Sadhguruभले ही आपका मस्तिष्क चाहे कितनी तरह की यादों से भरा हो, लेकीन मैं जानता हूं कि इस दुनिया में लोगों की याद्दाश्त बड़ी कमजोर है, परंतु उन सभी के शरीर की याद्दाश्त अद्भुत है। आपके शरीर को अभी भी सभी पुरानी बातें याद हैं। जैसे आपके परदादी की परदादी की नाक अभी भी आपके चेहरे पर विराजमान है। आपका शरीर वह सब नहीं भूला है। मैं दावे से कह सकता हूं कि आपका मस्तिष्क याद नहीं रख पाता कि आप की परदादी की परदादी कैसी थी। लाखों साल पहले आपके पूर्वज कैसे दिखते थे, यह आपके शरीर को आज भी याद है, लेकिन आपके मस्तिष्क को नहीं।

जहां तक गुणों और खूबियों को हजारों पीढ़ीयों में पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने की बात है तो उसमें दिमाग से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका शरीर की है। हो सकता है कि आज आप एक तरह से सोचते हों और कल दूसरी तरह से सोचने लगें। पर जरा इस पर गौर करें कि क्या यह संभव है कि आज आप एक तरह से दिखें और कल दूसरी तरह से। शारीरिक रूप से एक छोटे से बदलाव के लिए भी गंभीर किस्म की साधना की जरूरत पड़ती है।

इसीलिए योग शरीर अधिकतर शरीर पर केन्द्रित होता है

यही वजह है कि योग का अधिकांश हिस्सा शरीर पर केंद्रित होता है। यह केवल नए दौर का योग ही है, जो मन या मस्तिष्क पर केंद्रित होता है। दरअसल इसकी वजह है कि वे इंसान को सुखद अहसास कराना चाहते हैं। उनका मकसद इंसान के दीर्घ कालीन रूपांतरण की तरफ नहीं है। रूपांतरण का मतलब है कि जो चीज पुरानी है, उसे धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से खत्म कर दिया गया। जबकि बदलाव का मतलब है उसी चीज को नया रूप देना। मसलन आपकी नाक बदल दी जाए तो आप कुछ अलग या बदले हुए से दिखने लगेंगे, लेकिन इससे आपके भीतर कुछ नहीं बदलेगा। अगर आप अपना रवैया या व्यवहार बदल लें तो अचानक ही आप बदले हुए लगने लगेंगे, आप कुछ अलग महसूस करेंगे, लेकिन कुछ भी बदला नहीं है।

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ध्यानालिंग के आगे इमली का पेड़

दरअसल, योग कोई प्रसाधन कला नहीं है, बल्कि यह रूपांतरित करने वाला एक विज्ञान है। हम चीजों के मूल में काम करते हैं। साधना वो जरिया है, जो आपको आपकी असाधारण स्मृतियों से बाहर निकालता है। दरअसल, कोई व्यक्ति अगर अपने भीतर रूपांतरण चाहता है तो उसकी स्मृतियों को दुर्बल या क्षीण करना ही होगा। अन्यथा आपके दादा-दादी, उनके माता-पिता व आपके अन्य पूर्वज - मृत लोग बेहद लालची होते हैं - आपके जरिए इस दुनिया में रहने की कोशिश करेंगे। आपको मरे हुए लोगों को मरे की समान ही छोड़ देना चाहिए, अन्यथा वे लोग जमीन से निकल कर आपके जरिए इस दुनिया में बने रहेंगे। उन्हें आपके जरिए इस दुनिया में बने रहने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर वे आपके जरिए इस दुनिया में बने रहने में कामयाब हो जाते हैं तो आप अपने जीवन के बारे में कभी नहीं जान पाएंगे।

मुर्दों को मुर्दा रहने दें

अगर आपने अपने पूर्वजों को अपनी प्रणाली पर हावी होने दिया, तो आप मजबूरियों या विवशताओं का पुलिंदा बन जाओगे। अनजाने में ही आप कई तरह से उनकी तरह जीने लगते हैं। अगर आप अपने खुद के लक्षणों को ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि आप अपने ही माता पिता की कई आदतों को दोहरा रहे हैं। जब आप 18 साल के युवा होते हैं तो आप तय करते हैं कि मैं अपने माता पिता को नहीं दोहराउंगा, लेकिन 45 साल के होते-होते आप पाते हैं कि आप भी अपने माता की तरह बोलने, बैठने और उन्हीं की तरह बर्ताव करने लगे हैं। यह चीजें आपके साथ अपने आप होती हैं और इसमें महज आपकी मां के ही नहीं, बल्कि आपके नानी और परनानी की भी भूमिका होती है। अब समय आ गया है कि जो लोग दफना दिए गए हैं, उन्हें दफन ही रहना चाहिए। यही जीवन का तरीका है। जो जीवित हैं, उन्हें और जोश व उल्लास के साथ जीना चाहिए, लेकिन जो मर चुके हैं उन्हें दफन ही रहना चाहिए।

सिर्फ तीन कोषों तक हमारी पहुँच है

तो महत्वपूर्ण बात यह है कि साधना शारीरिक दृष्टि से बहुत अहम  है। शरीर के मायने सिर्फ हाड़-मांस भर नहीं है। इंसान के शरीर में पांच कोष होते हैं। साधना उन सभी कोषों पर काम करती है। शरीर की पहली तीन कोषों के लिए तो हम कुछ प्रक्रिया सिखाते हैं, जिनका आप अभ्यास करते हैं। लेकिन शरीर के बाकी दो कोषों हमारी पहुंच के बाहर हैं । मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि हमारी समस्या वह अज्ञात क्षेत्र है। हमें इस ज्ञात क्षेत्र में संघर्ष करना बंद करना चाहिए। आपकी मनोवैज्ञानिक स्थिति और भावनात्मक मूर्खता ही आपका ज्ञात क्षेत्र है। यह वह क्षेत्र है, जहां आपको काम करना है। ज्ञात क्षेत्र को आपको संभालना है और जो अज्ञात क्षेत्र है, वहां आपको मेरी जरूरत पड़ती है।

Love & Grace

फोटो - ईशा योग केंद्र में कालभैरव कर्म, अधिक जानकारी के लिए: kbprocess@lingabhairavi.org

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