सच्चा प्यार क्या होता है?

सद्‌गुरु: अंग्रेज़ी कहावत 'फॉलिंग इन लव' (प्यार में पड़ना) काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि प्यार में कोई ऊँचा नहीं उठता, न ही ऊपर चढ़ता है। हर कोई प्यार में गिरता है क्योंकि आप जो कुछ भी हैं, उसका कोई भाग तो चला ही जाता है। अगर आप पूरे के पूरे खत्म न भी हों तो भी कम से कम आपका एक हिस्सा तो खत्म हो ही जाता है। तभी कोई प्रेम प्रकरण हो सकता है। किसी दूसरे के लिये आप अपना कुछ हिस्सा खत्म करने को तैयार हैं। इसका सीधा - साधा मतलब ये है कि आपके लिये, खुद की तुलना में, कोई दूसरा ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। पर, दुर्भाग्य से, जिसे ज्यादातर लोग प्यार कहते हैं, वो सिर्फ आपस में लाभ उठाने की एक योजना भर है।

आप प्यार में पड़ते हैं क्योंकि आप जो कुछ भी हैं, उसका कोई भाग तो चला ही जाता है।

एक दिन शंकरन पिल्लै बगीचे में गया। वहाँ, पत्थर की बेंच पर एक सुंदर लड़की बैठी थी। वो उसी बेंच पर जा कर बैठ गया। कुछ मिनटों बाद वो लड़की के थोड़ा पास खिसका। वो दूर हो गयी। वह कुछ देर रुका और फिर थोड़ा नज़दीक खिसका। ऐसा करते-करते लड़की बेंच के सिरे तक पहुँच गयी। तब उसने आगे बढ़ कर अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया। लड़की ने उसको धक्का दे कर अलग किया। वो थोड़ी देर वहाँ ऐसे ही बैठा रहा, फिर अपने घुटनों के बल बैठ गया और एक फूल तोड़ कर उसको देते हुए बोला, "मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, मैं तुम्हें ऐसे प्यार करता हूँ, जैसा मैंने कभी किसी को नहीं किया है"।

लड़की नरम पड़ गयी। कुदरत ने अपना काम किया और वो दोनों एक दूसरे के नज़दीक आ गये। फिर जब शाम ढल रही थी तो शंकरन पिल्लै उठ कर खड़ा हुआ और बोला, "अब मुझे जाना चाहिये। आठ बज गये हैं और मेरी पत्नी मेरा इंतज़ार कर रही होगी"।

वो बोली, "क्या? तुम जा रहे हो? अभी तो तुमने कहा था कि तुम मुझे प्यार करते हो"!

"हाँ, पर अब वक्त हो गया है और मुझे जाना चाहिये"।

सामान्य रूप से, हम अपने रिश्ते इस तरह से बनाते हैं जो हमारे लिये आरामदायक और फायदेमंद हों। लोगों की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, आर्थिक या सामाजिक ज़रूरतें होती हैं। इन ज़रूरतों को पूरा करने का सबसे अच्छा तरीका ये हो गया है कि हम लोगों से कहें, "मैं तुम्हें प्यार करता/करती हूँ"। ये तथाकथित प्यार किसी मंत्र के जैसा हो गया है - खुल जा सिमसिम जैसा! इसे कह कर आप वो पाने की कोशिश करते हैं, जो आप चाहते हैं।

हर वो काम जो हम करते हैं वो बस कुछ खास ज़रूरतें पूरी करने के लिये करते हैं। अगर आप ये समझते हैं, तो एक संभावना है कि आप अपने स्वाभाविक गुण से प्यार में आगे बढ़ सकते हैं। पर, लोग अपने आपको ये भरोसा दिला कर बेवकूफ बनाते रहते हैं कि उन्होंने जो रिश्ते अपनी सुविधा, खुशहाली और आराम के लिये बनाये हैं, वह प्यार के रिश्ते है। मैं ये नहीं कह रहा कि उन रिश्तों में प्यार का कोई अनुभव नहीं होता पर ये कुछ सीमाओं के अंदर ही रहता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बार, कितना ज्यादा "मैं तुम्हें प्यार करता/करती हूँ" कहा है। अगर कुछ आशायें और ज़रूरतें पूरी नहीं होतीं तो सब कुछ टूट सकता है।

बिना शर्त के प्यार कैसे करें?

