श्री महाकालेश्वर - परम मुक्ति के दाता
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु, शिव के महाकाल स्वरुप के बारे में, और समय, भौतिक प्रकृति और शून्य के सम्बन्ध के बारे में बता रहे हैं। वे परम मुक्ति में महाकाल के महत्व के बारे में, और साथ ही उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के अनेक पहलूओं के बारे में भी बता रहे हैं।
उज्जैन में दो दिन में शुरू होने वाला महान सिंहस्थ कुम्भ मेला महाकालेश्वर मंदिर से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, महाकाल मंदिर राजा चंद्रसेन द्वारा बनाया गया, जो शिव के महान भक्त थे। राजा चंद्रसेन के नेतृत्व में उज्जैन– जो उस समय अवंतिका के नाम से जाना जाता था – ज्ञान, भक्ति और अध्यात्म का गढ़ बन चुका था। ये करीब-करीब दूसरे काशी की तरह था। हमेशा की तरह, कुछ ऐसे लोग थे, जिन्हें यह सब पसंद नहीं था। वे लोग इस नगर को ही ध्वस्त कर देना चाहते थे और इसी मकसद से उन्होंने हमला कर दिया।
राजा के सामने प्रशासन संबंधी समस्याएं होती हैं, सीमाओं को संभालने और उन्हें बढ़ाने की भी उसकी जिम्मेदारी होती है। पर, अपने राज्य की तमाम संपदा का उपयोग, राजा चन्द्रसेन ने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए करना शुरू कर दिया था। जाहिर है, उनकी सेनाएं बहुत शक्तिशाली नहीं थीं। तो जब इस तरह का हमला हुआ तो उन्हें लगा कि युद्ध करने का कोई फायदा नहीं है।
महाकाल शिव, या वो जो नहीं है, का एक रूप है। काल का एक मतलब होता है वक्त, अंधकार, या शून्य। इन तीनों के लिए एक ही शब्द का उपयोग किया गया है, क्योंकि - अभी समय का आपको जो अनुभव है, वह पूरी तरह से भौतिक है, जिसका मतलब है, चक्रीय है। एक परमाणु से लेकर पूरे ब्रह्माण्ड तक, हर वस्तु चक्रों में चल रही है।
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तो जब यह धरती एक चक्कर पूरा कर लेती है, तो हम उसे एक दिन कह देते हैं। चंद्रमा धरती का एक चक्कर लगा लेता है तो हम उसे एक महीना कह देते हैं। धरती सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, इसे हम एक साल कह देते हैं। जैसे सोना - जागना, खाना - पाचन आदि सब कुछ चक्रों में होता है। अगर कोई चक्रीय गति न होती, तो कोई भौतिकता न होती, औरआप समय को नहीं समझ पाते। यह समय का एक पहलू है - कि समय भौतिक अस्तित्व के जरिए अभिव्यक्त हो रहा है।
यह भौतिक अस्तित्व एक बड़े अनस्तित्व व शून्यता की गोद में घटित हो रहा है, जिसे अंग्रेजी में हम ‘स्पेस’ कहते हैं। यहां हम उसे काल या अंधकार कहते हैं। स्पेस को काल या अंधकार कहा जा सकता है क्योंकि स्पेस अंधकारमय है। अगर आप प्रकाश देखना चाहते हैं तो आपको प्रकाश के स्रोत को देखना होगा या आपको वह चीज देखनी होगी जो प्रकाश को रोकती है।
सूर्य हमारे लिए प्रकाश का स्रोत है। चंद्रमा प्रकाश को परावर्तित कर देता है। बीच में सब कुछ अंधकार ही है। प्रकाश इस अंधकार से गुजर रहा है - नहीं तो यह चंद्रमा तक कैसे पहुंचता - हां, आप उसे देख नहीं सकते। जो हम नहीं देख सकते, वो हमारे लिए अंधकार है। इसलिए स्पेस को अंधकार कहा गया है।
समय, अंधकार और स्पेस, इन्हें एक शब्द से इसलिए परिभाषित किया जाता है, क्योंकि वे एक ही हैं। स्पेस का अनुभव - दो बिंदु और उनके बीच एक दूरी का अनुभव सिर्फ समय की वजह से संभव है।
