स्वाधिष्ठान चक्र : देवी-देवताओं को रचने की महारत देता है
सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि स्वाधिष्ठान वो केंद्र है जिसका इस्तेमाल बच्च पैदा करने के लिए या फिर देवी देवताओं को रचने के लिए किया जाता है। जानते हैं इस चक्र के अनेक पहलूओं के बारे में।…
स्व-अधिष्ठान का मतलब है स्व यानी आत्म का घर या निवास। वैसे सातों चक्रों को पूरी तरह से अलग-अलग करके देखना गलत होगा। ये सात आयाम एक दूसरे में गुंथे हुए हैं, वास्तव में आप उन्हें अलग नहीं कर सकते।
स्वाधिष्ठान और मूलाधार आपस में जुड़े हैं
जब कोई व्यक्ति अपने मूलाधार पर महारत हासिल कर लेता है तो वह या तो एक स्थिर देह(शरीर) पा लेता है, या एक खास तरह की मादकता(नशा) या आनंद वाला अनुभव हासिल करता है, या फिर अपने बोध को ऊंचे स्तर पर ले जाता है। अगर व्यक्ति ने इसका इस्तेमाल सिर्फ स्थिरता के लिए किया तो स्वाधिष्ठान पुर्नजनन (बच्चे पैदा करना) और सुख का एक मजबूत स्थान बन जाता है। अगर व्यक्ति ने मूलाधार का इस्तेमाल मादकता(नशे) की अवस्था के लिए किया तो स्वाधिष्ठान एक खास तरह से शरीर के न होने का भाव दिलाने वाला मजबूत स्थान बन जाता है। यहां शरीर के न होने का मतलब हल्की हवा की तरह होना नहीं है, बल्कि शरीर से थोड़ी दूरी बनाना है। चूंकि बाकी शरीर की तुलना में स्वाधिष्ठान ऊंचे दर्जे के आनंद में स्थापित हो जाता है, इसलिए शरीर से थोड़ी दूरी बन जाती है। ऐसे में स्व को लेकर एक खास तरह की मिठास आएगी, और शरीर में एक तरह का हल्कापन आ जाएगा। यह चीज लोगों को उन शारीरिक वासनाओं से आजादी दिलाती है, जो आमतौर पर इंसानों में मौजूद रहती है।
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स्वाधिष्ठान साधना शारीरिक विवशताओं से मुक्ति दिलाती है
अगर किसी व्यक्ति ने अमृत (मूलाधार साधना से प्राप्त पीनियल ग्लैंड का रस) का इस्तेमाल अपने बोध को बढ़ाने के लिए किया है तो फिर स्वाधिष्ठान भी उसी तरह से काम करता है और आगे चलकर इस संभावना को और बढ़ाता है।
स्वाधिष्ठान का सबसे निचला और सबसे ऊंचा स्तर
अगर आपका स्वाधिष्ठान एक खास तरीके से स्थापित हो तो आपकी सृजन (क्रिएट) करने की क्षमता बढ़ जाती है। सबसे निचले स्तर पर इसका काम विशुद्ध तौर पर प्रजनन (बच्चे पैदा करना) करना है। इसके सबसे ऊंचे स्तर पर अगर आप चाहें तो ईश्वर का सृजन कर सकते हैं। अब इस चीज को बेहद सावधानीपूर्वक देखे जाने की जरूरत है। यह एक सृष्टि के सृजन की बात नहीं है। आप उसे रच सकते हैं, जिसे आप ईश्वर मानते हैं। बहुत से लोग जिन्होंने देवी-देवताओं की रचना की, उन्हें लगा कि एक देवता काफी हैं और उसके बाद उन्होंने अपना सबकुछ उसी को दे दिया और यहां से चले गए, या उन्होंने उसे अपना सब कुछ दे दिया और मंद पड़ गए। कुछ लोगों ने आगे कुछ और करने की संभावना को बचाकर रख लिया। अगर आपका स्वाधिष्ठान सक्रीय है तो आप एक बच्चे को जन्म दे सकते हैं या फिर एक ईश्वर को रच सकते हैं। आप एक ईश्वर को रचने के बाद भी अपनी रचने की ताकत तभी बनाए रख सकते हैं - जब आपके बाकी छह चक्र भी उतने ही सक्रिय हों।
