सद्‌गुरुएक युवा छात्रा सद्‌गुरु से जानना चाहती है कि हम अपने जीवन में कैसे अपने रिश्ते को संभालें कि वह हमारे लिए उलझन न बन जाए। सद्‌गुरु बता रहे हैं कि किसी गतिविधि के लिए कुछ ख़ास लोगों को चुनना स्वाभाविक है

 

छात्रा: सद्‌गुरु, आम तौर पर मुझे हर कोई अच्छा लगता है। जिससे मेरा कोई संबंध नहीं होता, उसमें भी मैं कुछ न कुछ अच्छाई ढूंढ लेती हूं। हर किसी के साथ ढेर सारा समय बिताती हूं, मगर समस्या यह नहीं है। एक निश्चित समय के बाद कुछ लोग बाकियों के मुकाबले हमें ज्यादा पसंद करने लगते हैं और धीरे-धीरे उनसे मेरा जुड़ाव होने लगता है। जब मैं मुड़ कर देखती हूं तो मुझे यह एहसास होने लगता है कि मैं उनके साथ अधिक समय बिताती हूं। हम कैसे समझें कि किसी रिश्ते को कब विराम देना है।

गतिविधि में लग अलग लोगों को चुनना होगा

सद्गुरु: चाहे आप हर चीज को एक नजर से देखते हों, लेकिन जब क्रियाकलाप की बात आती है तो निश्चित तौर पर कुछ खास लोगों के साथ हमारा मिलना-जुलना दूसरों के मुकाबले अधिक होता है।

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चाहे हम एक भावना से हर किसी को देखें, जब गतिविधि के अर्थों में जुड़ना होता है तो चुनाव होना स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
हम अपने भीतर संतुलित हो सकते हैं मगर हमारी सक्रियता हर इंसान के साथ अलग-अलग होती है। अगर मैं वॉलीबॉल खेलना चाहता हूं, तो मैं एक समूह के साथ खेलूंगा। अगर मैं टेबल टेनिस खेलना चाहता हूं, तो मैं बाहर से किसी को लाऊंगा। हम अलग-अलग तरह की चीजें करते हैं और उनके लिए कुदरती तौर पर चुनाव करते हैं। अगर आप कुछ पढ़ना चाहते हैं, तो आप किसी एक साथी के साथ जाएंगे। अगर आप खेलना चाहते हैं, तो आप दूसरे साथी के साथ जाएंगे। अगर आप कुछ और करना चाहते हैं तो आप तीसरे इंसान के साथ जाएंगे। इसकी वजह संतुलन की कमी नहीं, बल्कि उस व्यक्ति में एक खास योग्यता का होना है। चाहे हम एक भावना से हर किसी को देखें, जब गतिविधि के अर्थों में जुड़ना होता है तो चुनाव होना स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। जीवन ऐसे ही हो सकता है। 

गुरु और पेड़ आपसे नहीं उलझेंगे!

मगर अब आप उलझने लगे हैं क्योंकि आप उनसे चिपके रहना चाहते हैं। हम चिपके रहना इसलिए चाहते हैं क्योंकि किसी न किसी रूप में हमें महसूस होता है कि हम अपने आप में काफी नहीं हैं।

। जब आप किसी से जुड़ जाते हैं, तो वे आपको आकर पकड़ लेंगे। पेड़ और गुरु इस अर्थ में अच्छे हैं क्योंकि वे आकर आपको नहीं पकड़ेंगे। 
  देखिए मैंने यहां इतने सारे सुपारी के पेड़ आपके लिए लगाए हैं ताकि आप हर दिन एक पेड़ को गले लगा सकें। क्या आपने कभी ऐसा किया है? पेड़ को गले लगाने में अच्छी बात यह है कि आपको पेड़ से जुड़ाव हो जाएगा, मगर पेड़ आपसे नहीं जुड़ेगा। यह कितनी अच्छी बात है। इसीलिए मैं खुलेआम लोगों से कहता हूं, ‘आप मेरे प्रेम में पड़ सकते हैं, इसमें कोई परेशानी नहीं है। आप मुझसे लगाव रख सकते हैं, मगर मैं आपसे नहीं चिपकूंगा, चिंता मत कीजिए।’ इसका कोई खतरा नहीं है कि आप जा रहे हों और पेड़ आकर आपको पकड़ ले। जब आप किसी से जुड़ जाते हैं, तो वे आपको आकर पकड़ लेंगे। पेड़ और गुरु इस अर्थ में अच्छे हैं क्योंकि वे आकर आपको नहीं पकड़ेंगे। पेड़ आपके गले लगे बिना भी ठीक है। यह बहुत सुंदर चीज है कि उसे जो करना है, वह कर रहा है मगर हम प्रयोग से जानते हैं कि पेड़ को यह पसंद होता है कि कोई उसे गले लगाए या स्पर्श करे। 

