सद्‌गुरु सद्‌गुरु हमें धर्म पर विश्वास कर लेने और इसे एक विज्ञान की तरह समझकर इसकी खोज करने के अंतर के बारे में बता रहे हैं। जानते हैं कि कैसे योग विज्ञान भी इसी बारे में है

विश्वास पर आधारित धर्म ने हिंसा पैदा की है

जैसे ही मनुष्य धार्मिक बनता है, उसके सारे झगड़ों का अन्त हो जाना चाहिये था। पर दुर्भाग्य से, संसार में हर जगह धर्म ही झगड़ों का मुख्य स्रोत बन गया है।

कोई किसी चीज़ में विश्वास करता है, कोई दूसरा किसी अन्य चीज़ में विश्वास करता है, तब स्वभाविक है कि झगड़े को टाला नहीं जा सकता।
इसने अधिकतम जानें ली हैं और इस ग्रह पर हज़ारों वर्षों से यह अधिकतम पीड़ा का कारण बना है। ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि लोग ऐसी चीज़ों में विश्वास करते हैं जो उनके अनुभव में नहीं है। कोई किसी चीज़ में विश्वास करता है, कोई दूसरा किसी अन्य चीज़ में विश्वास करता है, तब स्वभाविक है कि झगड़े को टाला नहीं जा सकता। आज या कल वे झगडऩे वाले हैं। वे झगड़े को कुछ समय के लिये टाल सकते हैं, पर किसी दिन वे झगड़ेंगे। जब तक आप मानते हैं कि सिर्फ आपका रास्ता सही है, और कोई अन्य मानता है कि उसका रास्ता सही है, आप लडऩे को बाध्य हैं।

सभी धर्म भीतरी मार्ग की तरह शुरू हुए थे

हालाँकि सभी धर्म एक आंतरिक मार्ग के रूप में शुरू हुए, समय के साथ वे विकृत होते गए और कोरी मान्यताओं का एक बंडल बन गए।

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और जब आप धर्म को देखते हैं तो हर धर्म की अपनी मान्यता है कि क्या सही है और क्या गलत। आपने जो बात देखी नहीं, महसूस नहीं की आप उसे मान लेते हैं।
यद्यपि सभी धर्मों ने मानव जीवन की महत्ता को बताया है, उसी धर्म का वास्ता दे कर आज आप एक-दूसरे की जान लेने को उतारू हो जाते हैं। दुर्भाग्य से, इसी कारण इस ग्रह पर ज्यादा पीड़ा और संघर्ष का उदय हुआ है। मुझे लगता है कि इसकी मूल समस्या को सही तरीके से नहीं सुलझाया गया है। लोग हमेशा एक समूह और दूसरे समूह के बीच अस्थायी समाधान निकालते रहते हैं। लेकिन ये अस्थायी समाधान ज्यादा दिन नहीं टिकते और फिर संघर्ष उभर आता है। इस लड़ाई का कारण सिर्फ इतना है कि लोग किसी खास मान्यता पर विश्वास करते हैं। किसी ऐसी मान्यता पर जो उनके लिए वास्तविकता नहीं है, फिर भी वे उसमें विश्वास करते हैं। अगर आप वास्तविकता को देखें तो यह हर किसी के लिए एक समान है; हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई सबके लिए। और जब आप धर्म को देखते हैं तो हर धर्म की अपनी मान्यता है कि क्या सही है और क्या गलत। आपने जो बात देखी नहीं, महसूस नहीं की आप उसे मान लेते हैं। कई मायनों में यही सारे झगड़ों की जड़ बन गया है।

योग - भीतरी अनुभव का मार्ग है, न कि विश्वास का

योग का मूल प्रयोजन हमेशा से धर्म को एक अनुभव के रूप में, एक आन्तरिक अनुभव के रूप में खोजने का रहा है न कि विश्वास के रूप में।

