योग विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर की पांच परतें होतीं हैं। अन्नमय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञान मय कोष, आनंद मय कोष। अन्नमय कोष हमारा भौतिक शरीर होता है, और मनोमय कोष हमारे विचार। और प्राण मय कोष जीवन ऊर्जा होती है जिसे योग अभ्यासों के द्वारा स्पर्श किया जाता है। कैसे स्पर्श कर सकते हैं विज्ञान मय कोष को?

शरीर के चौथे कोष – विज्ञानमय कोष की प्रकृति

विज्ञानमय कोश बिल्कुल अलग प्रकृति का है। अंग्रेजी में इसके लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं है, इसलिए इसे आम तौर पर ईथरिक बॉडी (सूक्ष्म शरीर) या आध्यात्मिक काया कहते हैं। यह एक अस्थायी शरीर होता है क्योंकि यह स्थूल से सूक्ष्म प्रकृति में विचरण करता है। मध्यवर्ती स्थान या मध्यवर्ती स्थिति को व्योम या “विज्ञान” कहा जाता है।

विज्ञानमय कोष का रूपांतरण सदा के लिए होता है

यह वह आयाम है, जहां रूपांतरण होने पर वह वास्तव में हमेशा के लिए होता है। मान लीजिए, हमने आपके शरीर को योग करना सिखाया। यदि आप छह महीने तक आसन करें, तो आप शारीरिक, मानसिक और हर रूप में बेहतर महसूस करेंगे। लेकिन यदि आपने आगे के छह महीने उसे छोड़ दिया, तो आप एक बार फिर से अपनी पुरानी स्थिति में लौट आएंगे।

यह वह आयाम है, जहां रूपांतरण होने पर वह वास्तव में हमेशा के लिए होता है।
स्थूल शरीर के स्तर पर आप जो भी करेंगे, उसे आसानी से पलटा जा सकता है। यदि आप एक अलग नजरिये से जीवन को देखने के लिए अपने मन को तैयार करें, तो आपको महसूस होगा कि आपका नया जन्म हुआ है। लेकिन आप आसानी से अपने पुराने तरीकों पर लौट सकते हैं। आप शारीरिक और मानसिक स्तर पर जो भी करते हैं, उसे आसानी से पलटा जा सकता है यदि वह व्यक्ति उस दिशा में नहीं जाना चाहता। मान लीजिए आप प्राणायाम या क्रियाओं से प्राण ऊर्जा में बदलाव ले आते हैं, तो यह बदलाव अधिक समय तक चलेगा लेकिन कुछ समय बाद वह भी वापस हो जाएगा।

सिर्फ गुरु विज्ञानमय कोष को स्पर्श करता है, शिक्षक नहीं

यदि आप सूक्ष्म शरीर में जरूरी बदलाव लाते हैं, तो वह हमेशा के लिए होता है। यह जीवन और उसके आगे की दुनिया के लिए होता है, कुछ भी नहीं बदलता। एक गुरु और एक शिक्षक के बीच सिर्फ यही अंतर है, शिक्षक आपको ऐसे तरीके सिखाएगा जिनसे आप अपने अन्नमय कोश, मनोमय कोश और प्राणमय कोश को बदल सकते हैं लेकिन वह आपके विज्ञानमय कोश को स्पर्श नहीं कर सकता। गुरु विज्ञानमय कोश पर काम करता है। इस कोश को स्पर्श करने के बाद, सब कुछ पूरी तरह बदल जाता है क्योंकि यह बदलाव स्थायी होता है। यह शारीरिक आयाम से परे होता है और हमेशा स्थायी होता है।

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पांचवी परत – आनंदमय कोष

पांचवीं परत को आनंदमय कोश कहा जाता है, जिसका अर्थ है “आनंदपूर्ण शरीर”। क्या इसका अर्थ है कि आपके भीतर खुशी का एक बुलबुला बैठा हुआ है? नहीं, यह आयाम शरीर के परे है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी प्रकृति या स्वभाव आनंदमय है, बल्कि वह हमें आनंदमय बनाता है।
जो भी अदैहिक है, उसकी हम न तो व्याख्या कर सकते हैं, न उसका वर्णन कर सकते हैं, इसलिए हम सिर्फ अपने अनुभव से उसके बारे में बात कर सकते हैं। हम सिर्फ यह जानते हैं कि जब हम उसे स्पर्श करते हैं, तो हम आनंदित हो जाते हैं। इसलिए अपने अनुभव से हम कहते हैं कि यह आनंदपूर्ण काया या शरीर है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उसकी प्रकृति या स्वभाव आनंदमय है, बल्कि वह हमें आनंदमय बनाता है।

हमारा अनुभव आनंदमय बनाता है ये कोष

उदाहरण के लिए, यदि आप चीनी के बारे में बात कर रहे हैं, तो आप कहते हैं कि वह मीठी है। मिठास चीनी का स्वभाव नहीं है। मिठास वह अनुभव है, जो वह आपके भीतर उत्पन्न करती है। जब आप उसे अपने मुंह में रखते हैं, तो आपको उसका स्वाद मीठा लगता है, इसलिए आप उसे मीठा कहते हैं। ठीक इसी तरह, आनंद हमारी सबसे अंदरूनी परत का स्वभाव नहीं है। वह शारीरिक नहीं है, जो भी चीज शरीर की सीमा से आगे है, हम उसकी व्याख्या या वर्णन नहीं कर सकते, इसलिए हम बच्चे की भाषा में बोलते है। मान लीजिए यहां एक स्पीकर सिस्टम है, और एक बच्चा आकर उसे छूता है। वह नहीं जानता कि वह क्या चीज है, इसलिए वह कहता है, “बूम बूम बूम”। अमेरिका में उसे बूम बॉक्स कहते हैं। यह एक बच्चे की भाषा है। इसी तरह, इसे आनंदमय शरीर कहना बच्चे की भाषा है। हम उसके बारे में बात करते समय उसकी प्रकृति की नहीं, अपने अनुभव की बात करते हैं।

