सद्‌गुरुसद्‌गुरु बता रहे हैं कि राम का जीवन संघर्षों और युद्धों से भरा था। उनके जीवन में सब कुछ असफल होता चला गया, पर फिर भी हम उन्हें क्यों पूजते हैं? जानते हैं -


अगर आप किसी चीज़ को संभालना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले आपको अपने आपको समझना होगा। यदि आप अपनी प्रकृति का अनुभव नहीं करेंगे, तो संभालनाआपकी योजना के अनुसार नहीं होगी, आप उसे बस किसी तरह से मैनेज कर पाएंगे। अधिकांश व्यक्ति बस किसी तरह से मैनेज करतेहैं। वेठीक सिर्फ इसीलिए हैं क्योंकि उनके आसपास की परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, आसपास के लोग उनके साथ अच्छा बर्ताव कर रहे हैं। लेकिन अगर आसपास के लोग बुरा बर्ताव करने लगते हैं, और परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाती हैं, तो वे घबरा जाते हैं। ऐसे मनुष्य बहुत कम हैं जो किसी भी परिस्थिति के आ जाने पर वैसे ही बने रहते हैं, जैसे वे होते हैं। आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए।

क्या राम का पैदल चलना प्रैक्टिकल है?

मैं एक बार आंध्र प्रदेश के नेल्लोर नगर के विद्यार्थियों के एक बड़े समूह से बात कर रहा था। मैंने उनसे कोई प्रश्न पूछने को कहा। एक 14 वर्ष की छात्रा ने खड़े हो कर पूछा, "सद्‌गुरु कहा जाता है कि श्री राम अयोध्या से श्रीलंका पैदल गए थे। क्या यह प्रैक्टिकल है या सिर्फ एक कहानी?" मैंने उसकी तरफ देख के कहा, "देखो, तुम अभी छोटी बच्ची हो। कुछ सालों बाद तुम अपने लिए एक वर ढूँढोगी। क्या तुम चाहोगी कि तुम्हारा वर ऐसा हो, जो तुम्हारे खो जाने पर लंका तक पैदल चला जाए, या फिर ऐसा जो ये सोचे कि यह प्रैक्टिकल नहीं है, और अपने पड़ोस में ही प्रैक्टिकल सॉल्यूशन ढूंढ ले। तुम कैसा वर चाहोगी?" खैर, एक बच्ची भी जानती है कि उसका वर कैसा होना चाहिए।

जंगल में रहने का अनुभव

मैं यह प्रश्न इसलिए बीच में ला रहा हूँ क्योंकि,  मैं चाहता हूँ कि जो मैं बताने जा रहा हूँ, उसे आप सभी बिना किसी प्रतिक्रिया के ध्यान से सुनें। राम का जीवन एक आपदा है, दुर्घटनाओं का एक निरंतर सिलसिला है।

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हो सकता है कोई टीवी शो जंगल में जीवन जीने को किसी प्रकार के रोमांटिक प्रसंग के रूप में दिखाता हो। पर मैं आपको बता रहा हूँ कि जंगल में रहना कोई रोमांटिक अनुभव नहीं है।
एक ऐसे व्यक्ति जो राजकुमार के रूप में जन्मे हों, जिनका एक राजा के रूप में राज्याभिषेक हुआ हो, और हाल ही में जिनका विवाह अपनी युवा पत्नी से हुआ हो, किन्हीं राजनैतिक कारणों से जंगल में जा पहुचते हैं। हो सकता है कोई टीवी शो जंगल में जीवन जीने को किसी प्रकार के रोमांटिक प्रसंग के रूप में दिखाता हो। पर मैं आपको बता रहा हूँ कि जंगल में रहना कोई रोमांटिक अनुभव नहीं है। आप जानते हैं, मैं खुद कई हफ्ते जंगलों में अकेला रहा हूँ। जो कुछ भी जंगल में खाने को मिलता, उसी पर गुज़ारा करता था। 3-4 हफ़्तों बाद जब मैं जंगल से बाहर किसी नगर में आता था, तो लोग मुझे पहचान नहीं पाते थे। ऐसा ही होता था। तो एक युवा पत्नी – जो कोई आदिवासी नहीं थी, बल्कि एक राजकुमारी थी- के साथ जंगल में रहना बहुत कठिन रहा होगा। ये जानते हुए कि जंगल में रहना कितना कठिन होगा, छोटा भाई दोनों की मदद करने के लिए उनके साथ चल देता है।