ऐसा वह अपने शरीर, मन, भावनाओं के माध्यम से या आन्तरिक ऊर्जाओं के माध्यम से कर सकता है। केवल यही चार वास्तविकताएँ हैं जो आप जानते हैं।
किसी विश्वास से शुरू मत कीजिये; भीतर देखना शुरू कीजिये। जो कुछ भी सच है, उसका अनुभव करिए और आगे बढिए, एक विज्ञान की तरह उस तक पहुँचिए, एक विश्वास की तरह नहीं। योग में, हम सिर्फ यह देखते हैं कि मूल रूप से एक मनुष्य, अपने उच्चतम स्वरूप - ईश्वर या चैतन्य, या जो भी आप उसे कहना चाहें - तक पहुँच सकता है, या विकास कर सकता है। ऐसा वह अपने शरीर, मन, भावनाओं के माध्यम से या आन्तरिक ऊर्जाओं के माध्यम से कर सकता है। केवल यही चार वास्तविकताएँ हैं जो आप जानते हैं। दूसरी हर चीज़ की कल्पना की गई है। दूसरी हर चीज़ आपको सिखाई गई है।

अपने अंदर कुछ मूल्यवान घटित होने की जरुरत

योग में ये ही चार मूल मार्ग हैं। यदि अपने विकास के लिये शरीर का उपयोग करें तो वह कर्म योग है। यदि मन या विवेक का उपयोग करें तो वह ज्ञान योग है।

जब तक आपके अंदर कुछ मूल्यवान घटित नहीं होता तब तक आप बाहरी विश्व के लिए कोई बहुमूल्य चीज नहीं कर सकते। आप चाहे कुछ भी करें, आप अपने ही अंदर का गुण बाहर बाँटते हैं।
यदि भावनाओं का, प्रेम और समर्पण का उपयोग करें तो वह भक्ति योग है। यदि आप अपनी ऊर्जाओं को रूपांतरित करें तो वह क्रिया योग है। यह वैसा ही है जैसे कि अपने दिमाग, दिल, हाथ या ऊर्जा से जुडऩा। आप यही सब हैं, बाकी सारे मनुष्य भी यही हैं। कोई भी ऐसा नहीं है जो सिर्फ दिमाग है, या सिर्फ दिल है, या सिर्फ हाथ (कर्म) है या सिर्फ ऊर्जा है। आप इन चारों का मिश्रण हैं।

अगर किसी व्यक्ति को विकास करना है तो उसे इन चार आयामों - भक्ति, ज्ञान, क्रिया और कर्म के मिले-जुले रास्ते की ज़रूरत होगी। आपकी ज़िंदगी में इन चारों का होना आवश्यक है। सिर्फ तभी विकास हो सकता है। सिर्फ तभी अपने मूल स्वरूप तक पहुंचने की संभावना पैदा हो सकती है। अन्यथा हम सिर्फ समूहों और धर्मों में बंटे रहेंगे और आपस में झगड़ते रहेंगे। आध्यात्मिक रूप से कुछ हासिल नहींहोगा। जब तक आपके अंदर कुछ मूल्यवान घटित नहीं होता तब तक आप बाहरी विश्व के लिए कोई बहुमूल्य चीज नहीं कर सकते। आप चाहे कुछ भी करें, आप अपने ही अंदर का गुण बाहर बाँटते हैं। आप चाहे इसे पसंद करें या न करें, यही सच्चाई है। आप जो हैं, वही आप सब जगह फैलाएँगे। अगर आपको विश्व की चिंता है तो सबसे पहले आपको खुद में परिवर्तन लाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

दुनिया को नहीं, खुद को बदलना ही योग है

योग यही तो है, “मैं खुद को बदलने के लिये तैयार हूँ।” यह दुनिया को बदलने के लिए नहीं है - आप स्वयं बदलने के लिये तैयार हैं। इस दुनिया में वास्तविक परिवर्तन तभी आएगा, जब आप बदलने के लिये तैयार हों। लेकिन जब आप कहते हैं, “मैं चाहता हूँ कि सभी दूसरे लोग बदलें” तब केवल संघर्ष होगा। अगर आप बदलने के लिये तैयार हैं, केवल तभी रूपांतरण होगा। यह स्व-रूपांतरण ही व्यक्ति और समाज को सच्ची खुशहाली तक ले जाएगा। यही सच्ची क्रांति है।