अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर बच्चों और सैनिकों को उप-योग की भेंट
इस स्पॉट में सद्गुरु एक अत्यंत सरल योग अभ्यास उप-योग के बारे में बता रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर ईशा फाउंडेशन द्वारा स्कूली बच्चों को उप-योग भेंट किया जाएगा। जानते हैं उप-योग के महत्व के बारे में।
बच्चों और सैनिकों पर फोकस है इस साल
इस योग दिवस पर हमारा फ़ोकस देश के बच्चों और सेना के जवानों तक पहुँचने का है। हालाँकि हमारे पास इसका कोई ठोस आँकड़ा तो नहीं है कि पिछले एक साल में कितने सैनिकों ने अपनी जान गँवाई, लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि केवल साल 2015 में भारत में लगभग दस हज़ार बच्चों ने आत्महत्या की, जिसमें से लगभग पंद्रह सौ बच्चे चौदह साल से कम उम्र के थे।
पिछले साल हमने देश भर के लगभग पैंतीस हज़ार स्कूलों तक पहुँच कर उनके बच्चों को योग का एक सहज रुप सिखाया। हालाँकि भारत जैसे विशाल देश में पैंतीस हज़ार स्कूल – एक बहुत ही छोटी सी संख्या है। हम लोग योग के जिस सहज व आसान से स्वरूप – ‘उप-योग’ को सिखाते हैं, वे ना सिर्फ़ सीखने-सिखाने में आसान है, बल्कि उसका अभ्यास भी आसान है। बड़े पैमाने पर बच्चों तक पहुँचने के लिए प्रक्रिया आसान होनी चाहिए। उप-योग का एक मक़सद अपने भीतर संतुलन को स्थापित करना है। बुनियादी तौर पर आत्महत्या का कारण है कि इंसान के भीतर भावनाओं के बड़े- बड़े ज्वार उठते हैं, जिसके चलते उसे महसूस होता है कि जीने की अपेक्षा मरना ही बेहतर है। अनेक लोंगों के जीवन में ऐसे कई मौक़े आए, जब कुछ चीज़ें वाक़ई गड़बड़ हुईं और वे भावनात्मक रूप से इतने अव्यवस्थित हुए कि उन्हें लगा कि वो ख़ुद को ख़त्म ही कर लें। लेकिन वो क्षण गुज़र गए और उन्होंने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया। दुर्भाग्य से कुछ लोगों के जीवन में भावनात्मक ज्वार इस हद तक उभरा कि उन्होंने वास्तव में आत्मघाती क़दम उठा लिया।
हालाँकि भारत में आत्महत्याओं की कोशिश के वास्तविक आँकड़े के बारे में पता लगना तो मुश्किल है, क्यूँकि यहाँ कोई इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि उसने ऐसी कोई कोशिश की थी। इसकी एक वज़ह है कि कुछ समय पहले तक अपने यहाँ आत्महत्या की कोशिश अपराध मानी जाती थी, जिसके लिए एक साल तक की जेल की सज़ा हो सकती थी। और ये सज़ा असफलता के लिए थी, जो अपनी कोशिश में सफल हो गए, उन्हें वे सज़ा नहीं दे सकते। अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है तो उसे प्यार, करुणा, व देखभाल की ज़रूरत होती है, न कि सज़ा की। यह एक अफ़सोसनाक सच्चाई है कि जिन बच्चों को जीवन की ऊर्जा व आनंद से भरपूर होना चाहिए, वे अपना जीवन लेने की सोच रहे हैं।
शिक्षा व्यवस्था के लिए बच्चों को तैयार करना होगा
इस दिशा में जो सबसे महत्वपूर्ण काम किए जाने की ज़रूरत है, वो है अपनी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने की और उसे फिर से तैयार करने की। लेकिन ये कोई एक दिन का काम नहीं है, इसके लिए समर्पित लोगों की ज़रूरत है।
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हमारी शिक्षा व्यवस्था अपने कठिन पाठ्यक्रम की वज़ह से नहीं, बल्कि जिस तरह से संचालित हो रही है, उसके चलते अमानवीय हो उठी है। मुझे लगता है कि पाठ्यक्रम काफ़ी आसान है। बच्चों को अपनी सीमाओं से परे जा कर ख़ुद की क्षमता को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके प्रमुख मुद्दे है - किस तरह से यह संचालित हो रही है और कौन इसे संचालित कर रहा है। जब कोई व्यक्ति आनंदमय होता है तो आप उसे जितना चाहें खींच सकते हैं और फिर भी वह ठीक रहता है। जब आपको पता नहीं होता कि उन्हें कैसे ख़ुश रखा जाए और तब आप खींचते हैं तो वे टूट जाते हैं।