राम ने अपने ही पुत्रों से युद्ध लड़ा

जैसे उतना काफी नहीं था, उनकी पत्नी का अपहरण हो जाता है–और वो श्रीलंका जा पहुंचती है। राम उदास हो जाते हैं, और अपनी प्रिय पत्नी को खोजते हुए पूरा सफर पैदल तय करते हैं।

वह वहां दो बालकों को जन्म देती हैं, जिसके बारे में राम को पता नहीं चल पाता। फिर वे अपने ही पुत्रों के साथ युद्ध लड़ते हैं।
उन्हें ये भी नहीं पता कि उनकी पत्नी जीवित है, या मर चुकी है, या किस दशा में है। वे पूरा सफर तय करते हैं, एक फ़ौज खड़ी करते हैं, समुद्र पार करते हैं, एक सुन्दर नगर को जला देते हैं, और बहुत सारे लोगों की जान ले लेते हैं। इस तरह वे अपनी पत्नी को प्राप्त करते हैं, और वापस घर लौटते हैं। अब उनकी पत्नी गर्भवती है। सोनोग्राम तो होता नहीं था, तो वह यह नहीं जानते कि लड़का है, या लड़की, या लड़के या लड़कियाँ या क्या है। एक राजा के लिए पुत्र का होना बहुत जरुरी होता था, क्योंकि उन्हें एक उत्तराधिकारी की जरुरत होती थी। मगर एक बार फिर, राजनैतिक कारणों से वह अपनी गर्भवती पत्नी को जंगल भेज देते हैं। वह वहां दो बालकों को जन्म देती हैं, जिसके बारे में राम को पता नहीं चल पाता। फिर वे अपने ही पुत्रों के साथ युद्ध लड़ते हैं। किसी के भी जीवन में सबसे बड़ी दुर्घटना ये हो सकती है कि जानबूझकर या अनजाने में वे अपने ही बच्चों की जान ले लें। इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं हो सकती, है न?

भगवान राम को क्यों पूजते हैं ?

राम के साथ लगभग ऐसी ऐसी चीजें हुई थीं। उन्होंने अपने बच्चों को लगभग मार ही डाला था। किसी तरह भाग्य से, या जो भी परिस्थिति रही होगी, उन्होंने अपने बच्चों को नहीं मारा।

राम के जीवन में निरंतर दुर्घटनाएं होती रहीं,लेकिन वे हमेशा संतुलित रहे–हम इस गुण को नमन करते हैं, क्योंकि यही गुण भीतरी मैनेजमेंट है, क्योंकि आप बाहरी परिस्थितियों को कण्ट्रोल नहीं कर सकते।
उन्होंने उनको मारने की पूरी कोशिश की थी, बिना जाने कि वे दोनों कौन हैं। उसके बाद सीता कभी उनसे दोबारा मिल नहीं पायीं, और वे मर गयीं। क्या आप इसे एक कामयाब जीवन कहेंगे? नहीं, लेकिन हम उनको पूजते हैं। फिर क्यों आप ऐसी असफलता को पूजते हैं? इसलिए क्योंकि उस मनुष्य ने कभी भी किसी भी परिस्थिति में क्रोध नहीं किया और न ही कभी अपने अंदर कड़वाहट पैदा की। उन्होंने कभी अपना संयम नहीं खोया। वे हमेशा अपना संतुलन सौ फीसदी बनाए रखते थे। उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों का जीवन भर पालन किया। उनके जीवन में मुसीबतें बराबर आती रहीं, लेकिन वे हमेशा स्थिर और परिस्थितियों से अछूते बने रहे – इन्ही गुणों के आगे हम झुकते हैं। हम उनके आगे इसलिए नहीं झुकते कि वे एक बहुत सफल व्यक्ति थे। लेकिन आप चाहे कुछ भी कर लें, आप उनकी भीतरी प्रकृति को उनसे अलग नहीं कर सकते। अगर इनमें से कोई एक दुर्घटना किसी के जीवन में घटित हो, तो अधिकतर लोग टूट जाएंगे। है न? इनमें से सिर्फ एक दुर्घटना किसी के जीवन में घटित हो तो वह दिमागी संतुलन खो बैठेंगे। राम के जीवन में निरंतर दुर्घटनाएं होती रहीं,लेकिन वे हमेशा संतुलित रहे–हम इस गुण को नमन करते हैं, क्योंकि यही गुण भीतरी मैनेजमेंट है, क्योंकि आप बाहरी परिस्थितियों को कण्ट्रोल नहीं कर सकते। अगर आप दुनिया में कुछ करना चाहें, तो आपको दुनिया से क्या मिलेगा इस पर आपका कोई कण्ट्रोल नहीं है। लेकिन आप उन परिस्थितियों को अपने जीवन में कैसे ढालते हैं, वह सौ फीसदी आपके ऊपर है।