भौतिकता का अस्तित्व केवल चक्रीय गतियों के कारण ही है। सम्पूर्ण आध्यात्मिक इच्छा मुक्ति प्राप्त करने के बारे में है। मतलब आप भौतिकता से आगे बढऩा चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, आप इस प्रकृति के चक्रीय स्वभाव से आगे बढ़ जाना चाहते हैं। जीवन की बार-बार की प्रक्रिया से परे चले जाने का मतलब है, अपनी तमाम बाध्यताओं से परे चले जाना। यह बाध्यताओं से जागरूकता की ओर की यात्रा है।
एक बार जब आप बाध्यता से चेतनता की ओर जाते हैं, तो आप समय के भौतिक चक्रों के सीमित अनुभव से, उसके भौतिकता से परे के अनुभव पर चले जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो आप समय को महाकाल के रूप में अनुभव करते हैं। महाकाल वो गोद है, जिसमें सृष्टि घटित होती है। बड़ी आकाशगंगाएं भी इस शून्य की विशालता में छोटे कण हैं। ये शून्य महाकाल है।
इस पूरे ब्रह्मांड में निन्यानवे फीसदी से ज्यादा हिस्सा खाली है। अगर आप इस जगत के सीमित कणों के साथ उलझे हुए हैं, तो आप समय को चक्रीय गति के तौर पर अनुभव करेंगे। इस पहलू को संसार कहा जाता है। अगर आप इससे आगे निकल जाते हैं तो आप वैराग्य बन जाते हैं। इसका मतलब है कि आप पारदर्शी हो गए हैं, आप जीवन की बाध्यताओं से या जीवन की चक्रीय गति से मुक्ति पा चुके हैं। चक्रीय गति से मुक्ति पाना परम मुक्ति है।
तो जो लोग मुक्ति पाना चाहते हैं, उनके लिए यह पहलू जिसे हम महाकाल कहते हैं, बड़ा ही महत्वपूर्ण हो जाता है। उज्जैन के महाकाल मंदिर में जिस लिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई है, उसकी प्रकृति बेहद असाधारण है। यह आपके अस्तित्व की जड़ें हिलाकर रख देगा। इसके एकमात्र लक्ष्य यह है, कि यह आपको किसी तरह से विसर्जित कर दे।
हर दिन महाकाल को जो भेंट अर्पित की जानी चाहिए वह है - श्मशान से लाई गई ताजा राख, क्योंकि उन्हें यही सबसे ज्यादा पसंद है। वह जैसे हैं, उन्हें वैसा बनाए रखने में इसका बड़ा योगदान है। मैंने सुना है कि कुछ आंदोलनकारी अब श्मशान से लाई गई राख का विरोध कर रहे हैं। दुर्भाग्य से वे गाय का गोबर उपयोग में ला रहे हैं। देखते हैं कि इस परंपरा को वापस लाने के लिए क्या किया जा सकता है, क्योंकि यह परंपरा केवल संस्कृति से जुड़ा हुआ मामला नहीं है, यह वैज्ञानिक मामला है। अगर आप इन्हें अनुभव के स्तर पर परखें, तो श्मशान से लाई गयी राख और किसी अन्य तरह की राख में बहुत बड़ा अंतर है।
यह बेहद महत्वपूर्ण है कि पुरानी परंपरा को ही वापस लाया जाए, क्योंकि महाकाल का स्वभाव यही है। उनकी उपस्थिति में सब कुछ विसर्जित हो जाता है। सब कुछ जल कर राख बन जाता है। आप भौतिकता से मुक्त हो जाते हैं। यह आपको उस परम मुक्ति की ओर धकेलता है।
अगर आप इसे कोमल तरीके से करना चाहते हैं, तो उसके लिए ध्यानलिंग है। अगर आप जबरदस्त तरीके से धकेले जाना चाहते हैं, तो उसके लिए महाकाल हैं। ईशा एक विशेष ट्रेन का प्रबन्ध कर रही है, जो तमिल नाडू से उज्जैन तक, कुछ हज़ार लोगों को सिंहस्थ मेले के लिए ले जाएगी। मेरी कामना है कि वे इस संभावना का, खुद के एक अंश को महाकालेश्वर की उपस्थिति में विसर्जित करने के लिए उपयोग करें।