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आप जब प्यार के बारे में बात करते हैं तो ये बिना किसी शर्त के होना चाहिये। वैसे देखें तो सशर्त प्यार और बिना शर्तों के प्यार जैसी कोई चीज़ नहीं होती। बात बस ये है कि एक तरफ शर्तें होती हैं और एक तरफ प्यार। जैसे ही कोई शर्त तय कर ली जाती है तो ये प्यार नहीं रह जाता, लेन-देन का सौदा हो जाता है। हो सकता है कि ये कोई सुविधाजनक सौदा हो, शायद एक अच्छी व्यवस्था हो - शायद बहुत से लोगों ने जीवन में बहुत अच्छी व्यवस्थायें बना ली हैं - लेकिन ये आपको संतुष्टि नहीं देगा। ये आपको एक अलग आयाम में नहीं पहुँचायेगा। ये बस सुविधाजनक होगा।

अपने बाहर आप जो कुछ भी करते हैं, वो बहुत सी बातों पर आधारित होता है। पर, प्यार एक अंदरूनी व्यवस्था है - आप अपने अंदर कैसे हैं, ये ज़रूर बिना शर्त के हो सकता है।

आप जब 'प्यार' के बारे में बात करते हैं तो ज़रूरी नहीं कि ये सुविधाजनक हो। ज्यादातर ये नहीं ही होता। यह पूरा जीवन ले सकता है। प्यार कोई बहुत महान या बढ़िया चीज़ नहीं है, कि आप इसे करें। ये आपको एक तरह से खत्म कर देता है। अगर आपको प्यार में बस होना है, रहना है, तो बेहतर होगा कि आप ये न करें। अगर आप गिरने को, सब कुछ खोने को तैयार हैं तो ही ये हो सकता है। अगर आप इस प्रक्रिया में ख़ुद को, अपने व्यक्तित्व को मजबूत बनाये रखते हैं, तो ये बस एक सुविधाजनक स्थिति है। बस, इतनी सी ही बात है। हमें समझना चाहिये कि एक सौदा क्या है और एक सच्चे प्यार का मामला क्या है? ये प्यार का मामला किसी एक खास व्यक्ति के साथ हो, ये कोई ज़रूरी नहीं है। आप एक महान प्रेम-प्रकरण में हो सकते हैं, किसी खास व्यक्ति के साथ नहीं, पर जीवन के साथ!

आप क्या करते हैं क्या नहीं, ये आपकी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। बाहरी परिस्थितियों की मांग के अनुसार हमारे काम होते हैं। अपने बाहर आप जो कुछ भी करते हैं वो बहुत सी बातों पर आधारित होता है। पर, प्यार एक अंदरूनी व्यवस्था है - आप अपने अंदर कैसे हैं, ये ज़रूर बिना शर्त के हो सकता है।

उदार भाईयों की कथा

Mमेरी परदादी मुझे बहुत सी कहानियाँ सुनाती थी - ये कहानी मुझे याद रह गयी है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि ये कहानी मेरे जीवन का आधार है, पर निश्चित रूप से इसने कई तरह से मुझ पर असर डाला है। एक आदमी अपनी पत्नी के साथ रहता था। उन दिनों आदमी ही खेतों में काम करते, फसलें उगाते और पैसे कमाते थे। और जिनके लड़के होते थे, वे और ज्यादा ज़मीन पर काम कर सकते थे। उसके दो लड़के थे। वे दोनों मजबूत, जवान हो गये थे और अपने पिता के साथ कड़ी मेहनत करते थे। उन्होंने अपनी ज़मीन काफी बढ़ा ली और वे अमीर हो गये। जब वो आदमी काफी बूढ़ा हो गया तो उसने एक दिन अपने दोनों बेटों से कहा, " मैं किसी भी समय मर सकता हूँ, तुम दोनों ये एक बात हमेशा बनाये रखना। मेरे मरने के बाद, तुम दोनों इस सारी ज़मीन की फसल को 50% पर ही बाँटना। इस बारे में कभी कोई चर्चा, विवाद या झगड़ा नहीं होना चाहिये।

