हम अपने जीवन को जिस तरीके से जीते हैं और जिन चीजों के पीछे भागते हैं क्या वे वाकई इस योग्य हैं? आज के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहें हैं कि हम क्या करें जिससे मन में चल रहे बेहूदा विचारों को खत्म किया जा सके।

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जिस व्यक्ति की जैसी संवेदनशीलता होती है, वह उसी के अनुसार जीवन का अनुभव कर पाता है। कुछ लोगों को खाने में बेहद आनंद आता है, जबकि कुछ को अपने शारीरिक सुख, कला, संगीत या फिर जीवन की किसी और अभिव्यक्ति में आनंद मिलता है। लेकिन ये बाहरी आनंद उनकी प्रकृति में ज्यादा देर तक नहीं रह पाता। स्थायी और टिकाऊ आनंद केवल वहीं है, जो सारे जीवन का स्रोत है। अफसोस की बात है कि बहुत कम ही लोग इस बुनियादी आयाम का अनुभव कर पाते हैं, जिन्हें हम ‘शिव’ के रूप में जानते हैं। शिव का आयाम ही वह पटल है, जिस पर इस अस्तित्व की सारी चीजें चित्रित की गई हैं। जीवन का यह खेल तभी तक अच्छा है, जब तक हम इसकी सीमाओं के बारे में जानते हैं। अगर हम अपनी सारी जिंदगी इसी में लगा देंगे तो एक दिन हम अपने जीवन पर पश्चाताप करेंगे। कुछ लोग भाग्यशाली हैं कि जीवन के शुरुआती दौर में ही उनके भ्रमजाल बिखर कर टूट गए। बाकी लोग अपने मृत्युशैया पर पहुंच कर यह महसूस करेंगे कि उन्होंने अपनी जिंदगी व्यर्थ बिता दी।

जीवन का यह खेल तभी तक अच्छा है, जब तक हम इसकी सीमाओं के बारे में जानते हैं। अगर हम अपनी सारी जिंदगी इसी में लगा देंगे तो एक दिन हम अपने जीवन पर पश्चाताप करेंगे।
मैं चाहता हूं कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए आप इस विषय पर सोचें। कल्पना कीजिए कि आपके पास जीने के लिए चंद मिनट ही बचे हैं। अब आप इस पर गौर करें कि अपने जन्म से लेकर अभी तक आपने क्या-क्या किया और जो किया, क्या वह किसी योग्य था? अगर आप इतने समझदार हैं कि आप इन सब चीजों पर अभी विचार कर सकते हैं तो आप अपनी जिंदगी को एक खूबसूरत तरीके से संवार सकते हैं। तब आप सिर्फ जिंदगी के रंगों को ही नहीं जान पाएंगे, बल्कि जीवन के स्रोतों को भी जान सकेंगे। वर्ना तो 90 फीसदी इंसान के मन में हर समय कुछ न कुछ मूर्खतापूर्ण व बेहूदा विचार चलते रहते हैं। शिक्षा तो आपको बस इतना सिखाती है कि दूसरों के सामने खुद को कैसे रखें, जबकि आध्यात्मिक प्रक्रिया सिखाती है कि आप खुद को अपने भीतर कैसे रखें। यह अपने भीतर की ओर मुड़ने और जीवन के जड़ को गहराई से जानने का मामला है। यह मन तभी उपयोगी है कि जब आप इसे चलाना और बंद करना जानते हों या इसके चलने या न चलने पर आपका नियंत्रण हो। अगर मन आपके नियंत्रण से बाहर होकर हर वक्त चलता रहता है तो यह एक तरह से पागलपन है। लेकिन दुनिया के ज्यादातर लोगों की यही हालत है।

आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है आपकी हर उस चीज को मिटा देना जिसके बारे में आपने कभी भी यह सोचा हो कि ‘यह मैं हूं’ - यहां तक कि आपके स्त्री या पुरुष होने के बोध को भी। यह इसलिए है कि आप यहां जीवन के एक अंश के रूप में रहें। यह केवल इंसान ही है, जिसे विकास का चरम माना गया है, लेकिन उसने खुद को बेहद बेतरतीब और अस्तव्यस्त बना डाला है। उसे एक मन दिया गया है, लेकिन उसे पता ही नहीं कि इसे कैसे संभाला जाए। उसके मन जो कुछ भी चल रहा है, वह वह उसके विचारों और भावनाओं की अंतहीन मनोवैज्ञानिक नाटक है। आपके जीवन की गुणवत्ता इससे तय होती है कि आप अपने भीतर कैसे हैं। इसे कोई दूसरा नहीं देख सकता, जरुरत भी नहीं है कि कोई दूसरा व्यक्ति इसे जाने व समझे या इस पर ध्यान दे। लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है।

इस संदर्भ में ‘शिव शंभो’ का जाप आपके लिए चमत्कार कर सकता है। आप शिव के आने की उम्मीद मत कीजिए। वह आपके जीवन में दखलंदाजी नहीं करेंगे। यह कोई धार्मिक प्रक्रिया नहीं है। यह एक ध्वनि को एक औजार की तरह इस्तेमाल करने की प्रक्रिया है, जो आपके मन में चल रहे बेहूदा विचारों को खत्म कर सकती है। अगर आप प्रभावशाली तरीके से ‘शिव शंभो’ का जाप करेंगे तो आपको एक नई ऊर्जा, अनंत कृपा और बुद्धिमत्ता उपलब्ध होगी।

https://soundcloud.com/sadhguru/shiva-shambho-chant-by-sadhguru