रिश्ते को उलझन बनने से कैसे रोकें?
एक युवा छात्रा सद्गुरु से जानना चाहती है कि हम अपने जीवन में कैसे अपने रिश्ते को संभालें कि वह हमारे लिए उलझन न बन जाए। सद्गुरु बता रहे हैं कि किसी गतिविधि के लिए कुछ ख़ास लोगों को चुनना स्वाभाविक है
छात्रा: सद्गुरु, आम तौर पर मुझे हर कोई अच्छा लगता है। जिससे मेरा कोई संबंध नहीं होता, उसमें भी मैं कुछ न कुछ अच्छाई ढूंढ लेती हूं। हर किसी के साथ ढेर सारा समय बिताती हूं, मगर समस्या यह नहीं है। एक निश्चित समय के बाद कुछ लोग बाकियों के मुकाबले हमें ज्यादा पसंद करने लगते हैं और धीरे-धीरे उनसे मेरा जुड़ाव होने लगता है। जब मैं मुड़ कर देखती हूं तो मुझे यह एहसास होने लगता है कि मैं उनके साथ अधिक समय बिताती हूं। हम कैसे समझें कि किसी रिश्ते को कब विराम देना है।
गतिविधि में लग अलग लोगों को चुनना होगा
सद्गुरु: चाहे आप हर चीज को एक नजर से देखते हों, लेकिन जब क्रियाकलाप की बात आती है तो निश्चित तौर पर कुछ खास लोगों के साथ हमारा मिलना-जुलना दूसरों के मुकाबले अधिक होता है।
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गुरु और पेड़ आपसे नहीं उलझेंगे!
मगर अब आप उलझने लगे हैं क्योंकि आप उनसे चिपके रहना चाहते हैं। हम चिपके रहना इसलिए चाहते हैं क्योंकि किसी न किसी रूप में हमें महसूस होता है कि हम अपने आप में काफी नहीं हैं।
सॉल्वेंट यानी घुलाने वाले पदार्थ की जरुरत है
आपको ऐसा बनना चाहिए। आपको हर संबंध और साथ का आनंद उठाना चाहिए मगर किसी चीज से चिपकने की जरुरत नहीं होनी चाहिए।
इसीलिए आध्यात्मिकता की जरुरत होती है, क्योंकि हम जो भी गोंद पैदा करते हैं, यह उसे घुला देता है। जब भी हम असुरक्षित महसूस करते हैं, हम एक तरीके से गोंद पैदा कर लेते हैं, जो हमें किसी भी चीज से चिपका देता है। मेरे पास सॉल्वेंट यानी घुलाने वाला पदार्थ है। आपको अपने भीतर इस आयाम को लाना होगा क्योंकि यही शरीर की प्रकृति है। शरीर में ऋणानुबंध नामक एक चीज होती है। क्या आपने यह शब्द सुना है? जब हम बड़े हो रहे थे, उस समय यह बहुत आम बात थी कि लोग रोजमर्रा की बातचीत में ‘प्रारब्ध’, ‘ऋणानुबंध’, ‘कर्म’, ‘मुक्ति’, ‘मोक्ष’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। इस देश में लोग अपने दैनिक जीवन में इन शब्दों को बोलते थे। आजकल सब कुछ ‘शिट! शिट! शिट!’ हो गया है। वाकई हम अपने आप को ऊपर उठा रहे हैं...!
याद्दाश्त को चेतनता में ढोना
ऋणानुबंध का मतलब है कि आपके शरीर की एक याद्दाश्त है। आपकी नाक ऐसी और उसकी नाक वैसी क्यों है? वह शरीर की याददाश्त से जुड़ी है।
यदि इस याददाश्त को आप जागरूकता में इस्तेमाल करें, तो यह मददगार साबित होती है - आप किसी चीज के बारे में सोचे बिना किसी चीज को पहचान सकते हैं। अगर आप आंखें बंद करके यहां बैठें और आपका कोई परिचित अंदर आए, तो आप आंखें मूंदे हुए ही जान जाते हैं कि वह व्यक्ति अंदर आया है। यह अच्छी बात है मगर समस्या यह है कि अचेतनता में इस याददाश्त को आगे ले जाने के कारण आप उस व्यक्ति के साथ उलझ जाते हैं। ऋणानुबंध कोई बुरी चीज नहीं है। उसे चेतनता में ढोना चाहिए- फिर आप अपने जीवन की कई स्मृतियों का आनंद उठा सकते हैं। वरना, हर याददाश्त एक उलझन बन जाती है, जो उलझाती है, और बंधन में डालती है। आप अपने जीवन में जिन यादों को इकट्ठा करते हैं, उन्हें आपके जीवन को समृद्ध बनाना चाहिए, मगर लोग उसे भारी बना देते हैं। उसे भारी मत बनाइए।