फिर, वो बूढ़ा मर गया और उसके बेटों ने उसकी बात का खयाल रखा। उन दिनों, भारत में, और संसार के कई भागों में भी, ज़मीन बाँटने का रिवाज़ नहीं था। सिर्फ फसल बाँटी जाती थी, ज़मीन नहीं। तो, दोनों भाई पैदा हुई फसल को आपस में बराबर-बराबर बाँट लेते थे।

उनमें से एक की शादी हुई और उसके 5 बच्चे हुए। दूसरे ने कभी शादी नहीं की। पर फिर भी वे फसल को बराबर हिस्सों में ही बाँटते थे। एक दिन उस बिन शादी किये हुए भाई के दिमाग में कीड़ा घुसा। उसने सोचा, "मेरे भाई की पत्नी भी है और उन्हें 5 बच्चे भी हैं। मैं तो अकेला हूँ। फिर भी मैं 50% लेता हूँ और उसे भी 50% ही मिलता है। ये ठीक नहीं लगता। पर ये हमारे पिता की इच्छा थी। और मेरा भाई इतना स्वाभिमानी है कि अगर मैं उसको कुछ ज्यादा देने की कोशिश करूँगा तो वो नहीं लेगा। तो, मुझे कुछ और करना चाहिये। जब फसल कट गई और बँटवारा हो गया तो वो हर रात को अपने हिस्से में से अनाज की एक बोरी ले कर भाई के गोदाम में रख आता।

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उधर, उसके भाई के सिर में भी वैसा ही कीड़ा घुसा और उसने सोचा, "मेरे 5 बच्चे बड़े हो रहे हैं और कुछ सालों में मेरे पास बहुत कुछ होगा। मेरे भाई के साथ कोई नहीं है। वो बाद में क्या करेगा? पर वो सिर्फ 50% लेता है और मैं भी उतना ही लेता हूँ। मैं अगर उसे ज्यादा देने की कोशिश करूँगा तो वो नहीं लेगा"। तो उसने भी हर रात को अपने हिस्से में से ले कर एक बोरी भाई के गोदाम में रखना शुरू किया। इस तरह रोज अनाज का लेन-देन चलता रहा और लंबे समय तक दोनों को इसका पता नहीं चला।

वे धीरे-धीरे बूढ़े हो रहे थे पर फिर भी यही करते रहे। एक दिन, रात को वे जब एक दूसरे के गोदाम में बोरी रख रहे थे तो आमने-सामने आ गये। दोनों ने एक दूसरे को देखा और अचानक उन्हें पता चला कि इस सारे समय में क्या हो रहा था! पर उन्होंने तेजी से एक दूसरे पर से अपनी आँख हटा ली और अपनी अपनी बोरी जहाँ रखनी थी, वहाँ रख आये और अपने-अपने घर जा कर सो गये। इसी तरह समय बीतता रहा और फिर वे बूढ़े हो कर मर गये।

बाद में, उस गाँव के लोग एक मंदिर बनाना चाहते थे और उसके लिये अच्छी जगह ढूँढ रहे थे। लंबी खोज के बाद उन्होंने तय किया कि मंदिर बनाने के लिये सबसे अच्छी जगह वो थी जहाँ ये दोनों भाई उस रात अपनी पीठ पर अनाज की बोरी लादे हुए मिले थे, और अपनी खुद की उदारता पर शर्मिंदा हुए थे। अगर आप इस तरह जीते हैं तो आप एक जीवंत मंदिर हैं। फिर आपके लिये बिना शर्तों के प्यार, सशर्त प्यार और ऐसी सब बातों का कोई मतलब नहीं है।

कृतज्ञता से भरे

अगर आप ये नहीं गिनते कि आपने कितना और क्या दिया है, पर हमेशा ये याद रखते हैं कि आपको क्या मिला है तो आप स्वाभाविक रूप से कृतज्ञता से भरे रहेंगे। "मैंने कितना कुछ किया है", ये बकवास छोड़ दीजिये। अगर आप किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते तो आप अपनी ज़िंदगी आराम से जियेंगे। अगर आप किसी से कोई उम्मीद लगा कर बैठे हैं या अपने आप से ये पूछ रहे हैं कि लोग आपको प्यार करते हैं या नहीं, तो फिर ये समस्यायें खड़ी हो जाती हैं। अगर आप किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते और वे आपके लिये कुछ करते हैं, तो ये उनके लिये ही अद्भुत होगा। और अगर वे नहीं करते, तो भी क्या समस्या है?