बच्चों को सरल योग सिखाने की जरुरत है
बच्चों को इस लायक बनाने के लिए हमें उन्हें योग के आसान से रूप को सिखाने की ज़रूरत है, जो आसानी से न सिर्फ़ सीखा व सिखाया जा सके, बल्कि आसानी से उसका अभ्यास भी किया जा सके।
उप-योग योग की सावधानी पूर्वक तैयार की गई एक ऐसी विधा है, जो बच्चों के शारीरिक व मनोवैज्ञानिक विकास में मदद करती है। सबसे बड़ी बात, इसका ज़ोर बच्चों में भावनात्मक संतुलन लाने पर रहता है। यह सिर्फ़ उनमें आत्महत्या की त्रासदी को नहीं रोकेगा, बल्कि इसके ज़रिए बच्चे कई अलग रूपों में अपनी प्रतिभा, क्षमता व बुद्धिमत्ता की भी खोज कर सकते हैं। अधिकतर लोगों में उनकी प्रतिभा, क्षमता व कौशल का एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही इस्तेमाल हो पाता है, क्यूँकि भावनात्मक तौर पर वे लोग पर्याप्त रूप से संतुलित नहीं होते। वे हमेशा भयभीत रहते हैं, कि उदासी, दुःख, पीड़ा, निराशा या अवसाद उन पर कभी भी हावी हो सकते हैं।
बिना संतुलन के अगर आप सायक़िल चलाने जैसा आसान सा काम भी करते हैं तो उसमें भी आपको संघर्ष करना पड़ता है। आप जीवन में जो कुछ भी करते हैं, उन सब पर भी यही बात लागू होती है। अगर अपने भीतर ज़रूरी संतुलन होगा तो आप कई चीज़ें एक साथ कर सकते हैं। यह एक बुनियादी चीज़ है, जिसे हमें कम उम्र में ही सबके जीवन में लाने की ज़रूरत है। हमें कम उम्र में ही अपने भीतर मानसिक व भावनात्मक संतुलन लाने की ज़रूरत है। बिना संतुलन के अगर आपमें ज़बरदस्त क्षमता हो तो वो भी बिना इस्तेमाल के रह जाती है, क्योंकि आपमें पीड़ा का डर बना रहता है। अगर पच्चासी फ़ीसदी मानवता अपनी क्षमताओं का पूरी गहराई व प्रबलता से इस्तेमाल नहीं कर पाती तो इसकी वजह सिर्फ़ इतनी है कि उनमें ज़रूरी भावनात्मक संतुलन की कमी होती है।
सैनिकों के लिए सरल योग साधन उपलब्ध कराये जाएंगे
सैनिकों के लिए भी भावनात्मक रूप से संतुलित होना उतना ही ज़रूरी है। देश को बचाने व उसकी रक्षा करने में काफ़ी तकलीफ़ उठानी पड़ती है। हर दिन आप मर सकते हैं। हालाँकि एक न एक दिन हम सभी को मरना है। कुछ लोग यह भी कहते हैं- 'एक सैनिक होने में क्या बड़ी बात है, उससे ज़्यादा तो लोग सड़कों पर मरते हैं।' लेकिन दोनों में सबसे बड़ा फ़र्क़ है कि जो लोग सड़क हादसे में मरते हैं, वे यह सोच कर घर से बाहर नहीं निकलते कि कोई उन्हें मारने की कोशिश कर रहा है। अगर आपको पता हो कि कोई आपको मारने की कोशिश कर रहा है और फिर आप वो सब करते हैं, जो आपको करना है तो यह पूरी तरह से अलग चीज़ है। इसीलिए हम अपने देश के सैनिकों को सहज योगिक उपकरणो से युक्त करना चाहते हैं, ताकि वे उसकी मदद से ख़ुद के भीतर खुशहाली और संतुलन ला सकें।
हमारे बच्चों, हमारे सैनिकों, हमारे अधिकारियों, हमारे राज नेताओं व अन्य नेताओं - सभी को योग के शानदार उपकरण मिलने चाहिएं। देश को योग की ज़बरदस्त संभावनाओं का लाभ उठाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौक़े पर योग को अपने जीवन व और अपने परिवेश में लाएँ।
संपादक की टिप्पणी:
*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:
21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया
*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है: