गुढीपाडवा और उगादी : नव वर्ष की शुरुआत
आज हिन्दू नव वर्ष है। चंद्रसौर कैलेंडर के अनुसार 'युगादि' नए वर्ष की शुरुआत है। भारत के लोग सदियों से इस कैलेंडर का अनुसरण करते आ रहे हैं।
पढ़ते हैं सद्गुरु का उगादी संदेश जिसमें सद्गुरु उगादी और गुढीपाडवा का विज्ञान समझा रहे हैं कि क्यों इस दिन को हमारी परंपरा में नव वर्ष की शुरुआत माना जाता है।
चंद्रसौर कैलेंडर के अनुसार उगादी या गुढीपाडवा नए वर्ष की शुरुआत है। भारत के लोग सदियों से इस कैलेंडर का अनुसरण करते आ रहे हैं। पूरब से उभरने वाली बाकी सभी चीजों की तरह, यह कैलेंडर भी इस बात को महत्व देता है कि मानव शरीर और उसकी चेतनता पर इसका क्या असर पड़ता है।
पृथ्वी का झुकाव कुछ इस तरह है कि उगादी या गुढीपाडवा से शुरू होकर 21 दिनों तक उत्तरी गोलार्ध को सूर्य की उर्जा सबसे अधिक मिलती है। हालांकि तापमान के बढ़ने के कारण यह समय थोड़ा तकलीफदेह हो सकता है, लेकिन इसी समय पृथ्वी की बैटरियां चार्ज होती हैं। उगादी या गुढीपाडवा रात-दिन बराबर होने के बाद की पहली अमावस्या के बाद बढ़ते चंद्रमा का पहला दिन होता है, इसलिए यह एक नई शुरुआत का संकेत है।
उष्णकटिबंधीय इलाकों में साल के इन सबसे गरम दिनों की तैयारी के लिए यह परंपरा बनाई गई है कि लोग शीतल तेलों जैसे अरंडी का तेल, का इस्तेमाल करते हुए साल की शुरुआत करते हैं। जहां आधुनिक कैलेंडर ग्रह की गति के मुताबिक मानव-अनुभव को अनदेखा करते हैं, चंद्रमान-सौरमान पंचांग मनुष्य पर होने वाले असर और उसके अनुभवों को ध्यान में रखता है। इसलिए यह कैलेंडर अक्षांशों के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है।
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उगादी या गुढीपाडवा को सिर्फ किसी खास विश्वास या सुविधा की वजह से नव वर्ष के रूप में नहीं मनाया जाता, उसके पीछे एक विज्ञान है जो कई रूपों में इंसान की खुशहाली को बढ़ावा देता है। इस देश की संस्कृति में जो गहराई रही है, उसे आज बेकार माना जाता है क्योंकि कुछ दूसरे देश आर्थिक रूप से हमसे आगे निकल गए हैं। हम भी जल्दी ही आर्थिक रूप से विकसित हो जाएंगे, लेकिन इस देश की संस्कृति में जो गहराई है, वह चंद सालों में नहीं बनाई जा सकती, यह हजारों सालों की मेहनत का नतीजा है।
अपना नव वर्ष शुरू करने के लिए आप एक छोटी सी चीज कर सकते हैं कि जब आप अपना टेलीफोन उठाएं, तो सिर्फ 'हैलो', 'हाय' या कुछ और न कह कर 'नमस्ते', 'नमस्कार' या 'नमस्कारम' कहें। अपने जीवन में ऐसे शब्द बोलने का एक अपना महत्व है। ऐसा करने से दरअसल आप ईश्वर के आगे जो आपका बोलने का तरीका होता है, वही तरीका आप अपने आस-पास हर किसी के लिए भी इस्तेमाल करने लगते हैं। यह जीने का सबसे अच्छा तरीका है।
अगर कोई चीज आपके लिए पवित्र है और कोई चीज पवित्र नहीं है, तो आप असली बात से चूक रहे हैं। इस नव वर्ष को अपने लिए एक संभावना बनाएं ताकि आप हर मनुष्य में इस दिव्यता को पहचान सकें।