मैंने कितना कुछ किया है", ये बकवास छोड़ दीजिये। अगर आप किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते तो आप अपनी ज़िंदगी आराम से जियेंगे।

रिश्ता एक सौदे की तरह है। इसे अच्छी तरह चलाने के लिये कुछ खास कुशलतायें चाहियें, नहीं तो ये खराब हो जाता है। आपने देखा होगा कि कैसे किसी के साथ एक दिन आपका रिश्ता बहुत अद्भुत होता है, और उसी के साथ किसी दूसरे दिन ये बेहद खराब हो जाता है।

दुर्भाग्य से, बहुत से लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि एक रिश्ता किसी सौदे की तरह होता है। इसके लिये कुछ शर्तें हैं, कुछ मूल नियम हैं। अगर आप इन नियमों और शर्तों के अंदर रहते हैं तो ही आप रिश्ते को सफलतापूर्वक चला सकते हैं। अगर आपके पास हवाई विचार हैं, जैसे, हमारा रिश्ता बिना शर्त का है, तो एक दिन ये टूट जायेगा।

प्यार जीवन का नाज़ुक आयाम है

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मैं रिश्तों को कम कर के नहीं आँक रहा हूँ, उन्हें छोटा या बेकार नहीं समझ रहा हूँ। पर, इसमें कुछ भी गलत नहीं है अगर हम इसकी सीमितताओं को देखें। इसके लिये वाकई सीमायें हैं पर इसका मतलब ये नहीं है कि इसमें कोई सुंदरता नहीं है। एक फूल इतना सुंदर होता है, पर अगर मैं इसे मसल दूँ तो ये दो दिन में खाद बन जायेगा। मैं किसी फूल को एक पल में नष्ट कर सकता हूँ पर इससे क्या फूल की सुंदरता खत्म हो जायेगी, क्या उसका कोई महत्व नहीं रहेगा? नहीं ! इसी तरह आपका प्यार बहुत नाजुक है। इसके बारे में मनमाने विचार न रखें। साथ ही, इसमें जो सुंदरता है, मैं उससे इंकार नहीं कर रहा।

पर, अगर आप जीवन के इतने नाज़ुक आयाम को अपने जीवन का आधार बना रहे हैं, तो आप हर समय चिंता में डूबे रहेंगे क्योंकि आप एक नाज़ुक फूल पर बैठे हैं। मान लीजिये, आप अपना मकान ज़मीन पर नहीं बल्कि एक फूल पर बनाते हैं क्योंकि ये बहुत सुंदर है, तो आप हमेशा डर में रहेंगे। मैं बस इसी संदर्भ में बात कर रहा हूँ। प्यार क्या है? वो जो भी है, हम उससे इंकार नहीं कर रहे।

प्यार - एक ज़रूरत के रुप में

एक स्तर पर, अगर आप इसे इस तरह देखें - मैं इसे पूरी तरह एक सामान्य बात नहीं बनाना चाहता, पर बहुत से लोगों के लिये ये ऐसा ही है - प्यार बस एक और ज़रूरत है जिसके बिना वे जीवन नहीं जी सकते। जैसे, शरीर की अपनी जरूरते हैं, भावना की भी अपनी जरूरत है। जब मैं कहता हूँ, "मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता", तो ये उस बात से कुछ ज्यादा अलग नहीं है कि "मैं एक बैसाखी के बिना नहीं चल सकता"! अगर कोई हीरों से जड़ित बैसाखी हो तो आप बहुत जल्दी उसके प्यार में पड़ सकते हैं। और, अगर आपने उस बैसाखी का दस साल तक उपयोग किया हो और फिर मैं आपसे कहूँ " अब तुम उस बैसाखी के बिना चल सकते हो" तो, आप ज़रूर कहेंगे, "मैं अपनी बैसाखी को कैसे छोड़ सकता हूँ"? इसमें जीवन की कोई बात नहीं है। इसी तरह से, प्यार के नाम पर आप अपने आपको अंदर से अधूरे और बेबस बना लेते हैं।