इसे स्पर्श करने के लिए तीनों भौतिक शरीर संरेखित होने चाहिए

अगर शरीर के तीन स्थूल या भौतिक आयाम सीध में नहीं हैं, तो आप कभी इस अंतरतम को स्पर्श नहीं कर सकते। योग इन तीनों को सीध में लाना है ताकि आप अंतरतम तक पहुंच सकें। एक बार इसे स्पर्श करने के बाद, आप स्वभाव से ही आनंदित हो जाएंगे।

अगर शरीर के तीन स्थूल या भौतिक आयाम सीध में नहीं हैं, तो आप कभी इस अंतरतम को स्पर्श नहीं कर सकते। योग इन तीनों को सीध में लाना है ताकि आप अंतरतम तक पहुंच सकें।
आनंदित होना पूरी तरह स्वाभाविक हो जाता है। आप अपनी जिन्दगी के हर क्षण में उत्साहित और आनंदित हो सकते हैं। सबसे बढ़कर, जब आप जीवन के अदैहिक आयाम को स्पर्श करते हैं, तभी आप आध्यात्मिक हो सकते हैं। यदि ये तीनों उपयुक्त सीध में हों, तो आपकी जीवन यात्रा पूरी तरह सहज हो जाती है और बिना किसी तनाव या खिंचाव के अपनी पूर्ण संभावना तक पहुंचती है। आप इस जीवन को इस तरह जी सकते हैं कि जीवन की प्रक्रिया आपके ऊपर एक भी खरोंच न डाल पाए। आप जिस रूप में चाहें, जीवन के साथ खेल सकते हैं लेकिन जीवन आपके ऊपर कोई खरोंच नहीं छोड़ सकती। हर मनुष्य इस तरह जीने में समर्थ है।

इसे स्पर्श करने में सभी बराबर समर्थ हैं

जब बाहरी हकीकतों की बात होती है, तो हममें से हर कोई अलग-अलग रूप में सक्षम है, लेकिन जब अंदरूनी सच्चाई की बात होती है, तो हम सब बराबर समर्थ हैं। लोग उसका लाभ इसलिए नहीं उठा पाते क्योंकि वे उस दिशा में कोशिश नहीं करते। वे कभी अंतर्मन की ओर ध्यान नहीं देते। वे हमेशा यह मानते हैं कि यदि हम बाहरी चीजों को ठीक कर लें, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन दुनिया के संपन्नि वर्ग इस बात को साबित करते हैं कि बाहरी चीजों को ठीक करना जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है। आपको अपने लिए भी कुछ करने की जरूरत होती है। अपने अंतरतम को ठीक करने के बाद, बाहरी स्थितियां चाहे जो हों, आप एक पूर्ण जीवन जी सकते हैं। यदि आपका अंतर ठीक नहीं है, तो चाहे बाहरी स्तर पर हम कोई भी उपलब्धि हासिल कर लें, सब कुछ व्यर्थ हो जाता है। लोग बहुत मेहनत से कामयाबी हासिल करते हैं लेकिन फिर उन्हें कामयाबी को सहन करना पड़ता है। वे वहां तक पहुंचने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, लेकिन एक बार वहां तक पहुंचने के बाद, वे उसका आनंद नहीं उठा पाते, वे उसे सहन करते हैं क्योंकि अंतर की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता।

जीवन की गुणवत्ता भीतरी स्थिति से निर्धारित होती है

यह समझने के लिए मनुष्य को एक खास जागरूकता की जरूरत होती है कि उसके जीवन का मूल तत्व, उसके जीवन की गुणवत्ता बाहरी चीजों से तय नहीं होती बल्कि उसके अंतरतम से निर्धारित होती है। इसका पूरी तरह गलत अर्थ निकाला गया है।

यह समझने के लिए मनुष्य को एक खास जागरूकता की जरूरत होती है कि उसके जीवन का मूल तत्व, उसके जीवन की गुणवत्ता बाहरी चीजों से तय नहीं होती बल्कि उसके अंतरतम से निर्धारित होती है।
लोगों ने यह मान लिया कि यदि आपको आध्यात्मिक राह पर चलना है, तो आपको सभी बाहरी चीजों का त्याग करना होगा। यह छोड़ने या न छोड़ने की बात नहीं है। चाहे आप आध्यात्मिक हों या नहीं, आप सांस लेते हैं, खाना खाते हैं और पानी पीते हैं। आप सिर्फ यही चुन सकते हैं कि आप अच्छा खाना खाते हैं या खराब खाना। इसलिए यह त्यागने या छोड़ने की बात नहीं है। यह अपने ध्यान को दूसरी तरफ ले जाना है, जहां आप देख सकें कि यदि आपने अपने अंतरतम को सही तरीके से नहीं संभाला, तो आपके जीवन की गुणवत्ता अच्छी नहीं हो सकती।

बिना भीतरी आनंद के सब व्यर्थ हो जाता है

आपके जीवन की गुणवत्ता इससे तय नहीं होती कि आप कैसे कपड़े पहनते हैं, कौन सी कार चलाते हैं या किस तरह के घर में रहते हैं। यह इससे तय होती है कि आप अंदर से कितने शांत और आनंदित हैं। यही मूल रूप से आपके जीवन की गुणवत्ता है। बाकी हर चीज वहां पहुंचने के लिए की जाती है। यदि ऐसा नहीं होता, तो बाकी सब कुछ व्यर्थ हो जाता है।