भीतरी मैनेजमेंट अच्छी हो तो क्या फर्क पड़ता है

अगर हम अपनी राह में आने वाली परिस्थितियों से बचने की या उन्हें कण्ट्रोल करने की कोशिश करते हैं, तो हमारा जीवन बिना संभावनाओं के रुकावटों से भरा रहेगा।

अगर आपकी भीतरी मैनेजमेंट अच्छे तरीके से हो रही हो–अगर आप अपने विचारों को मैनेज करना जानते हैं, अपनी भावनाओ को मैनेज करना जानते हैं, अपने शरीर को मैनेज करना जानते हैं, अपनी केमिस्ट्री, अपनी ऊर्जा, अगर आप इन सभी को मैनेज करना जानते हैं–मैं पूछता हूँ कि अगर आप नरक में भी चले जाते हैं,तो क्या फर्क पड़ेगा?
अगर आप कल सुबह हो सकने वाली अनेक परिस्थितियों को कण्ट्रोल करने की कोशिश करेंगे तो, आप एक सीमित जीवन ही जी पाएंगे। आप बाहर की दुनिया में निडर होकर कदम तभी रखेंगे जब आप अपने अंदर स्‍पष्‍ट हैं कि–चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न आ जाये, मैं संयम से रहूँगा। है न? जब आप इसको लेकर सुनिश्चित हैं, तभी आप जीवन खुल के जी पाएंगे, अन्यथा आप एक अधूरा जीवन जीएंगे। अधिकांश लोग अधूरा जीवन जीते हैं क्योंकि उन्हें दुःख का भय रहताहै, "यदि ऐसा हुआ, तो मुझे क्या होगा? अगर वैसा हुआ तो मेरे साथ क्या होगा?"। अगर आपकी भीतरी मैनेजमेंट अच्छे तरीके से हो रही हो–अगर आप अपने विचारों को मैनेज करना जानते हैं, अपनी भावनाओ को मैनेज करना जानते हैं, अपने शरीर को मैनेज करना जानते हैं, अपनी केमिस्ट्री, अपनी ऊर्जा, अगर आप इन सभी को मैनेज करना जानते हैं–मैं पूछता हूँ कि अगर आप नरक में भी चले जाते हैं,तो क्या फर्क पड़ेगा?

आपको किसी भी परिस्थिति में से कोई परहेज नहीं होगा, और आप इस दुनिया में किसी भी हालात का सामना करने से नहीं कतराएंगे, क्योंकि आपके भीतर आनंद की केमिस्ट्री होगी। राम के ऊपर चाहे आप कितनी भी तकलीफें क्यों न फेंकें, उनके भीतर हमेशा एक शांतिमय केमिस्ट्री होती है। उसी प्रकार अगर आपके अंदर एक आनंदित केमिस्ट्री हो, तो चाहे कोई आपको कितनी भी तकलीफें क्यों न दे, आप आनंदित ही रहेंगे।