...प्यार के नाम पर आप अपने आपको अंदर से अधूरे और बेबस बना लेते हैं।

तो क्या इसका मतलब ये है कि इसमें कोई सुंदरता नहीं है और इसका कोई दूसरा आयाम नहीं है? है! ऐसे बहुत से लोग हुए हैं जो इस तरह से जिये कि वे एक दूसरे के बिना नहीं जी सकते थे। अगर वाकई ऐसा हो कि दो लोग वास्तव में एक हो जाएँ, तो ये बहुत ही अद्भुत है।

एक रानी के प्यार की कहानी

भारत में, राजस्थान में, एक राजा के साथ ऐसा हुआ। उसकी युवा पत्नी उससे बहुत प्यार करती थी और उसके लिये पूरी तरह से समर्पित थी। पर, उन दिनों, राजाओं की बहुत सी रखैलें भी हुआ करतीं थीं। तो उस राजा को ये लगता था कि रानी का उसके लिये इस तरह आकर्षित रहना बेवकूफी था। वैसे उसे इसमें मजा भी आता था और उसका इस तरह ध्यान देना पसंद भी था, पर कभी-कभी ये बहुत ज्यादा हो जाता था। तब वो उसे थोड़ा बहुत झटक देता और दूसरी औरतों के साथ लग जाता। लेकिन फिर भी रानी उसके लिये ही समर्पित थी।

उन राजा-रानी के पास दो मैनायें थीं। मैना, गर्म प्रदेश की चिड़िया है और अच्छी तरह प्रशिक्षित होने पर तोते से भी बेहतर बोल सकती है। एक दिन, उनमें से एक मैना मर गयी, और दूसरी बिना कुछ खाये, बस ऐसे ही बैठी रही। राजा ने उसे खिलाने की बहुत कोशिश की पर वो मैना कुछ भी नहीं खा रही थी, और फिर दो दिनों में वो भी मर गयी।

इसका राजा पर बहुत असर हुआ। "ये क्या है? हर किसी के लिये ये स्वाभाविक है कि वो अपने जीवन की सबसे पहले परवाह करे, पर ये मैना बस ऐसे ही बैठी रही और मर गयी"।

जब उसने ऐसा कहा तो रानी  बोली, "जब कोई किसी को वास्तव में बहुत प्यार करता है तो उसके लिये ये बहुत ही स्वाभाविक है कि वो दूसरे के साथ चला जाये, क्योंकि बाद में, उसके लिये जीवन का कोई मतलब नहीं रह जाता"।

तब राजा ने मजाक में पूछा, "क्या तुम्हारे साथ भी ऐसा है? क्या तुम भी मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो?

वो बोली, "हाँ, मेरे लिये भी ऐसा ही है"। राजा को इस बात पर बहुत मजा आया।

एक दिन राजा अपने दोस्तों के साथ शिकार करने गया। उसके दिमाग में अभी तक उस मैना का मरना और उसकी पत्नी का ये कहना कि उसके लिये भी वह सच था घूम रहा था। वो इसकी सच्चाई देखना चाहता था। तो उसने अपने कपड़ों को खून से सन दिया और सिपाही के साथ महल भेज दिया। उसने वहाँ बताया, "राजा को एक बाघ ने मार दिया है"। रानी ने उन कपड़ों को बिना आँख में आँसू लाये, बहुत आदर से लिया। उसने लकड़ियाँ मँगवाई और उनके ढेर पर राजा के कपड़े रखे और खुद भी लेट गयी। और उसने अपने प्राण छोड़ दिये।

लोगों को इस बात पर यकीन नहीं हुआ कि रानी बस इस तरह लेटी, और मर गयी। पर अब कुछ और नहीं हो सकता था तो उन्होंने उसका अंतिम संस्कार कर दिया। जब राजा को यह खबर मिली तो वो टूट गया। अपनी एक सनक पर उसने पत्नी के प्यार की परीक्षा लेनी चाही और वो वास्तव में मर गयी - उसने आत्महत्या नहीं की - वो बस चली गयी।

भारत में ऐसे बहुत से जोड़े हुए हैं कि अगर उनमें से एक मर जाता है तो दूसरा भी कुछ ही समय में मर जाता है, चाहे वो बिल्कुल स्वस्थ हो क्योंकि उनकी ऊर्जायें साथ-साथ बंधी होती हैं। अगर आप किसी दूसरे मनुष्य के साथ कुछ ऐसे खास तरह से बंधे हों कि दो जीव एक की तरह हों, तो जीने का ये अद्भुत तरीका है। ये कोई आखरी संभावना नहीं है पर फिर भी, जीवन का एक सुंदर तरीका है।

सच्चे प्यार का मतलब क्या है?

