हमारे शरीर हमारे पूर्वजों की देन हैं। क्या हमारे मन पर भी पूर्वजों का असर होता है? किन चीज़ों को हमारे पूर्वज प्रभावित करते हैं - ईशा योग केंद्र में आए एक चीनी साधक ने ऐसा ही एक सवाल पुछा सद्‌गुरु से...

चीनी प्रश्नकर्ता : सद्‌गुरु, मेरा सवाल है कि आज मैं जो भी हूं, वह क्या अपने खुद के कारण हूं या अपने माता-पिता अथवा अपने पूवर्जों की वजह से हूं? आज मैं जो हूं, ऐसा क्यों हूं? और मैं किस ओर जा रहा हूं? मैं इन्हीं सवालों को जानने के मकसद से ईशा योग केंद्र आया हूं। मैं इन सवालों का जवाब चाहता हूं। कृपया इन पर कुछ रोशनी डालिए।

सद्‌गुरुसद्‌गुरु : आपने अपने मौजूदा हालत के पीछे जिम्मेदार वजहों के अच्छे खासे विकल्प दिए हैं। खैर। आज आपका भौतिक स्वरूप जैसा भी है, उसके लिए निश्चित तौर पर हम इसकी जिम्मेदारी आपके माता-पिता और पूर्वजों पर डालेंगे। आप जिस तरह से भी खाते हैं, उसका दोष या आरोप भी हम आपके पूर्वजों पर डाल सकते हैं। लेकिन आप अभी क्या खाते हैं, उसके लिए आप अपने पूर्वजों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। आप जिस तरह से खाते हैं, उसका दोष आप पूर्वजों पर मढ़ सकते हैं, क्योंकि वह ऐसे ही चलता रहा और फिर आपके माता-पिता ने आपको वही तरीका सिखाया कि ऐसे खाया जाता है।

अगर आप अंग्रेजी नहीं जानते तो इसके लिए दोषी आपके माता-पिता और आपके पूर्वज हैं, क्योंकि उन्होंने भाषा के नाम पर आपको केवल चीनी सिखाई। लेकिन किसी भी भाषा में फिलहाल आप क्या सोच रहे हैं, इसका दोष आप अपने माता-पिता या पूर्वजों पर नहीं दे सकते।
इसलिए आप उसी तरह से खाने लगे, लेकिन जो आप खाते हैं उसमें आप अपनी पसंद रख सकते हैं। तब आप यह नहीं कह सकते, “चूंकि मेरे माता-पिता ये सब खा रहे थे, इसलिए मैं भी वही खा रहा हूं।”
ऐसा नहीं है। सिर्फ आप खाने के तरीके को लेकर उन्हें दोष दे सकते हैं, लेकिन क्या खाया जाए, इसका विकल्प हमेशा आपके पास है। सबसे पहली चीज जो आपकी मां ने आपको भोजन के रूप में दी होगी, वह अपना दूध होगा। इसलिए आप यह नही कह सकते कि “चूंकि मेरी मां ने मुझे यही पीना सिखाया है तो मैं यही पियूंगा।”

इसलिए आप जिस तरह से खाते-पीते हैं, उसका दोष आप किसी और पर डाल सकते हैं। हालांकि उस तरीके को भी हम चाहें तो बदल सकते हैं, फिर भी आप चाहें तो दूसरों को दोष दे सकते हैं, कि आपको कोई दूसरा तरीका सिखाया ही नहीं गया। लेकिन आप क्या खाएं, इसका विकल्प हमेशा आपके पास रहता है। कोई जरूरी नहीं कि आप भी वहीं सब खाएं, जो दूसरे चीनी लोग खाते हैं। आप कुछ अलग भी खा सकते हैं। लेकिन खाने के तरीके का क्या किया जाए, इसे तो हमने बचपन में सीखा था, जो एक खास तरीके से चला आ रहा है। इसी तरह, आप मुझसे अंग्रेजी में न बात करके चीनी में बात कर रहे है, इसके लिए आपके पूर्वजों को दोषी ठहराया जा सकता है। अगर आप अंग्रेजी नहीं जानते तो इसके लिए दोषी आपके माता-पिता और आपके पूर्वज हैं, क्योंकि उन्होंने भाषा के नाम पर आपको केवल चीनी सिखाई। लेकिन किसी भी भाषा में फिलहाल आप क्या सोच रहे हैं, इसका दोष आप अपने माता-पिता या पूर्वजों पर नहीं दे सकते।

हमारे भीतर क्या आया इसके लिए हम भले ही जिम्मेदार न हों, लेकिन हमारे भीतर से क्या बाहर जा रहा है यह विकल्प और जिम्मेदारी निस्संदेह हमारी है।
इसके लिए अकेले आप, सिर्फ आप ही जिम्मेदार है। हां, आप चीनी में सोच रहे हैं, इसके लिए जिम्मेदार आपके अभिभावकों को ठहराया जा सकता है, लेकिन आप जो सोच रहे हैं, उसके लिए आप ही जिम्मेदार हैं। इसके लिए आप किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते। यही बात आपकी भावनाओं और जीवन से जुड़ी हर चीज के साथ लागू होती है।

हमारे जीवन की कुछ बुनियादी बनावट या तंतु हमें अपने माता-पिता, अपने जींस आदि से मिलते हैं। लेकिन हमारा जीवन-तत्व, यानी हम जीवन को कैसे संचालित कर रहे हैं - यह खुद हम तय करते हैं।
हमारे भीतर क्या आया इसके लिए हम भले ही जिम्मेदार न हों, लेकिन हमारे भीतर से क्या बाहर जा रहा है यह विकल्प और जिम्मेदारी निस्संदेह हमारी है। हमारे भीतर जो भी आया, वो हमारा चयन नहीं था। ऐसा होता है, इसमें क्या कर सकते हैं? लेकिन हमें जो मिला, उससे अपने भीतर हम क्या तैयार करते हैं और क्या बाहर निकालते हैं, वो सौ फीसदी हमारा चयन होगा। आपको जो मिला, उससे आपने क्या तैयार किया और वो आपके भीतर से किस रूप में बाहर आया, इस सब के कुछ खास नतीजे होते हैं। जो भी आप सोचते हैं, उसका भी कुछ नतीजा होता है। आप अंग्रेजी में बोलें या चीनी में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आप जो भी बोलते हैं उसका एक खास परिणाम होता है और वह परिणाम आपका होता है, जिसके लिए आप अपने माता-पिता या पूर्वजों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।

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