आधुनिक विज्ञान क्या तर्क तक ही सीमित रह गया है?
क्या आधुनिक विज्ञान के तरीकों से हम भीतरी ज्ञान पा सकते हैं? सद्गुरु बताते हैं कि ऐसा संभव नहीं क्योंकि आधुनिक विज्ञान सिर्फ इन्द्रियों का इस्तेमाल कर रहा है, और हमारी इन्द्रियाँ सिर्फ बाहरी चीज़ों को जानने के लिए बनी हैं।

विज्ञान महज एक तरीका है, एक विधि है - एक ऐसा तरीका व विधि जो विश्वसनीय(भरोसे के लायक) है। चलिए, विज्ञान के इस तरीके को समझते हैं। यूरोपीय पद्धति पर आधारित यह तरीका जो आगे चलकर आधुनिक विज्ञान का आधार बना, दरअसल कट्टर धार्मिक परंपराओं के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। उन दिनों वे लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि ऐसी किसी भी चीज का अस्तित्व नहीं हो सकता, जो तार्किक तौर पर(लॉजिक के आधार पर) सही नहीं हो। तर्क के प्रति इस समर्पण के चक्कर में हमने जिंदगी के आनंद को खो दिया। मुझे लगता है कि आइंस्टाइन ने भी इसी से मिलती-जुलती बात कही थी, जो आप भी जानते होंगे। उन्होंने कहा था कि ‘अंतर्ज्ञान एक उपहार है, एक पावन उपहार है, लेकिन तर्क एक भरोसेमंद नौकर है।’ अब हमने एक ऐसा समाज बना लिया है जो नौकर को सम्मान देता है, और पवित्र उपहार की उपेक्षा करता है। ये आइंस्टाइन के ही शब्द हैं, जिसको मैंने थोड़ा आसान बनाकर कह दिया है।
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तर्क के अलावा अन्य आयामों को विकसित करना होगा
आप किस तरह की बुद्धि चाहते हैं- तेज या मंद? तेज ही चाहेंगे न? वास्तव में बुद्धि एक तरह की सर्जिकल छुरी की तरह है जो सब कुछ खोलकर आपको भीतर का हाल दिखा देती है। अगर मैं आपको अच्छे से जानना चाहूं तो क्या मैं अभी आपको चीर सकता हूं? आपको जानने का क्या यही तरीका है? ऐसा करके मैं आपके गुर्दे, लिवर और दिल को तो जान सकता हूं, लेकिन आपको जानने का यह तरीका नहीं है। आपको गले लगाने से या आपके साथ रहने से मैं आपके बारे में कुछ ऐसा जान सकता हूं, जो चीरफाड़ करने से कभी नहीं पता चेलगा। अभी के लिए हमें यह समझना है कि बुद्धि चीरफाड़ करने का एक औजार है। अगर आप चाकू से सिलने की कोशिश करेंगे तो चीजों के चिथड़े ही बचेंगे।
हमारी पांच इन्दियाँ भीतरी जगत में नाकाम हैं
देखिए, हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि अन्दर देखना किसे कहते हैं। अभी हम या कोई भी इंसान जिस तरह से बना है, उस स्थिति में वह अपने भीतर की ओर नहीं मुड़ सकता, क्योंकि हमारी पांचों इंद्रियों का रुख बाहर की ओर है। आप अपने आसपास तो देख सकते हैं, लेकिन अपनी आखों की पुतली को अंदर की तरफ घुमाकर अपने भीतर स्कैन नहीं कर सकते। यहां तक कि अगर आपके हाथ पर कोई चींटी भी चले तो आपको उसका अहसास हो जाता है, लेकिन आपके अंदर जो इतना सारा खून लगातार दौड़ रहा है, उसे आप महसूस नहीं कर सकते। क्योंकि आपकी ज्ञानेन्द्रियों का रुख बाहर की ओर है। आपके जीवन-यापन के लिए इन्हें ऐसा बनाया गया है।
अब आप अपने जीवन चलाने के उपकरणों के जरिए जानने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन यह तरीका काम नहीं करेगा, क्योंकि इन उपकरणों को इस तरह बनाया गया है कि ये आपको सब कुछ तुलना करके ही बता पाएंगे। अगर मैंने ऐसा कुछ छुआ जो मुझे ठंडा लगा, तो इसका मतलब है कि इस समय मेरे शरीर का तापमान उस वस्तु से अधिक है, इसलिए यह मुझे ठंडा लगा। अब अगर मैं अपने शरीर का तापमान कम करके इसे छू लूं तो यह मुझे गरम महसूस होगा। तो इन ज्ञानेंद्रियों के जरिए, जो वास्तव में मेरे जीवन को चलाने के लिए बनाई गई हैं, किसी चीज का ज्ञान नहीं हो सकता। ये बस जीवन गुजारने के लिए ही सही हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इनके जरिए मुझे चीजें वैसी ही दिखेंगी, जैसी मेरी जरुरत है। किसी दूसरे प्राणी को भी ही वैसी दिखेंगी, जैसी उसकी जरूरत है। इसलिए अगर सभी जीव-जंतु यहां बैठकर इस बात पर बहस करें कि प्रकाश और अंधकार क्या है तो यह एक अंतहीन बहस होगी।
विज्ञान शब्द का असली अर्थ
जीवन गुजारने की क्षमता हममें कुदरती रूप से आती है, लेकिन अगर हम और ज्यादा जानना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए कोशिश करनी ही होगी। भारत में हमारे पास इसे बताने का एक तरीका है जो आजकल आमतौर पर इस्तेमाल होता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे विज्ञान कहते हैं। विज्ञान शब्द का अर्थ है- विशेष ज्ञान।
पांचों ज्ञानेंद्रियों द्वारा आप जो कुछ भी समझते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं। जी आप इन पांचों इंद्रियों, यानि देखने, सुनने, छूने, चखने और सूँघने द्वारा जो ग्रहण नहीं कर पाते, लेकिन फिर भी उसका बोध किया जा सकता है, उसे विशेष ज्ञान कहा जाता है। हमने मॉडर्न साइंस को विशेष-ज्ञान नाम दे दिया है। जिसे पश्चिम में साइंस कहा जाता है, उसे भारत के लोग विज्ञान कहते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जिन्हें हम अपनी नग्न आंखों से नहीं देख सकते, अपनी कानों से सुन नहीं सकते, उन्हें कुछ उपकरणों और अन्य चीजों की सहायता से देखा और सुना गया है।