आज, जब लोग प्यार के बारे में बात करते हैं तो वे सिर्फ उसके भावनात्मक रूप के बारे में ही कह रहे होते हैं। भावनायें आज एक बात करती हैं तो कल दूसरी। आपने जब पहली बार रिश्ता बनाया था, तो आपको लगा, "ये हमेशा के लिये है" पर 3 महीनों में ही आप सोचते हैं, "मैं इस व्यक्ति के साथ क्यों हूँ"? इसकी वजह ये है कि ये सब मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं, इस पर आधारित हो कर चलता है। इस तरह के रिश्तों में आपको दुख ही होगा क्योंकि जब कोई रिश्ता अस्थिर है - ये कभी चले, कभी नहीं - तो आपको बेहद दर्द और दुख में से हो कर गुजरना होगा, जो ग़ैरज़रूरी है।

अगर आप हर चीज़ को प्यार से देख सकें, तो सारा संसार आपके अनुभव में सुंदर ही होगा।

प्यार करने का मतलब ये है कि दर्द न हो, जब कि दर्द के बारे में बहुत सारा काव्य लिखा गया है। आप प्यार में इसलिये पड़ते हैं कि ये आपको आनंद, शांति का अनुभव देता है। प्यार मकसद नहीं है, आनंद की अवस्था मकसद है। लोग किसी के साथ प्यार में पड़ने के बारे में पागल हो जाते हैं, जब कि वे कई बार चोट खा चुके होते हैं, क्योंकि जब उन्हें लगा कि वे प्यार में थे तो उनमें थोड़ी बहुत आनंदपूर्णता थी। प्यार आनंदपूर्णता की बस एक तरह से भौतिक अभिव्यक्ति है। आजकल ज्यादातर लोग आनंदपूर्ण होने की बस यही एक रीत जानते हैं।

पर, अपने स्वभाव से आनंदपूर्ण होने का भी एक तरीका है। आप अगर आनंदपूर्ण हैं तो प्रेमपूर्ण होना कोई समस्या नहीं है, आप किसी भी तरह से प्रेमपूर्ण ही होंगे। सिर्फ अगर आप प्यार के माध्यम से आनंदपूर्णता ढूंढ रहे हों, तो आप इस बारे में चयन करेंगे कि आप किसके साथ प्रेमपूर्ण रहें। पर, जब आप आनंदपूर्ण हैं तो आप चाहे कुछ भी देखें, किसी को भी देखें, आप उसके साथ प्रेमपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि किसी को फँस जाने का कोई डर नहीं है। जब फँस जाने का कोई डर नहीं होगा, तभी आप जीवन में शामिल होने की बात समझेंगे।

प्रेमपूर्ण होने की एक आसान प्रक्रिया

रोजाना 15 से 20 मिनट तक जा कर किसी ऐसी वस्तु के साथ बैठिये, जो आपके लिये कोई मायने नहीं रखती - चाहे वो कोई पेड़ हो, कोई कंकड़ या कीड़ा या कीटाणु! कुछ समय बाद आपको पता चलेगा कि आप उसको वैसे ही प्यार से देख सकते हैं जैसे आप अपनी पत्नी को या अपने पति को या अपनी माँ को या अपने बच्चे को देखते हैं। शायद उस कीड़े को कुछ भी पता नहीं है। पर इससे फर्क नहीं पड़ता। जब आप हर चीज़ को प्यार से देख सकें तो सारा संसार आपके अनुभव में सुंदर ही होगा। आपको पता चलेगा कि प्यार कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप करते हैं, ये आपका होने का ही तरीका है।

 

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