सॉल्वेंट यानी घुलाने वाले पदार्थ की जरुरत है

आपको ऐसा बनना चाहिए। आपको हर संबंध और साथ का आनंद उठाना चाहिए मगर किसी चीज से चिपकने की जरुरत नहीं होनी चाहिए।

जब भी हम असुरक्षित महसूस करते हैं, हम एक तरीके से गोंद पैदा कर लेते हैं, जो हमें किसी भी चीज से चिपका देता है। मेरे पास सॉल्वेंट यानी घुलाने वाला पदार्थ है। 
 अगर आप समझना चाहते हैं कि लोगों और चीज़ों से चिपकने से कुछ समय बाद क्या होगा, तो कल्पना कीजिए कि मैं आज आपको सिर से पैर तक एक सुपरग्लू से ढक दूं। अब आप बाहर जाते हैं, आपको कोई चीज अच्छी लगी, इसका मतलब यह आपसे चिपक गई। इसके बाद आपने जाकर किसी और चीज को छुआ, वह भी आपसे चिपक गई। आपने पेड़ को गले लगाया, वह भी आपसे चिपक गया। आपने जो कुछ भी छुआ, सब कुछ आपसे चिपकता गया। चौबीस घंटे के अंदर आप बेकार चीजों का एक ढेर बन जाएंगे।

इसीलिए आध्यात्मिकता की जरुरत होती है, क्योंकि हम जो भी गोंद पैदा करते हैं, यह उसे घुला देता है। जब भी हम असुरक्षित महसूस करते हैं, हम एक तरीके से गोंद पैदा कर लेते हैं, जो हमें किसी भी चीज से चिपका देता है। मेरे पास सॉल्वेंट यानी घुलाने वाला पदार्थ है। आपको अपने भीतर इस आयाम को लाना होगा क्योंकि यही शरीर की प्रकृति है। शरीर में ऋणानुबंध नामक एक चीज होती है। क्या आपने यह शब्द सुना है? जब हम बड़े हो रहे थे, उस समय यह बहुत आम बात थी कि लोग रोजमर्रा की बातचीत में प्रारब्ध, ऋणानुबंध, कर्म, मुक्ति, मोक्ष जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। इस देश में लोग अपने दैनिक जीवन में इन शब्दों को बोलते थे। आजकल सब कुछ ‘शिट! शिट! शिट!’ हो गया है। वाकई हम अपने आप को ऊपर उठा रहे हैं...! 

याद्दाश्त को चेतनता में ढोना

ऋणानुबंध का मतलब है कि आपके शरीर की एक याद्दाश्त है। आपकी नाक ऐसी और उसकी  नाक वैसी क्यों है? वह शरीर की याददाश्त से जुड़ी है।

ऋणानुबंध कोई बुरी चीज नहीं है। उसे चेतनता में ढोना चाहिए- फिर आप अपने जीवन की कई स्मृतियों का आनंद उठा सकते हैं।
  यह याददाश्त सिर्फ जेनेटिक स्तर पर नहीं होती। आज अगर कोई आकर यहां बैठता है, तो कल अगर आप एक और सत्संग की घोषणा कर दें तो वह अनजाने में उसी जगह जाकर बैठेगा क्योंकि उस जगह से एक खास ऋणानुबंध हो जाता है। लोग सिर्फ इंसानों से नहीं जुड़ते। वे किसी भी चीज से जुड़ सकते हैं, क्योंकि शरीर जिन चीजों को स्पर्श करता है, उसके बारे में एक खास याददाश्त बना लेता है।

यदि इस याददाश्त को आप जागरूकता में इस्तेमाल करें, तो यह मददगार साबित होती है - आप किसी चीज के बारे में सोचे बिना किसी चीज को पहचान सकते हैं। अगर आप आंखें बंद करके यहां बैठें और आपका कोई परिचित अंदर आए, तो आप आंखें मूंदे हुए ही जान जाते हैं कि वह व्यक्ति अंदर आया है। यह अच्छी बात है मगर समस्या यह है कि अचेतनता में इस याददाश्त को आगे ले जाने के कारण आप उस व्यक्ति के साथ उलझ जाते हैं। ऋणानुबंध कोई बुरी चीज नहीं है। उसे चेतनता में ढोना चाहिए- फिर आप अपने जीवन की कई स्मृतियों का आनंद उठा सकते हैं। वरना, हर याददाश्त एक उलझन बन जाती है, जो उलझाती है, और बंधन में डालती है। आप अपने जीवन में जिन यादों को इकट्ठा करते हैं, उन्हें आपके जीवन को समृद्ध बनाना चाहिए, मगर लोग उसे भारी बना देते हैं। उसे भारी मत बनाइए।