सूक्ष्म शरीर की यात्रा
क्या सूक्ष्म शरीर की यात्रा संभव है? हमारे अंदर एक बाहरी शरीर और एक भीतरी शरीर होता है। पर क्या हम अपने भीतरी शरीर को देख सकते हैं? अगर हां, तो कैसे?
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भौतिक शरीर को तो हम सब देखते हैं। हमने यह भी सुना है कि एक सूक्ष्म शरीर भी होता है। लेकिन क्या हम उसे देख सकते हैं? अगर हां, तो कैसे?
प्रश्न : सद्गुरु, सूक्ष्म शरीर क्या होता है? हमें योगासन के दौरान इसकी कल्पना क्यों करनी चाहिए?
सद्गुरु : यह शरीर भौतिक शरीर की तुलना में सूक्ष्म होता है। इंसान का सिस्टम बहुत जटिल व सुंदर है। यह बहुत जल्दी टूट भी सकता है और साथ ही यह जबरदस्त तरीके से लचीला भी है। यह जीवन बहुत ही क्षणभंगुर है - सांस भीतर, सांस बाहर, सांस भीतर, सांस बाहर ...अगर अगली सांस नहीं आई तो आप गए। जीवन और मृत्यु के बीच केवल एक आधी सांस ही तो है, एक पूरी सांस भी नहीं दृ कृपया इसे देखें। लेकिन यह जीवन क्षणभंगुर होते हुए भी लचीला भी है।
भले ही आप किसी एक साधारण आसन का अभ्यास करें या योग के दूसरे आयाम को अपनाएँ, सबका एकमात्र मकसद है आपके बोध को निखारना। क्योंकि जो आपके बोध में है, आप केवल वही जानते हैं - बाकि तो केवल कल्पना है। आमतौर पर बोध को निखारने की बजाए लोगों को उपदेश दिया जाता है। उपदेश आपको केवल बेलगाम कल्पना की ओर ले जाएगा, जो आपको पागलखाने की ओर ले जाने वाला पक्का तरीका है। अगर आपकी कल्पना बेकाबू हो जाए, और वास्तविकता से जुड़ी न रहे, तो आप निश्चित रूप से पागलपन की ओर बढ़ रहे हैं।
अगर आप आध्यात्मिक पथ पर उन उपेदशों को अपनाते हैं, जो आपके लिए जरुरी नहीं हैं, तो आप बहुत जल्दी पागल हो जाएँगे। यह खतरा हमेशा बना रहता है। अगर आप वास्तविकता की ठोस जमीन पर खड़े हैं, और तब आप कोई कल्पना करते हैं, तब तो ठीक है। लेकिन अगर आपकी कल्पना आपको जमीन से उड़ा ले गई, तो हालात पर आपका कोई काबू नहीं रह जाएगा।
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याद्दाश्त व कल्पना
आसन व दूसरे यौगिक अभ्यास आपके बोध को निखारने के लिए ही बने हैं, आपको कल्पना की उड़ान पर ले जाने के लिए नहीं। जब आपके बोध में निखार आता है, तब आप जीवन को जान पाते हैं, जीवन के बारे में सोचते नहीं।
आज न्यूरोसाइंस का जाना-माना तथ्य है कि जब तक आपके पास थोड़ी याद्दाश्त और कल्पना नहीं होगी, तब तक आपकी आंखें काम नहीं कर सकती। आपको हमेशा अपनी आँखें कैमरे जैसी लगती है। नहीं, ऐसा नहीं है। जब तक इसके पीछे कंप्यूटर नहीं होगा, यह काम नहीं कर सकती। हम ईशा कायाकल्प , में नेत्रों की प्राकृतिक देखरेख ही कर रहे हैं, जहाँ हम बेहतर देखने के लिए याद्दाश्त व कल्पना का इस्तेमाल करते हैं। अगर आप किसी चीज के बारे में यादें बना लें, तो आपको आसानी से महसूस हो जाएगा कि एक ही मिनट में आपको सब कुछ अच्छी तरह दिखने लगा है।
कल्पना के बिना याद्दाश्त नहीं हो सकती
यहां तक कि अब भी, आप ऐसी बहुत सी चीजें नहीं देख पाते, जिनके लिए आपके पास याद्दाश्त नहीं है। हम केवल याद्दाश्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और आप कल्पना के बिना याद्दाश्त नहीं बना सकते। आपको हमेशा लगता था कि आप याद्दाश्त के बिना कल्पना नहीं कर सकते। नहीं, जब तक कल्पना नहीं होगी, आप मेमोरी नहीं बना सकते। कल्पना के बिना मेमोरी संभव नहीं।
हम आपको सूक्ष्म शरीर की कल्पना करने को कह रहे हैं। इसे अपने जैसा ही बनाए, बहुत खूबसूरत बनाने की कोशिश न करें। अपनी सूक्ष्म देह को पहलवान की तरह न बनाएँ। कल्पना के घोड़े को बेकाबू न होने दें, थोड़ी सी कल्पना ठीक है, क्योंकि थोड़ी सी कल्पना से ही मेमोरी काम करना शुरु करेगा। एक बार जब मेमोरी ने काम करना शुरु कर दिया तो आपको वास्तव में सूक्ष्म शरीर दिखना शुरु हो जाएगा। लेकिन इसे हर जगह न देखें। केवल आसन करते समय ही इसे देखें। जिन लोगों को हर जगह सूक्ष्म शरीर दिखने लगता है, उन्हें भोजन भी सूक्ष्म ही लेना शुरु कर देना चाहिए!
संपादक की टिप्पणी:
*कुछ योग प्रक्रियाएं जो आप कार्यक्रम में भाग ले कर सीख सकते हैं:
21 मिनट की शांभवी या सूर्य क्रिया
*सरल और असरदार ध्यान की प्रक्रियाएं जो आप घर बैठे सीख सकते हैं। ये प्रक्रियाएं निर्देशों सहित उपलब्ध है:
ईशा क्रिया परिचय, ईशा क्रिया ध्यान प्रक्रिया