़ा का अहसास है, वही ज्ञान की खोज करेगा और वही असली खोजी है। बाकी सब तो खोजी का रूप धारण किए हुए हैं। इसलिए आप खोजी बनने की कोशिश मत कीजिए। अज्ञानता में रहने का क्या मतलब होता है, यह समझने की कोशिश कीजिए। जब इसकी पीड़ा आपको छूती है, तो आप खोजी बन जाते हैं, इसके अलावा और कोई तरीका नहीं है। जब आप वाकई भूखे होते हैं तो क्या आपके पास यह विकल्प होता है कि मैं खाऊं या न खाऊं। मान लीजिए आपने तीन दिन से कुछ नहीं खाया और आप सचमुच बेहद भूखे हैं, उस समय आपके सामने क्या यह सवाल होगा कि मैं खाऊं या न खाऊं या फिर क्या खाऊं, क्या न खाऊं ?’ उस समय तो आपको जो कुछ भी भोजन जैसा मिल जाए, वही बढिय़ा है। अगर अज्ञानता का दर्द और न जानने की पीड़ा आपको बेचैन कर रही है, तभी आप सच्चे जिज्ञासु बनते हैं।
तो अगर आपमें सिर्फ खोजने का गुण है, तो यही आपकी सबसे बड़ी विशेषता है। ज्यादातर लोगों के मन में कभी-कभार जिज्ञासा उठती है। आप चौबीस घंटे में कितनी बार और कितने पल के लिए अपनी जिज्ञासा के प्रति सचेत होते हैं? हो सकता है आप कहें ‘नहीं-नहीं, मैंने तो तीनों कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। मैंने पचपन दिनों का हठ योग किया है।’ लेकिन आपने कल क्या किया था, इस बात का आज कोई मतलब नहीं है, महत्वपूर्ण वो है, जो आप आज कर रहे हैं।
एक किस्सा सुनाता हूं। एक समय में दुनिया के सबसे बड़े स्टील उद्यमी हुआ करते थे चार्ल्स एम श्वाब, तब मित्तल नहीं आए थे। स्टील किंग बनने से पहले श्वाब एक बड़े स्टील उद्यमी एंड्रयू कार्नेगी के यहां काम किया करते थे। एक दिन उन्होंने कार्नेगी को एक तार भेजा, जिसमें लिखा था- ‘कल हमने उत्पादन के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।’ इस पर कार्नेगी ने उन्हें तुरंत जवाब भेजा- ‘लेकिन आप आज क्या कर रहे हैं?’
मैं भी सिर्फ इतना ही पूछ रहा हूं - ‘आप आज क्या कर रहे हैं?’ ‘मैंने ईशा-योग किया है। मैंने ‘भाव-स्पंदन’ किया है। मैंने ‘सम्यमा’ किया है - पांच सम्यमा।’ वो सब तो ठीक है, लेकिन आज आप क्या कर रहे हैं? मेरा बस यही सवाल है। आप सोचेंगे, ‘सद्गुरु में बिल्कुल करुणा नहीं है।
आप आज क्या कर रहे हैं, आप अभी कैसे हैं, जब तक इन चीजों के बारे में आप वाकई सजग नहीं हैं, तब तक आप साधक नहीं हैं। अगर आप कहते हैं, - ‘मैं लगभग दस साल जिज्ञासु रहा हूं’, तो इसका कोई मतलब नहीं है। सवाल तो यह है कि क्या अभी आप खोजी हैं? क्योंकि बस इसी पल का अस्तित्व है, बाकी सब तो दिमाग में भरी चीजें हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों को देखता हूँ, जो पहले कभी साधक थे। कोई पच्चीस साल साधक रहा तो कोई तीस साल- सब अनुभवी साधक रहे हैं। लेकिन उसका क्या लाभ? कोई इंसान अगर अभी जिंदा है और भूखा है तो आप उसे भोजन दे सकते हैं, लेकिन अगर कोई इंसान पहले जीवित था तो आप उसके साथ क्या कर सकते हैं? तो अगर आपकी साधना अतीत में थी, तो इसका कोई मतलब नहीं है। असली चीज है कि क्या अभी आप जिज्ञासु हैं? यही बात मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि सिर्फ तभी मैं आपके साथ, आपके लिए कुछ कर सकता हूं। अगर आप अतीत के साधक हैं तो आप मेरे लिए पड़ोसी की तरह हैं। हां, अगर अभी आप खोजी हैं, तो मेरे पास इसी वक्त आपके लिए बहुत सी संभावनाएं हैं।