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स्वाधिष्ठान के इस तरह के इस्तेमाल की प्रक्रिया बेहद जटिल और शानदार है। यह चीज कर्मकांडों से भी की जा सकती है, यह प्रक्रिया शरीर के इस्तेमाल से या विशुद्ध ऊर्जा के प्रयोग से भी हो सकती है। इस तरह से इसे करने के ये तीन अलग-अलग तरीके हैं। आमतौर पर तंत्र में तीन बुनियादी चीजें होती हैं। ये तीनों चीजें निम्न, मध्य व उच्च के नाम से जानी जाती हैं। इसके अलावा, इन्हें कौल, मिश्र और समय भी कहा जाता है। अगर आपका अपने सिस्टम पर कोई नियंत्रण नहीं है - तब आप किसी और चीज का इस्तेमाल करते हैं, जिसके जरिए आप एक खास स्तर की ऊर्जा पैदा करते हैं, जो आपकी अपेक्षा काफी ऊंचे स्तर पर काम करती है तो उसे एक दैवीय तत्व कहा जा सकता है।
स्वाधिष्ठान से जुड़े प्रयोग खतरनाक हो सकते हैं
इस सिस्टम में हम जितना कुछ भी कर सकते हैं, उसमें स्वाधिष्ठान चीजों को करने का सबसे जटिल और खूबसूरत तरीका है। लेकिन इसके साथ ही यह चीजों को करने का व्यक्तिगत तौर पर खतरनाक तरीका है, क्योंकि अगर आप बहुत ज्यादा इस पर काम करेंगे या फिर इस पर से अपना नियंत्रण(कण्ट्रोल) खो देंगे, तो हो सकता है कि आपके पास एक सुंदर स्व (आत्म) हो, लेकिन शरीर नहीं होगा। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहां स्वाधिष्ठान व मणिपूरक के मेल ने लोगों के लिए बेहद सुंदर नतीजे पैदा किए हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने लगभग मरने जैसी हालत से बाहर निकलकर फिर से बेहद जोशीले अंदाज में जीवन जिया। हमारा रिजुवनेशन सेंटर कुछ हद तक यह काम कर रहा है। लेकिन ये सब कई चीजों की वजह से जैसे - तरह-तरह के उपचार, तेल, पदार्थों, दवाओं, सिद्ध व आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों, धातु व अन्य कई तरह की चीजों के चलते हो रहा है। वैसे यह एक जटिल प्रक्रिया है, पर हम लोग इसका एक आसान स्वरूप कर रहे हैं। चूंकि इस काम में बहुत सारे लोग लगे हुए हैं, इसलिए हम इसके जटिल आयाम में नहीं जाना चाहते। लेकिन बेहतर तरीका तो यही होगा कि आप अपने मूलाधार व स्वाधिष्ठान को खुद अपने आप सक्रिय व जाग्रत कर लें। फिर शरीर खुद को ठीक कर लेगा, क्योंकि ये शरीर के बुनियादी आधार होते हैं। तो मूलाधार और स्वधिष्ठान - इन दोनों सिद्धांतों की काफी विस्तार से खोज की गई। अफसोस यह है कि योग के सारे सिद्धांतों में से मूलाधार दुनिया के बाजार में अपनी पहुंच बनाने में सबसे कामयाब रहा। इससे आप कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे दूसरे लोग प्रभावित हो सकें। इससे आप कुछ ऐसा भी कर सकते हैं, जो आगे चलकर किसी बड़े काम का आधार बन सके। हालाँकि मुझमें उसके लिए धैर्य नहीं है। यहां तक कि मूलाधार में आप मिट्टी व जड़ी-बूटियों का प्रयोग भी कर सकते हैं, क्योंकि जड़ी बूटियां उसी की उपज हैं। लेकिन स्वाधिष्ठान में मोटे तौर पर अग्नि व आकाश तत्व का इस्तेमाल होता है। इन चीजों का इस्तेमाल करके व्यक्ति में कुछ खास तरह की खूबियां आती हैं, जिससे बाहरी चीजें आपको छू नहीं पातीं।
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